उत्तर प्रदेश की मऊ विधानसभा सीट प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में चर्चा का विषय बनी रहती है और इसके पीछे की मुख्य वजह गैंगस्टर से राजनेता बने मुख्तार अंसारी हैं। इस समय अंसारी बांदा जेल में बंद है और उन पर कई आरोप लगे हुए हैं, जिनकी सुनवाई कोर्ट में चल रही है। इस सबके बावजूद मऊ विधानसभा क्षेत्र के लोग अंसारी पर बेहद भरोसा करते हैं, जिसका नतीजा है लंबे समय से आपराधिक मुकदमों से घिरे अंसारी बिना किसी रुकावट के यहां से चुनाव जीत जाते हैं और जनता भी इन्हें सिर-आंखों पर बैठाती है।
क्यों है चर्चित रहती है यह सीट : मऊ विधानसभा सीट मुख्तार अंसारी के चलते सबसे चर्चित विधानसभाओं में से एक है। अंसारी मऊ निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के सदस्य के रूप में रिकॉर्ड 5 बार विधायक चुने गए हैं। वर्तमान में मऊ से अंसारी ही विधायक हैं। वह अन्य अपराधों सहित कृष्णानंद राय हत्या के मामले में भी मुख्य आरोपी थे, लेकिन अंसारी को दोषी नहीं ठहराया गया।
अंसारी ने बसपा के उम्मीदवार के रूप में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था। 2009 में अंसारी ने बसपा के टिकट पर मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बनारस से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन वे करीब 17000 वोटों से चुनाव हार गए। बसपा ने 2010 में उन्हें आपराधिक गतिविधियों के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया था। बाद में उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर अपनी पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया। वह 2012 में मऊ सीट से फिर विधायक चुने गए। 2017 में बसपा के साथ कौमी एकता दल का विलय हो गया और बसपा उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव में पांचवीं वार विधायक बने।
विधानसभा क्षेत्र का इतिहास : उत्तर प्रदेश की राजनीति में मऊ विधानसभा सबसे ज्यादा चर्चित विधानसभा है और इस विधानसभा का सृजन 1957 में हुआ था। इस विधानसभा से पहली विधायक कांग्रेसी महिला प्रत्याशी बेनी बाई बनी थीं। इसके बाद से इस विधानसभा में हर 5 वर्ष में परिवर्तन होता रहा। हर बार नए चेहरे को विधायक बनने का मौका मिला।
1996 में राजनीति में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला जब पहली बार 1996 में बाहुबली मुख्तार अंसारी इस विधानसभा से प्रत्याशी घोषित हुए और भारी मतों से विधायक भी बने। इसके बाद उनका सफर लगातार जारी रहा। 1996, 2002, 2007, 2012 व 2017 में वे विधायक बने। 2017 में भाजपा की लहर के बावजूद उन्हें कोई शिकस्त नहीं दे पाया।
मऊ विधानसभा से कब और कौन जीता : इस सीट से पहली बार 1957 में कांग्रेस की बेनी बाई ने चुनाव जीता था, लेकिन वह ज्यादा दिन तक विधायक नहीं रह सकीं और 1957 में ही उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के सुदामा प्रसाद गोस्वामी विधायक चुने गए। उसके बाद 1962 में एक बार फिर कांग्रेस की तरफ से बेनी बाई ने चुनाव जीतकर मऊ विधानसभा पर कब्जा जमाया।
1967 में हुए चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीएमडी अग्रवाल बीजेएस पार्टी से चुनाव जीतकर मऊ से विधायक बने। 1962 के बाद इस सीट पर लगातार किसी का कब्जा नहीं रहा और फिर से एक बार परिवर्तन देखने को मिला और 1969 में हबीबुर रहमान बीकेडी पार्टी से चुनाव जीतकर विधायक बने।
उसके बाद 1974 में अब्दुल बाकी सीपीआई के बैनर तले चुनाव जीते। 1977 रामजी जेएनपी उम्मीदवार के रूप में विधायक बने। 1980 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में खैरूल बशर उतरे और विधायक बने। 1985 में सीपीआई ने अकबाल अहमद को प्रत्याशी बनाया और वह विधायक चुने गए। 1989 में मोबीन बसपा के टिकट पर विधायक बने। 1991 में सीपीआई के इम्तियाज अहमद ने बसपा प्रत्याशी को हराकर इस सीट पर कब्जा किया। 1993 बसपा के मोबीन एक बार फिर विधायक बने।
1996 में पहली बार बाहुबली मुख्तार अंसारी को मऊ विधानसभा से बसपा ने प्रत्याशी बनाया और अंसारी भारी मतों से चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद अंसारी ने पलटकर नहीं देखा और लगातार पार्टी व निर्दलीय रहते हुए 2002 (निर्दलीय), 2007 (निर्दलीय), 2012 (कौमी एकता दल) व 2017 (बीएसपी+कौमी एकता दल) लगातार 5 बार विधायक बने।
क्या सोचती है जनता : उत्तर प्रदेश की मऊ विधानसभा प्रदेश की सबसे ज्यादा चर्चित विधानसभाओं में से एक है। इस विधानसभा से लगातार 5 बार विधायक बनकर बाहुबली मुख्तार अंसारी जनता के प्रिय माने जाते हैं। हालात तो कुछ इस कदर हैं कि 2017 के चुनाव में भाजापा के दिग्गज नेताओं ने मऊ विधानसभा में रैलियां करके एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन मऊ की जनता ने फिर भी बाहुबली मुख्तार अंसारी को ही भारी मतों से विजयी बनाया।
मऊ विधानसभा के रहने वाले क्षेत्रीय रामप्रकाश व नईम खान से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बाहुबली मुख्तार अंसारी के जीतने की पीछे की मुख्य वजह सिर्फ इतनी है कि जनता से उनकी नज़दीकियां हैं। मऊ विधानसभा की जनता हर छोटे से बड़े काम के लिए उनके पास पहुंचती है और वह भी घर पर रहते हुए या ना रहते हुए भी किसी को निराश नहीं लौटने देते हैं। यही कारण है कि जनता के बीच उनकी छवि बेहद लोकप्रिय है।
रामप्रकाश व खान कहते हैं कि बाहुबली मुख्तार अंसारी इतने लोकप्रिय हैं कि राजपूत और ब्राह्मणों का भी एक बड़ा वर्ग उन्हें वोट देता है, जबकि राजपूत व ब्राह्मण भाजपा का वोट बैंक माने जाते हैं। दरअसल, अंसारी चुनाव जीतने के बाद किसी से भेदभाव नहीं करते।
राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार नीरज तिवारी की मानें तो वोटों का समीकरण कुछ इस तरह है कि बाहुबली मुख्तार अंसारी को हरा पाना मऊ में बेहद मुश्किल है। मऊ विधानसभा जातिगत समीकरण के आधार पर वोटिंग होती है और मुख्तार अंसारी की जीत का राज भी यही रहा है। वह लगातार 5 बार से इस सीट पर विधायक चुने गए हैं।
इस विधानसभा क्षेत्र को यदि धर्म के आधार पर देखें तो यहां मुस्लिम वोट बड़ी तादाद में हैं। हालांकि अनुसूचित जाति के वोटर यहां मुस्लिम वोटरों से अधिक हैं पर उनका वोट बंट जाता है, जबकि मुस्लिम वोट एकतरफा पड़ने के चलते बाहुबली अंसारी को जीत हासिल होती है। इस सीट पर क्रमश: यादव, राजभर, चौहान, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, मल्लाह, आदि वोट मुस्लिम व अनुसूचित जाति के वोटों से आधे से भी कम की संख्या में हैं।
इन जातियों के वोट कई पार्टियों और प्रत्याशियों में बंट जाते हैं, जबकि यादव वोटरों के साथ ही मुस्लिम वोटरों का कुछ हिस्सा सपा को जाता है पर अनूसिचति जाति के वोटरों का पूरा हिस्सा बसपा को नहीं मिल पाता। मुस्लिम वोटरों का बड़ा हिस्सा मिलने और दूसरे वोटों के बंट जाने से बाहुबली मुख्तार अंसारी की जीत होती है।