ससरल शब्दों में प्यार एक जुड़ाव है, जो कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, वस्तु या अपने काम के प्रति महसूस करता है। प्यार तो किसी से भी हो सकता है। सिर्फ इंसान का इंसान से ही प्यार नहीं होता। एक इंसान की भावनाएं अपने आस-पास होने वाली सभी चीज़ों से अलग-अलग स्तर पर जुड़ जाती हैं। घर के सदस्यों से शुरू होकर, अपने परिवार, दोस्तों, पति-पत्नी, बच्चों, सहकर्मी सभी से भावनाएं जुड़ती है। फर्क केवल, किस प्रकार की भावना से आप किसी से जुड़े हैं, इतना भर है। छोटों को स्नेह और बड़ों को सम्मान देना भी दरअसल उनके प्रति प्रेम दर्शाना ही तो है।
कुछ दिन पहले की बात है, मेरा तीन ऐसे शादीशुदा जोड़ों से मिलना हुआ जिनकी शादी को 25 वर्ष, 27 वर्ष और 30 वर्ष से अधिक हो गए थे। जब मंच पर एक कार्यक्रम संचालित करने के दौरान, यह तीनों जोड़े मंच पर अपनी डांस प्रस्तुति ख़त्म करके रुके ही थे, कि मैंने मंच सम्भाला, इन जोड़ों से कुछ सवाल पूछे और जश्न के उस माहौल में थोड़ा रोमांस भरने के लिए, तीनों पतियों को अपनी-अपनी पत्नियों से अपने प्यार का इज़हार करने को कहा। उनका जवाब, मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था कि शादी के इतने वर्ष बीत गए, बच्चे भी इतने बड़े हो गए कि उनकी भी शादी की उम्र हो गई और आज तक इन जोड़ों ने कभी एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार तक नहीं किया था।
मेरा मंच पर ऐसा करने का कहने पर वे शरमा गए, क्योंकि उनसे कोई ऐसा करवाएगा कभी, इसकी उनको उम्मीद नहीं थी। जिन्होंने कभी अकेले में भी प्रेम का अपने साथी से शब्दों के माध्यम से इज़हार नहीं किया था, इस मंच पर बोलना, अपने परिवार वालों और दोस्तों के सामने उनके लिए किसी बहादुरी के काम से कम नहीं था। पर उनकी पत्नियों की दबी इच्छा, उनके चेहरे की शर्म से साफ़ ज़ाहिर हो रही थी। अंततः तीनों पतियों ने, अपनी-अपनी पत्नियों से इतने वर्षो बाद, पहली बार अपने प्रेम का इज़हार किया। और प्रेम का वो पल उनके जीवन के यादगार लम्हों में जुड़ गया।
वैसे तो प्रेम को दर्शाने के लिए किसी खास दिन की ज़रूरत नहीं होती। यह वह भावना है जो, जब भी किसी के लिए महसूस हो, उसे कभी भी, कहीं भी ज़ाहिर किया जा सकता है। ज़ाहिर करने का तरीका सबका जुदा हो सकता है। आखिर हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति क्षमता अलग होती है। हर व्यक्ति में रूहानियत या रोमांस करने का अंदाज़ अलग होता है।
हर दिन किसी भी क्षण प्रेम ज़ाहिर कर सकने के बाद भी ज़माने के साथ चलते हुए, अब जब समाज में वैलेंटाइन जैसे दिवस से शुरुआत होकर अब जब, पूरा फरवरी महीना ही प्रेम दिवस का प्रतीक माना जाने लगा है। ऐसे में, अपने आस-पास का माहौल देखते हुए, मार्केट, मॉल, रेस्टोरेंट, होटल जहां हर कहीं ऐसे अवसरों को ध्यान में रखते हुए ऑफर्स, डिस्काउन्ट्स, थीम पार्टी, डेकोरेशन, किसी खास कपल के लिए उपहार आदि रखें जाते हैं। ऐसे माहौल में समाज में लड़कियों, महिलाओं की अपने साथी या प्रेमी से उमीदें भी बदली हैं। जहां उनके आस-पास का वतावरण ही ऐसा हो गया है, जिसमें इस खास दिन पर अपने साथी के लिए कुछ खास करना, प्रेम का इज़हार करना ज़रूरी सा हो गया है।
कुछ साथी चाहे अंदर ही अंदर बेहद प्रेम करते हैं, पर इज़हार नहीं कर पाते या कहें कि उन्हें कहने की या इज़हार करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती। कई पुरुषों को तो यहां तक लगता है कि यदि मैं कमा कर घर चला रहा हूं, पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण कर रहा हूं, तो यह प्रेम ही है। बेशक इंसान कोई भी जिम्मेदारी भी मूल रूप से प्रेम के बंधन में होने से ही निभा पाता है। लेकिन ऐसा प्रेम जो सिर्फ मन में दबा हो और जिम्मेदारियों में व्यक्त हो, का भी क्या फायदा ! आखिर भावनाओं को शब्दों में पिरोने का भी एक महत्व है। किसी खास दिन, अपने किसी खास के लिए कुछ खास करने और तोहफा या सरप्राइज देकर उनके चेहरे पर खुशी देखने का भी एक महत्व है।
प्रेम वह भावना है, जिसका इज़हार जितना किया जाए, जितनी बार किया जाए कम है। प्रेम का एक वह स्तर भी है, जहां दिल की बात बयां करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं। एक वह स्तर भी है, जहां ज़ाहिर करने के लिए चुने गए शब्दों की गहराई आपकी भावनाओं की गहराई को बयां करने के लिए हल्की मालूम होती है।
इज़हार तो एक पल, कुछ क्षण का है, लेकिन प्रेम तो उम्र भर करने की बात है। एक दिन में प्रेम का इजहार करने के लिए कई छोटी-बड़ी चीज़ों से इज़हार लाज़मी है। उस एक दिन की तुलना यदि हम एक जन्म या इस एक जीवन से करें तो यहां इजहार ताउम्र छोटी-बड़ी चीज़ों से करने की बात है।