वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखते हैं और वट पूर्णिमा का व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन रखते हैं। वट सावित्री अमावस्या का व्रत खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है जबकि वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत के क्षेत्रों में प्रचलित है। स्कन्द व भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। दोनों ही व्रत के दौरान महिलाएं वट अर्थात बरगद की पूजा करके उसके आसपास धागा बांधती है। 26 मई 2025 को वट सावित्री अमावस्या का व्रत रखा जाएगा। जानिए इस दिन वट की पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) इसे करती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
अमावस्या तिथि प्रारम्भ- 26 मई 2025 को दोपहर 12:11 बजे से।
अमावस्या तिथि समाप्त- 27 मई 2025 को सुबह 08:31 बजे तक।
यदि हम अमावस्या तिथि लेते हैं तो यह 26 मई को पूर्ण रात्रि में है इसलिए वट सावित्री 26 मई को है।
26 मई पूजा का शुभ मुहूर्त:
प्रातः पूजा मुहूर्त: सुबह 04:24 से 05:25 के बीच।
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:51 से दोपहर 12:46 के बीच।
सायाह्न काल मुहूर्त: शाम 07:10 से राशि 08:13 के बीच।
वट सावित्री पूजा की विधि:-Vat Savitri Vrat puja
-
वट सावित्री अमावस्या के दिन प्रात: घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
-
तत्पश्चात पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
-
इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
-
ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
-
इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
-
इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
अब निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।
इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें-
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।
-
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
-
जल से वट वृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें।
-
बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
-
भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासू जी के चरण स्पर्श करें।
-
यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
-
वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिन्दूर तथा कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं।
-
पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें-
मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं
सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।
अब वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की कथा को पढ़ें अथवा सुनें। इस तरह पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।