आत्मविश्वास का मुकुट पहने सौन्दर्य पैमानों को धता बताती आज की नारी
दमदार किरदारों ने हमेशा ही मुझे आकर्षित किया है। खासकर कुछ नया, कुछ अच्छा, कुछ दूसरों के लिए नकारात्मकता में से अपने लिए धनात्मकताभरी सोच, जो सभी के लिए प्रेरणा और मिसाल बन जाए। ऐसे ही मिसाल कायम करने वाली है 'केतकी जानी'।
जहां हमारे देश में महिलाओं पर रचे जाने वाले काव्य, शेरो-शायरियां, कथा-कहानियां, किस्से-किंवदंतियां, उपन्यास, इतिहास आदि में उनकी सुन्दरता का वर्णन उनके लंबे, घने, काले, रेशमी, चमकीले, घुंघराले बालों के बिना संभव नहीं होता। कभी काली घटाएं बनकर, कभी ठंडी छांव बनकर, कभी उलझे दिल के अरमान बनकर, कभी सुहानी रात बनकर।
शायर की कलम इस तरह जुल्फों में खो जाती है, जैसे चांद बादल में छुप जाता है। हर मोहब्बत का दीवाना अपनी महबूबा की जुल्फों की छांव में रहना चाहता है और उसे संवारना चाहता है और उससे खेलना चाहता है। कभी जंजीर बताता है तो कभी उसी के तले जीवन बिता देना चाहता है। और भी न जाने क्या-क्या? वहीं केतकी ने इनके बिना अपनी आत्मविश्वास की प्रबल शक्ति से अपनी सुन्दरता को कई गुना चमकीला, खूबसूरत, प्रेरणादायी कर लिया।
अहमदाबाद में जन्म लेने वाली 49 वर्षीय केतकी के जीवन में सन् 2010 तक सब कुछ सामान्य था, जैसे सभी का खुशहाल जीवन होता है। पर अचानक से वे 'एलोपेशिया' नाम की बीमारी का शिकार हुईं जिसमें खोपड़ी से बालों के गुच्छे अचानक से गिरने लग जाते हैं, गंजे होने लगते हैं। डॉक्टर ने स्टेरॉयड टेबलेट दी जिनका साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा थे। सीधे किडनी पर असर करते।
यह कहानी सिर्फ केतकी की ही नहीं है। उन अनगिनत महिलाओं की है जिनका जीवन न केवल बाल बल्कि समाज द्वारा औरतों के लिए अपने हिसाब से निर्धारित कर दिए गए सुन्दरता के पैमाने पर अपने आपको मापने में ही आत्मग्लानि व हीनभावना से गुजर जाता है।
न्यू साउथवेल्स यूनिवर्सिटी, हांगकांग पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी और तियांजिन यूनिवर्सिटी के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने अपनी तरफ से किए गए इस अध्ययन के बारे में कहा है कि यह अब तक का सबसे विस्तृत अध्ययन है, जो शरीर की बनावट से महिलाओं की सुन्दरता पर पड़ने वाले प्रभाव पर आधारित है।
अध्ययन में शामिल प्राफेसर रॉब ब्रूक्स कहते हैं कि सुन्दरता को लेकर किए गए ज्यादातर अध्ययन धड़, कमर और नितंबों पर ही आधारित हैं लेकिन हमने अपने अध्ययन में पाया है कि बाजुओं की लंबाई और चौड़ाई भी सुन्दरता के मामले में एक बड़ा पैमाना है। यह पूरे शरीर की बनावट और वजन में एक तरह से चार चांद लगाने का काम करता है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि बॉडी मास इंडेक्स और हिप-टू-वेस्ट रेशो किसी भी महिला के आकर्षण के सबसे बड़े पैमानों में से है।
'जीवन तमाम विपत्तियों का संग्रह है, मुस्कान उन विपत्तियों पर प्रहार है', ऐसा मेरे दोस्त नरेन्द्र तिवारीजी का कहना है। जीवन का यही सार भी है। केतकी को भी इन्हीं विपत्तियों के संग्रहभरे जीवन के जाल को काटना पड़ा। उसे लगने लगा था, जैसे 40 साल की उम्र में ही जिंदगी ख़त्म हो गई।
उसने तय कर लिया था कि वो अब अपने घर से बहर कभी कदम नहीं रखेगी। बाहरी दुनिया से सारे संपर्क तोड़कर 3 साल तक गहन डिप्रेशन का शिकार हो गई। वो नहीं चाहती थी कि किसी को भी उसकी इस दशा का पता चले या मालूम पड़े। इसलिए बस घर पर ही बैठकर बिना कुछ किए बस रोती ही रहती थी।
इन 3 सालों में उसने कई ट्रीटमेंट करवाए। लेकिन इस बीमारी का कोई इलाज था ही नहीं। दो बेहद प्यार करने वाले प्यारे बच्चों की मां और पति की पत्नी केतकी की इस हालत को देखकर उसने अपनी चुप्पी तोड़ी और उसे समझाया कि उसकी पूरी जिंदगी उसका इंतजार कर रही है। दुनिया उसके बारे में क्या सोचती है, यह उसने नहीं सोचना चाहिए। बाहर कदम रखो और अपनी ख़ूबसूरती को गले लगाओ। आप गंजी हो पर फिर भी बहुत खूबसूरत हो।
यह सच में उसकी जिंदगी का खूबसूरत मोड़ था और उसने अपने आपको इसी रूप में स्वीकारने का निश्चय कर लिया। इसमें उसकी बेटी का बहुत बड़ा हाथ था। हम कल्पना कर सकते हैं कि जब एक महिला गंजे सिर के साथ बाहर निकलती है तो उसे लोगों की कैसी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ता है? हर चेहरा मानो पूछ रहा हो कि कहीं कैंसर तो नहीं? या तिरुपति बालाजी के दर्शन कर आई हैं? उसने सारे प्रश्नों को मुस्कुराकर नजरंदाज किया।
मगर केतकी ने जैसी कि उसकी हमेशा से इच्छा थी, अपने सिर पर टैटू बनवाया और सोचा कि अगर ईश्वर ने मुझे खाली कैनवास दिया है तो क्यों न उसका उपयोग किया जाए। सालभर पहले उसे मिसेस इंडिया वर्ल्डवाइड प्रतियोगिता का पता चला और उसमें अपना नाम दर्ज करवाया। सौभाग्य से वो तीनों राउंड क्लीयर कर के 3,000 से ज्यादा प्रतियोगियों को पीछे छोड़ते हुए टॉप फिफ्टीन में चयनित हो गई।
कुछ ही सालों में केतकी के लहजे में 'why me' से 'why not me?' हो गया। 3 साल के डिप्रेशन और खुद को घर में बंद रखने से मिसेस इंडिया वर्ल्डवाइड तक की यात्रा में दुनिया का सामना करना यही केतकी की कहानी है। जिस पर उसे और उसके परिवार को गर्व है।
लंदन स्थित 'डव रिसर्च सेंटर' की रिपोर्ट के अनुसार सुन्दरता व शारीरिक बनावट को लेकर विश्वभर की महिलाओं में जबर्दस्त हीनभावना व आत्मविश्वास की कमी है, परंतु हम भारतीय महिलाएं अपवाद हैं। यह शोध 10-17 व 18-64 साल की आयु वर्ग की महिलाओं पर था। हीनभावना ख़ुशी के स्तर व निर्णय क्षमता पर भी घोर प्रभाव डालती है।
अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में सन् 2010 में महिलाओं के आत्मविश्वासी होने का प्रतिशत 85% था, जो सन् 2016 में घटकर 50% रह गया। अधखुले भारतीय समाज में महिलाएं दैहिक हमलों और मानसिक दबावों का सामना डटकर करने की क्षमता के कारण अमेरिका, कनाडा व ब्रिटेन जैसे अन्य खुले समाजों की महिलाओं से ज्यादा आत्मविश्वासी हैं।
इतना ही नहीं, सुन्दरता के साथ-साथ महिलाओं पर 'सर्वगुण संपन्न' का भी भारी दबाव रहता है। न केवल भारत बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन व जर्मनी जैसे लिंगभेद से परे समानता व आजादी वाले कई देश भी इस विचित्र मानसिकता से ग्रसित हैं। इस शोध में यह भी कहा गया है कि भारत में 96% महिलाएं अपनी शख्सियत को लेकर आत्मविश्वासी हैं।
इसके अन्य बहुत से कारणों में से एक बहुत ही चौंकाने वाला कारण जो सामने आया है, वह यह कि नई पीढ़ी की बेटियां चुपचाप अपनी मांओं से सबक लेती हैं। सिर्फ अपनी काया के दम पर आत्मविश्वासी बनने के बजाय अपने करियर और हुनर के प्रति ज्यादा सजग रहने लगी हैं।
देश की इस पहली एलोपेशियन सरवाइवर और मॉडल केतकी ने अपना ताज खुद से अपनी मर्जी के हीरों को जड़कर तैयार किया। मिसेस इंस्पिरेशन, मिसेस पॉपुलर, मिसेस पीपुल्स चॉइस, मिसेस यूनिवर्स वूमन ऑफ कॉंन्फिडेंट 2018 फिलीपीन्स जैसे ख़िताब अपने नाम करने वाली केतकी अपने दोनों बच्चों को प्यार करने वाली पशु प्रेमी भी है। अपने दोनों कुत्तों पर भी जान देती है।
वे भारत प्रेरणा अवॉर्ड, वूमन ऑफ वोर्दिनेस, उद्गम अवॉर्ड, इंस्पायरिंग वूमनहुड द वी अवॉर्ड, ज्वेल ऑफ इंडिया के अलावा पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन द्वारा 2020 में भी सोशल अवेयरनेस के लिए सराही गईं।
इन सभी आश्चर्यजनक उपलब्धियों की चमक से आज केतकी के माथे पर सजा मुकुट आंखों को चौंधिया देने की चमक रखता है। केतकी आदर्श है, प्रेरणा है उन सभी के लिए, जो किसी भी कमी पर पूरी जिंदगी तबाह कर लेते हैं। केतकी अपने आत्मविश्वास के मुकुट को स्वयं अपने माथे पर लिए घूमती है।
किसी भी देश में महिलाओं के लिए बने सामाजिक सौन्दर्य के पैमाने उस देश की आधी आबादी की रचनात्मकता, स्वास्थ्य, उत्पादन क्षमता, खुशियों, जीने की इच्छाओं व आत्मविश्वास पर बहुत हद तक नकारात्मक तरीके से प्रभावित करते हैं। हम महिलाओं को चाहिए कि हम खुद ही अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन व खुशियों की खातिर अपनी मर्जी से खुलकर जीने के लिए इन पैमानों को बदल डालें।
हमारी जिंदगी, हमारी सुन्दरता, हमारी मर्जी, हमारा हक है...!