वास्तु शास्त्र घर को व्यवस्थित रखने की कला का नाम है। इसके सिद्धांत, नियम और फार्मूले किसी मंत्र से कम शक्तिशाली नहीं हैं। नीचे दिए गए वास्तु के अनमोल मंत्र अपनाइए और सदा सुखी रहिए
- पूर्वी दिशा अग्नि तत्व का प्रतीक है। इसके अधिपति इंद्रदेव हैं। यह दिशा पुरुषों के शयन तथा अध्ययन आदि के लिए श्रेष्ठ है।
- पश्चिमी दिशा वायु तत्व की प्रतीक है। इसके अधिपति देव वरूण हैं। यह दिशा पुरुषों के लिए बहुत ही अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में पुरुषों को वास नहीं करना चाहिए।
- उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र यानी वायव्य कोण वायु तत्व प्रधान है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। यह सर्वेंट हाउस के लिए तथा स्थाई तौर पर निवास करने वालों के लिए उपयुक्त स्थान हैं।
- आग्नेय; दक्षिणी-पूर्वी कोण में नालियों की व्यवस्था करने से भू-स्वामी को अनेक कष्टों को झेलना पड़ता है। गृह स्वामी की धन-सम्पत्ति का नाश होता है तथा उसे मृत्यु भय बना रहता है।
- नैऋत्य कोण में जल-प्रवाह की नालियां भू-स्वामी पर अशुभ प्रभाव डालती हैं। इस कोण में जल-प्रवाह नालियों का निर्माण करने से भू-स्वामी पर अनेक विपत्तियां आती हैं।