चमौली। उत्तराखंड के चमोली जिले में प्राकृतिक आपदा उसी गांव के पास आई, जहां की महिलाएं पर्यावरण को बचाने के लिए कुल्हाड़ियों के आगे खड़ी हो गई थीं। रैणी गांव भारत की चीन से लगती सीमा से ज्यादा दूर नहीं है। रैणी गांव की महिलाओं ने ही चिपको आंदोलन चलाया था। लेकिन पर्यावरण बचाने के लिए लड़ने वाले रैणी गांव को आज बिगड़ते पर्यावरण की ही मार झेलनी पड़ी। सबसे ज्यादा नुकसान रैणी गांव में हुआ। खबरों के अनुसार यहां 100 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं।
70 के दशक में रैणी गांव में ही दुनिया का सबसे अनूठा पर्यावरण आंदोलन शुरू हुआ था। पेड़ काटने के सरकारी आदेश के खिलाफ रैणी गांव की महिलाओं ने जबर्दस्त मोर्चा खोल दिया था। जब लकड़ी के ठेकेदार कुल्हाड़ियों के साथ रैणी गांव पहुंचे तो रैणी गांव की महिलाएं जान की परवाह किए बिना पेड़ों से चिपक गई थीं।
महिलाओं के इस भारी विरोध की वजह से पेड़ों को काटने का फैसला स्थगित करना पड़ा। महिलाओं के पेड़ से चिपकने की तस्वीर इस आंदोलन का सबसे बड़ा प्रतीक बन गई थी और दुनिया की नजरें रैणी गांव के इस अनूठे आंदोलन की तरफ आईं। रैणी गांव की ही एक अनपढ़ और बुजुर्ग महिला गौरादेवी ने पर्यावरण बचाने की मुहिम की अगुवाई की थी।
खबरों के अनुसार ग्लेशियर टूटने के बाद आई इस आपदा में रैणी गांव के आसपास के न रास्ते सलामत रहे और न पुल बचे। यहां तक कि रैणी गांव में धौली गंगा और ऋषि गंगा के संगम पर बने 13 मेगावॉट की जलविद्युत परियोजना को भी भारी नुकसान पहुंचा। विकास की रफ्तार की कीमत रैणी गांव को चुकानी पड़ी है।
क्या बोले ग्रामीण : उत्तराखंड के रैणी गांव में रविवार को हर दिन की तरह लोगों के लिए सर्दी की शांत सुबह थी, लेकिन लगभग 10 बजे उन्हें जोरदार आवाज सुनाई दी और ऋषिगंगा में पानी का सैलाब और कीचड़ आते हुए नजर आया। धरम सिंह नामक 50 वर्षीय एक ग्रामीण ने कहा कि हम यह समझ पाते कि क्या हो रहा है, उससे पहले ही ऋषिगंगा के कीचड़ वाले पानी ने सारी चीजें तबाह कर दीं। इस नजारे ने लोगों को 2013 की केदारनाथ की भयावह बाढ़ की याद दिला दी जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। रविवार को कई लोगों के इस सैलाब में बह जाने की आशंका है। उनमें नदी के आसपास काम कर रहे लोग भी शामिल हैं।
लापता हुए लोग : गांव के 3 बाशिंदे इस त्रासदी के बाद से गायब हैं। उनमें 75 वर्षीय अमृतादेवी भी हैं, जो ऋषि गंगा पर पुल के समीप अपने खेत में काम करने गई थीं। अन्य वल्लीरानी के यशपाल हैं, जो अपने मवेशी को चराने गए थे और रंजीत सिंह (25) हैं, जो ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना में काम करते थे। नंदादेवी ग्लेशियर के टूटने के बाद यह हिमस्खलन आया। इस हिमस्खलन से वह परियोजना नष्ट हो गई, जो 2020 में ही शुरू हुई थी। मुख्य सीमा मार्ग पर एक बड़ा पुल भी बह गया। जुवा ग्वान गांव के प्रदीप राणा ने बताया कि उसी गांव का संजय सिंह भी लापता है, जो अपनी बकरियां चराने गया था। ऋषि गंगा और धौली गंगा के संगम से 20 मीटर की ऊंचाई पर बने कुछ मंदिर भी बह गए। (इनपुट भाषा)