जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से नहीं हौसलों से उड़ान होती है…. और दुष्यंत कुमार ने कहा- होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये, इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये… ये पंक्तियां मथुरा के उन स्पेशल चाइल्ड यानी दिव्यांग बच्चों पर सटीक बैठती है, जो बुलंद हौंसलों के चलते अपने को किसी से कम नही समझते हैं।
रक्षाबंधन पर बांधे जाने वाले रक्षासूत्र यानी राखी यदि अपने इष्ट और देश के रक्षकों के लिए बनाई जा रही हो तो उसका महत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। यह तब और रोमांचित और आस्थावान बनाता है जब राखियां दिव्यांगों के लिए बनाई जा रही हो तो ऐसे में प्यार और आस्था और गहरी हो जाती है।
मथुरा में दिव्यांग और मूक बधिर बच्चे राखियां बना रहे हैं और इनके द्वारा बनाई गईं राखियां भगवान बांके बिहारी और गिरिराज जी को अर्पित की जाएंगी। इन मासूम दिव्यांगो को देखिए की कितने मनोयोग से यह राखियां बना रहे हैं। इनका हौसला देखिए कि हाथ यदि मोती पिरोने में अक्षम हैं तो पैरों की उंगलियों को इन्होंने साध लिया है। इनका परिश्रम, कर्मठता, एकाग्रता और समर्पण को बार बार नमन करने का मन स्वतः ही करने लगता है।
इन राखियों को देख कर कोई सहज रूप से यह नहीं कह सकता की जो बच्चे शारीरिक रूप से सक्षम नहीं है, लेकिन फिर भी वह इतनी सुंदर राखी भी बना सकते हैं!
मथुरा जिले में कल्याणम् करोति सामाजिक संगठन ने 153 स्पेशल चाइल्ड को मुख्य धारा में जोड़ने का बीड़ा उठाया है, जिसके चलते दिव्यांग और मुख बधिर बच्चों को पहल राखी बनाना सिखाया गया। अब यह बच्चे अपने हुनर को विभिन्न प्रकार की राखियां बनाकर आत्मनिर्भरता की तरफ एक कदम बड़ा चुके हैं।
इनके द्वारा बनी राखियों को सबसे पहले बांके बिहारी जी, गिरिराज महाराज समेत सरहद पर तैनात देश की रक्षा के सजग पहरी फौजियों को समर्पित की जायेगी।
तस्वीरों में आप खुद देख सकते हैं कि किस प्रकार दिव्यांग बच्चे रंग बिरंगी राखी बना रहे है दिव्यांग बच्चों द्वारा बनी राखियां मन को मोह रही है, लेकिन उपभोक्ता वादी संस्कृति पर बाजार हावी है, एक से एक महंगा रक्षा सूत्र बाजार में उपलब्ध है, ऐसे में इन स्पेशल चाइल्ड द्वारा बनाई राखी को कहां स्थान मिल पायेगा। सरकार और हम सबको मिलकर ऐसे बच्चों को प्रोत्साहन देना चाहिए, इनकी राखियों को बाजार मिलना चाहिए।
Edited by : Nrapendra Gupta