अयोध्या वह स्थान है जिस पर पूरी दुनिया कि नजर लगी रहती है। वो चाहे श्रीराम जन्मभूमि निर्माण आंदोलन का मामला हो या सुप्रीम कोर्ट से श्रीराम जन्मभूमि निर्माण के पक्ष में आए ऐतिहासिक फैसले का, या फिर मंदिर निर्माण हेतु भूमिपूजन का, अयोध्या हमेशा सुर्खियों में रहता है। ताजा मामला पंचायत चुनाव का, इसमें भाजपा को अयोध्या क्षेत्र में बुरी तरह शिकस्त मिली है। यह परिणाम विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं।
अयोध्या में जिला पंचायत की 40 सीटें हैं। इनमें से समाजवादी पार्टी ने 22 स्थानों पर कब्जा जमाया है, वहीं भाजपा मात्र 8 स्थानों पर ही जीत हासिल कर पाई। निर्दलीय 6 व बसपा को 4 स्थानों पर जीत हासिल हुई। आखिर इस चुनाव में भाजपा की ऐसी स्थिति क्यों हुई?
वेबदुनिया ने जमीनी हकीकत जानने के लिए जिले के बुद्धजीवियों, समाजसेवियों, व्यापारियों व युवाओं और ग्रामीणों से बात की तो पता चला कि लोगों की मूलभूत समस्याओं के साथ ही पार्टी द्वारा की गई घोषणाएं उसके गले की फांस बन गईं।
ग्रामीणों के जनधन खातों पर सुविधा न मिलना, ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण के दौरान हुए घोटालों की पुख्ता जांच न होना, जिले में रोजगार के पुख्ता संसाधनों की कमी, किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलना, सड़क चौड़ीकरण के तहत लोगों को जमीन के मुआवजे का भुगतान न होना, कोरोना संकट के चलते उत्पन्न समस्याएं प्रमुख रूप से भाजपा की हार का करण बनीं।
लोगों का मानना है कि समय रहते यदि भाजपा ने इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया तो आगामी विधानसभा चुनाव में भी मुश्किलें हो सकती हैं। वैसे भी पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में 58,189 ग्राम पंचायतों, 7,32,563 ग्राम पंचायत सदस्य व 75,855 क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं प्रदेश के 75 जिलों के 3051 जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव हेतु चार चरणों मे मतदान सम्पन्न हुआ था।