अनुकृति श्रीवास्तव
ससुराल वाले मुझसे इतना काम करवाते थे कि मेरे हाथों की अंगुलियों के नाखून सड़कर गिर गए, पति ने पैसे की लालच में मेरे सिर के बाल उखा़ड़ लिए या फिर क्योंकि मैं ल़ड़की थी इसीलिए मेरे घरवालों ने मुझे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। ये कुछ उदाहरण हैं समाज में स्त्री जाति पर होने वाले अत्याचारों के, जिन्हें आएदिन टीवी चैनलों से लेकर अखबारों तक में हम पढ़ते ही रहते हैं। कुछ दिनों तक महिलाओं की ये खबरें चर्चा में रहती हैं और फिर आप भी भूल जाते हैं और हम भी। इन सबके खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम बनाया गया है लेकिन जानकारी के अभाव में पीड़िताएं इनका फायदा नहीं उठा पाती।
क्या है घरेलू हिंसा अधिनियम?
घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे लागू किया गया। यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा ही संचालित किया जाता है। शहर में महिला बाल विकास द्वारा जोन के अनुसार आठ संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनते हैं और पूरी जांच पड़ताल करने के बाद प्रकरण को न्यायालय भेजा जाता है।
ऐसी महिलाओं के लिए है जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी किस्म की हिंसा से पीड़ित हैं। इसमें अपशब्द कहे जाने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मारपीट करना आदि प्रता़ड़ना के प्रकार शामिल हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी व महिलाओं के हर रूप और किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को शामिल किया जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
होने चाहिए कुछ संशोधन
अधिनियम महिलाओं के हित के लिए बनाया गया है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन कहीं- कहीं कुछ ऐसी बातें हैं जिनका उपयोग बचाव पक्ष वाले कर लेते हैं और उन्हें रियायत मिल जाती है। जैसे-
1. न्याय के संबंध की बात है तो अधिनियम में प्रयास करने शब्द का उपयोग कर दिया गया है यही वजह है कि दो माह की जगह पेशी पर पेशी ब़ढ़ती जा रही हैं और कुछ किया नहीं जा सकता।
2. महिलाओं के संरक्षण का काननू भी पारित होना चाहिए।
3. इन प्रकरणों के निबटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन हो।
4. महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों।
हकीकत : काहे का घरेलू हिंसा अधिनियम?
एक पीड़ित महिला इतनी परेशान हो चुकी है कि उनका कहना है कि भले ही घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं के हित के लिए बनाया गया है लेकिन मुझे इसका कोई लाभ नहीं मिला। अधिनियम में न्याय की अवधि 6 माह दी गई है जबकि मुझे तो कोर्ट में केस लगाने में ही छः माह लग गए। एक साल से तो कोर्ट के चक्कर लगा रही हूं। न्याय कब मिलेगा या मिलेगा भी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। जब इतना ही परेशान होना है तो किस काम का घरेलू हिंसा अधिनियम।