धार्मिक महत्व में खास माना जाने वाला वट सावित्री व्रत का आरंभ गुरुवार, 1 जून 2023 से हो चुका है। इस व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सौभाग्य और गृह शांति के लिए रखती हैं। 3 दिनों का यह व्रत, जिसका समापन वट सावित्री पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि को होता है।
आइए जानते हैं इस व्रत की 10 खास बातें-
1. यह व्रत 3 दिन पहले से शुरू होता है, इसलिए दिन भर व्रत रखकर महिलाएं शाम को भोजन ग्रहण करती हैं।
2. वट सावित्री पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र और आभूषण पहनें। इस दिन नीले, सफेद या काले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। तत्पश्चात वट वृक्ष के नीचे अच्छी तरह साफ-सफाई कर लें।
3. वट वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री की मूर्तियां स्थापित करें और लाल वस्त्र चढ़ाएं।
4. बांस की टोकरी में 7 तरह के अनाज रखें और कपड़े के दो टुकड़े से उसे ढंक दें।
5. एक और बांस की टोकरी लें और उसमें धूप, दीप कुमकुम, अक्षत, मौली आदि रखें।
6. वट वृक्ष और देवी सावित्री और सत्यवान की एक साथ पूजा करें।
7. इसके बाद बांस के बने पंखे से सत्यवान और सावित्री को हवा करते हैं और वट वृक्ष के एक पत्ते को अपने बाल में लगाकर रखा जाता है।
8. फिर प्रार्थना करते हुए लाल मौली या सूत के धागे को लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते हैं और घूमकर वट वृक्ष को मौली या सूत के धागे से बांधते हैं। ऐसा 7 बार करते हैं। यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद कथा सुनते हैं।
9. तत्पश्चात पंडित जी को दक्षिणा देते हैं। आप किसी जरूरतमंद को भी दान दे सकते हैं। घर के बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लें और मिठाई खाकर अपना व्रत खोलें। व्रत के पारण का समय जानकर ही पारण करें और इस व्रत का पारण 11 भीगे हुए चने खाकर करते हैं।
10. यदि आप पहली बार व्रत रख रही हैं तो इस व्रत का प्रारंभ मायके से किया जाता है। सुहाग की सामग्री मायके की ही प्रयोग करनी चाहिए। कपड़े से लेकर सुहाग का सारा सामान मायके का ही होना चाहिए।
संपूर्ण श्रद्धाभाव और पवित्रता के साथ इस व्रत को रखते हुए मन ही मन स्वयं और पति सहित परिवार के सभी सदस्यों के स्वस्थ रहने की कामना करना चाहिए।
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