ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि महिलाओं द्वारा इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। जानिए सती सावित्री कौन थीं...
सावित्री मद्र देश के राजा अश्वपति की कन्या और सत्यवान पत्नी थी। सावित्री अद्वितीय सुंदरी थी। पिता ने खुद ही उसे अपना वर चुनने का अधिकार दिया। तब सावित्री ने वृद्ध मंत्रियों के साथ तपोवन एवं तीर्थों में भ्रमण किया। कुछ समय बाद वह लौट आई और पिता से शाल्व देश में द्युमत्सेन नामक एक प्रसिद्ध अंधे धर्मात्मा क्षत्रिय राजा के पुत्र नाम सत्यवान् से विवाह करने का प्रस्ताव रखा जिसके राज्य को एक शत्रु ने हड़प लिया था। सावित्री ने कहा कि वे दोनों तपोवन में शरण लिए हुए निवास कर रहे हैं।
यह जानकर नारदजी आए और कहने लगी कि यह सत्यवान नामक व्यक्ति गुणों से तो संपन्न है लेकिन राजन यह अल्पायु है। आज से एक वर्ष पूरा होते के पश्चात यह मर जाएगा। इस पर भी सावित्री ने सत्यवान् से ही विवाह करना निश्चित किया। बेटी की जिद के आगे राजा अश्वपति को झुकना पड़ा और उसका विवाह सत्यवान से कर दिया। एक वर्ष बाद उसका पति एक वृक्ष के नीचे मृत्यु को प्राप्त हुआ। यमराज जब उसके पति का सूक्ष्म शरीर ले जा रहे थे तो तब सावित्री ने उसका पीछा किया। यमराज ने उसे बहुत समझा बुझाकर लौटाना चाहा, पर उसने उनका पीछा न छोड़ा।
अंत में यमराज ने प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूर्ण और मृत सत्यवान् पुन: जीवित होकर उठ बैठा। सावित्री की पतिव्रता और तपोबल से यमराज ने यही नहीं बल्कि उनके ससुर राजा द्युमत्सेन को पुन: दृष्टी प्रदान की और उनके शत्रुओं का नाश होकर उन्हें पुन: राज्य प्राप्त हुआ। सती सावित्री के सौ पुत्र हुए। साथ ही उसके वृद्ध ससुर के भी सौ पुत्र हुए। उसने यह भी वर प्राप्त कर लिया था कि वो अपने पति के साथ ही बैकुंठ जाए।भगवन भोलेनाथ और माता पार्वती ने भी सती सावित्री को आशीर्वाद दिए...