आज इंटरनेशनल नर्स डे है यानी अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस। इस खास दिन को हर साल मनाने के पीछे एक रोचक किस्सा है। जिनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता है। लेकिन इस दिन को वर्तमान की परिस्थिति से जोड़कर देखा जाए तो इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। जी हां, कोरोना काल में जिस तरह से नर्स द्वारा समूचे विश्व में मरीजों का दिन-रात उपचार किया जा रहा है, उनकी देखभाल की जा रही है। मानो मौत के मुंह से निकाल कर उन्हें बचाया जा रहा है। एक नई जिंदगी दी जा रही है....
12 मई 1820 को इटली में एक ऐसी ही शख्सियत का जन्म हुआ था। जिसका नाम था फ्लोरेंस नाइटिंगेल। नाइटिंगेल ने सोच रखा था कि वह नर्स बनना चाहती है लेकिन परिवार को यह मंजूर नहीं था। क्योंकि उच्च कुलीन परिवार था और नर्स उस दौरान बहुत अधिक सम्मानित पेशा नहीं था। आखिर में नाइटिंगेल की जिद के आगे परिवार को झुकना पड़ा। जर्मनी में नाइटिंगेल की नर्स की ट्रेनिंग की शुरुआत हुई। ट्रेनिंग मिलने के बाद 1853 में लंदन में महिलाओं के लिए अस्पताल खोला। दूसरी ओर क्रीमिया का युद्ध शुरू हो गया। हालात को देखते हुए नाइटिंगेल करीब 38 नर्सों के साथ मिलिट्री अस्पताल पहुंच गई। वह अस्पताल तुर्की में स्थित था।
दिन-रात एक कर नाइटिंगेल सैनिकों की सेवा में लग गई। अस्पताल में पहुंचते ही नाइटिंगेल को सबसे पहले गंदगी का सामना करना पड़ा। हालांकि इस बीच उपचार भी शुरू कर दिया। वह रात में भी सैनिकों का इलाज करती रहीं। बिजली नहीं होने पर लैंप के उजाले में सैनिकों की सेवा की। वहां मौजूद सैनिक उन्हें लेडी विद द लैंप' कहने लगे।
जब वह मिलिट्री ऑफिस से लौटी तो उनकी अलग ही पहचान बन गई। पूरे विश्व में उनकी चर्चा होने लगी। नाइटिंगेल के निस्वार्थ सेवा भाव ने पूरी दुनिया में नर्स के पेशे को सम्मानजनक पेशा बना दिया। आज उनके जन्मदिन को सम्मान के रूप में अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।