Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हमारी सफलता और प्रगति तय करती हैं 10 दिशाएं

हमें फॉलो करें हमारी सफलता और प्रगति तय करती हैं 10 दिशाएं

अनिरुद्ध जोशी

पृथ्वी की गति, पृथ्वी के घूर्णन और अन्य ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव, सूर्य से प्रदत्त ऊर्जा, सूर्य से मिलने वाली विभिन्न रंगों की ऊर्जा, ऊर्जा को प्रभावी-अप्रभावी बनाने वाले नियम, अलग-अलग स्थानों की ऊर्जा, ऋतुओं के अनुसार अलग-अलग ऊर्जा, जलवायु के प्रभाव, शहर के स्थल पठार पहाड़, वृक्ष, जलीय वन भूमि से प्राप्त अलग-अलग तरह की जलवायु और ऊर्जा से ही मानव और मानव समाज का जीवन संचालित होता है। एक सुंदर भविष्य के लिए नदी, पहाड़ और शहर के वास्तु को बचाना जरूरी है।


आपके घर के भीतर की दिशाएं और शहर की दिशाएं मिलकर आपका भविष्य तय करती हैं। घर के वास्तु से घर का वातावरण निर्मित होता है। आपकी मानसिक और शारीरिक स्थिति कैसी होगी यह घर और बाहर के वातावरण पर निर्भर करता है। इसलिए दिशाओं के वास्तु का ज्ञान होना जरूरी है।

दिशाओं से पैदा होने वाले वातावरण का संबंध लोगों की सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है। यदि इसमें कोई दोष हो, तो इसे तुरंत वास्तु उपायों के द्वारा ठीक कर लेना चाहिए। आप अपने घर का वास्तु दोष तो दूर कर सकते हैं किंतु शहर का कैसे करेंगे? इसके लिए आपको बचना चाहिए उन जगहों पर जाने से, जो वास्तु अनुसार नकारात्मक ऊर्जा का निर्माण कर रही है। आपका खुद का घर भी शहर के किस स्थान पर बना है इसका ध्यान रखें।

दिशाएं दस होती हैं। दिशाओं की शुरुआत ऊर्ध्व व ईशान से होती है और उत्तर-अधो पर समाप्त। 1. ऊर्ध्व 2. ईशान, 3. पूर्व, 4. आग्नेय, 5. दक्षिण, 6. नैऋत्य, 7. पश्चिम, 8. वायव्य, 9. उत्तर और 10. अधो। दिशा में जहां दिशा शूल होता है, वहीं राहु काल भी नुकसानदायक है। दूसरी ओर, प्रत्येक दिशा के दिग्पाल होते हैं और उनके ग्रह स्वामी भी

दक्षिण से गर्म हवाएं चलती रहती है तो उत्तर से ठंडी। तब आपके घर का मुख्‍य द्वार उत्तर की दिशा में है तो अति उत्तम, ईशान और पूर्व में है तो उत्तम और पश्चिम व वायव्य में है तो मध्यम और अन्य में है तो निम्नतम।

webdunia

दस दिशा के दस दिग्पाल : ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारूत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत। उक्त सभी दिशाओं के दिशा शूल, वास्तु की जानकारी के साथ जानिए धन, समृद्धि और शांति बढ़ाने के उपाय।

 

अगले पन्ने पर, ऊर्ध्व दिशा का महत्व...

 


webdunia
 
FILE


1. ऊर्ध्व दिशा : ऊर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा है। ब्रह्मा हम सभी के जन्मदाता हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है। आकाश ही ईश्वर है। जो व्यक्ति ऊर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है। वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगे किसी ओर से नहीं। उससे मांगने से सबकुछ मिलता है।

वास्तु : घर की छत, छज्जे, उजाल दान, खिड़की और बीच का स्थान इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आकाश तत्व से हमारी आत्मा में शांति मिलती है। इस दिशा में पत्थर फेंकना, थूकना, पानी उछालना, चिल्लाना या ऊर्ध्व मुख करके अर्थात आकाश की ओर मुख करके गाली देना वर्जित है। इसका परिणाम घातक होता है।

दिशा शूल : इस दिशा में जाने का कोई दिशा शूल नहीं।

 

यदि आपका घर ईशान में है तो...

 


webdunia
FILE


2. ईशान दिशा- पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। वास्तु अनुसार घर में इस स्थान को ईशान कोण कहते हैं। भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं।

वास्तु : घर, शहर और शरीर का यह हिस्सा सबसे पवित्र होता है, इसलिए इसे साफ-स्वच्छ और खाली रखा जाना चाहिए। यहां जल की स्थापना की जाती है- जैसे कुंआ, बोरिंग, मटका या फिर पीने के पानी का स्थान। इसके अलावा इस स्थान को पूजा का स्थान भी बनाया जा सकता है। इस स्थान पर कूड़ा-करकट रखना, स्टोर, टॉयलट, किचन वगैरह बनाना, लोहे का कोई भारी सामान रखना वर्जित है। इससे धन संपत्ति का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है।

दिशा शूल : बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व अर्थात ईशान कोण में दिशा शूल रहता है। इसलिए इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो बुधवार को तिल या धनिया खाकर और शनिवार को अदरक अथवा उड़द की दाल खाकर घर से निकलना चाहिए।

अगले पन्ने पर यदि आपका घर पूर्व में हैं तो...


webdunia
FILE


3. पूर्व दिशा- ईशान के बाद पूर्व दिशा का नंबर आता है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह ईशान से ही निकलता है पूर्व से नहीं। इस दिशा के देवता इंद्र और स्वामी सूर्य हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है।

वास्तु : घर की पूर्व दिशा में कुछ खुला स्थान और ढाल होना चाहिए। शहर और घर का संपूर्ण पूर्वी क्षेत्र साफ और स्वच्छ होना चाहिए। घर में खिड़की, उजाल दान या दरवाजा रख सकते हैं। इस दिशा में कोई रुकावट नहीं होना चाहिए। इस स्थान में घर के वरिष्ठजनों का कमरा नहीं होना चाहिए और कोई भारी सामान भी न रखें। यहां सीढ़ियां भी न बनवाएं।

दिशा शूल : सोमवार और शुक्रवार को पूर्व दिशा में दिशा शूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो सोमवार को दर्पण देखकर और शुक्रवार को जौ खाकर घर से निकलना चाहिए।

यदि आपका घर आग्नेय में है तो...


webdunia
FILE


4. आग्नेय दिशा : दक्षिण और पूर्व के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। इस दिशा के अधिपति हैं अग्नि देव। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं।

वास्तु : घर में यह दिशा रसोई या अग्नि संबंधी (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। आग्नेय कोण का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। आग्नेय कोण में शयन कक्ष या पढ़ाई का स्थान नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का द्वार भी नहीं होना चाहिए। इससे गृहकलह निर्मित होता है और निवासियों का स्वास्थ्य भी खराब रहता है।

दिशा शूल : सोमवार और गुरुवार को दक्षिण-पूर्व अर्थात आग्नेय दिशा में दिशा शूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो सोमवार को दर्पण देखकर और गुरुवार को दही खाकर निकलना चाहिए।

यदि आपका घर दक्षिण दिशा में है तो...


webdunia
FILE


5. दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा के अधिपति देवता हैं भगवान यमराज। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख, सम्पन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

वास्तु : वास्तु अनुसार दक्षिण दिशा में मुख्‍य द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का भारी सामान रखना चाहिए। इस दिशा में दरवाजा और खिड़की नहीं होना चाहिए। यह स्थान खाली भी नहीं रखा जाना चाहिए। इस दिशा में घर के भारी सामान रखे। शहर के दक्षिण भाग में आपका घर है तो वास्तु के उपाय करें।

दिशा शूल : गुरुवार को दक्षिण दिशा में दिशाशूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो गुरुवार को दही खाकर घर से बाहर निकलना चाहिए।

यदि आपका घर नैऋत्य दिशा में है तो...


webdunia
FILE


6. नैऋत्य दिशा : दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य कहा गया है। यह दिशा नैऋत देव के आधिपत्य में है। इस दिशा के स्वामी राहु और केतु हैं।

वास्तु : इस दिशा में पृथ्वी तत्व की प्रमुखता है इसलिए इस स्थान को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। नैऋत्य दिशा में द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में गड्ढे, बोरिंग, कुंए इत्यादि नहीं होने चाहिए। इस दिशा में क्या होना चाहिए यह किसी वास्तुशास्त्री से पूछकर तय करें।

दिशा शूल : रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम अर्थात नैऋत्य दिशा में दिशा शूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो रविवार को दलिया और घी खाकर और शुक्रवार को जौ खाकर घर से बाहर निकलना चाहिए।

अगले पन्ने पर, यदि आपका घर पश्चिम दिशा में है तो...



webdunia
FILE


7. पश्चिम दिशा : पश्चिम दिशा के वरुण देवता है और शनि ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति का प्रतीक है। इस दिशा में घर का मुख्‍य द्वार होना चाहिए।

वास्तु : घर के पश्चिम में बाथरूम, टॉयलेट, बेडरूम नहीं होना चाहिए। यह स्थान न ज्यादा खुला और न ज्यादा बंद रख सकते हैं। पश्‍चिम दिशा में द्वार है तो वास्तु के उपाय करें, क्योंकि सूर्यास्त के समय सूर्य की नकारात्मक ऊर्जा घर में दाखिल होती है। द्वार है तो द्वार को अच्छे से सजा कर रखें। द्वार के आसपास की दीवारों पर किसी भी प्रकार की दरारें न आने दें और इसका रंग गहरा रखें।

दिशा शूल : रविवार और शुक्रवार को पश्चिम दिशा में दिशा शूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो रविवार को दलिया व घी खाकर और शुक्रवार को जौ खाकर घर से बाहर निकलना चाहिए।

यदि आपका घर वायव्य दिशा में है तो...


webdunia
FILE


8. वायव्य दिशा : उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा का स्थान है। इस दिशा के देव वायुदेव हैं और इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता रहती है।

वास्तु : यह दिशा पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों से आपके रिश्तों पर प्रभाव डालती है। वास्तु ज्ञान के अनुसार इनसे अच्छे और सदुपयोगी संबंध बनाए जा सकते हैं। इस दिशा में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं होना चाहिए। इस दिशा के स्थान को हल्का बनाए रखें। खिड़की, दरवाजे, घंटी, जल, पेड़-पौधे से इस दिशा को सुंदर बनाएं।

दिशा शूल : मंगलवार को उत्तर-पश्चिम दिशा अर्थात वायव्य दिशा में दिशा शूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो मंगलवार को गुड़ खाकर निकलना चाहिए।

अगले पन्ने पर, यदि आपका घर उत्तर दिशा में है तो....


webdunia
FILE


9. उत्तर दिशा : उत्तर दिशा के अधिपति हैं रावण के भाई कुबेर। कुबेर को धन का देवता भी कहा जाता है। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है।

वास्तु : उत्तर और ईशान दिशा में घर का मुख्‍य द्वार हो तो अति उत्तम होता है। इस दिशा में स्थान खाली रखना या कच्ची भूमि छोड़ना धन और समृद्धिकारक है। इस दिशा में शौचालय, रसोईघर बनवाया, कूड़ा करकट डालना और इस दिशा को गंदा रखने से धन संपत्ति का नाश होकर दुर्भाग्य का निर्माण होता है।

दिशा शूल : मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल रहता है। इस दिन इस दिशा में यात्रा करना हो तो मंगलवार को गुड़ और बुधवार को तिल, धनिया खाकर घर से निकलना चाहिए।

अंत में अधो दिशा...


webdunia
FILE


10. अधो दिशा : अधो दिशा के देवता हैं शेषनाग जिन्हें अनंत भी कहते हैं। घर के निर्माण के पूर्व उसकी धरती की वास्तु शांति की जाती है। अच्छी ऊर्जा वाली धरती का चयन किया जाना चाहिए। घर का तलघर, गुप्त रास्ते, कुंआ, हौद आदि इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वास्तु : भूमि के भीतर की मिट्टी पीली हो तो अति उत्तम और भाग्यवर्धक होती है। आपके घर की भूमि साफ-स्वच्छ होना चाहिए। जो भूमि पूर्व दिशा और आग्नेय कोण में ऊंची तथा पश्चिम तथा वायव्य कोण में धंसी हुई हो, ऐसी भूमि पर निवास करने वालों के सभी कष्ट दूर होते रहते हैं।

दिशा शूल : इस दिशा में जाने का कोई दिशा शूल नहीं

(वेबदुनिया डेस्क)

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi