वसंत पंचमी मां शारदा को प्रसन्न करने का दिन है। इस दिन अगर विधि-विधान से पूजन किया जाए तो मां सरस्वती विद्या, वाणी और प्रसिद्धि का आशीर्वाद देती है।
भगवती सरस्वती की पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन संपन्न करे।
फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करे। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए -
'यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये।' पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें।
तत्पश्चात आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती साद आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए उपचार सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करें।
मां सरस्वती का अष्टाक्षर मंत्र
'श्री ह्यीं सरस्वत्यै स्वाहा'
इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रत्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करे। अंत में देवी सरस्वती की आरती करके उनकी स्तुति करें। भगवती को निवेदित गंध पुष्प मिष्ठान्न का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी में देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है अत: उनकी पूजा करें।
देवी भागवत एवं ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित आख्यान में पूर्वकाल में श्रीमन्नरायण भगवान ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था। जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी।
भगवान नारायण द्वारा उपदिष्ट वह अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है- 'श्रीं ह्वीं सरस्वत्यै स्वाहा।' इसका चार लाख जप करने से मंत्र सिद्धि होती है।
'अं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा।' यह सबीज दशाक्षर मंत्र सर्वार्थसिद्धिप्रद तथा सर्वविद्याप्रदायक कहा गया है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण : 'ॐ ऐं ह्वीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।'
ऐसा उल्लेख आता है कि महर्षि व्यास जी की व्रतोपासना से प्रसन्न होकर सरस्वती मां उनसे कहती हैं- व्यास! तुम मेरी प्रेरणा से रचित वाल्मीकि रामायण को पढ़ो, वह मेरी शक्ति के कारण सभी काव्यों का सनातन बीज बन गया है। उसमें श्रीरामचरित के रूप में मैं साक्षात् मूर्तिमती शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हूं-
पठ रामायणं व्यास काव्यबीजं सनातनम्। यत्र रामचरितं स्यात् तदहं तत्र शक्तिमान॥
भगवती सरस्वती के इस अद्भुत विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यश्रृंग, भारद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक धाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल में ब्रह्माजी से कहा था।
तत्पश्चात ब्रह्माजी ने गंधमादन पर्वतपर भृगुमुनि को इसे दिया था। भगवती सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्रकारिणी हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं-
पुनि बंदउं सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।
भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या से ही अमृतपान किया जा सकता है। विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की महिमा अपार है। देवी सरस्वती के द्वादश नाम हैं। जिनकी तीनों संध्याओं में इनका पाठ करने से भगवती सरस्वती उस मनुष्य की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।