मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए समीना बेगम और बेनज़ीर हिना का संघर्ष
एकतरफा तलाक के कारण ये मुस्लिम महिलाएं कोर्ट में ठोकरें खा रही हैं
-
2019 में तीन तलाक अपराध की श्रेणी में शामिल हो गया।
-
ये महिलाएं तलाक-ए-हसन को निरस्त करना चाहती हैं।
-
इसमें बहुविवाह, निकाह-हलाला और तलाक-ए-हसन जैसे मुद्दे शामिल।
Muslim Law Divorce : साल 1985 और 2019, ये दो ऐसे साल हैं जिसमें जब तीन तलाक का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद संसद तक पहुंचा और इस पर कानून बना। 1985 में शाहबानो ने हक दिलाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद के जरिए कानून बनाकर पलट दिया था। साथ ही 2019 में तीन तलाक अपराध की श्रेणी में शामिल हो गया है। लेकिन इसके बाद भी समीना बेगम और बेनज़ीर हिना अपनी हक की लड़ाई के लिए कोर्ट में ठोकरें खा रही हैं।
ALSO READ: विश्व महिला दिवस : क्यों महिलाएं पुरुष जैसा बनने की होड़ में खो रही अपना अस्तित्व?
तलाक-ए-हसन के खिलाफ जंग:
इन दोनों महिलाओं की मांग है कि मुस्लिम समाज में तलाक की एक प्रथा तलाक-ए-हसन के खिलाफ निरस्त करना चाहिए। इसके अलावा मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत जितनी भी एकतरफा तरीके से महिलाओं को तलाक दिया जा रहा है, उस पर बैन लगाया जाए। इसमें बहुविवाह, निकाह-हलाला और तलाक-ए-हसन जैसे मुद्दे शामिल हैं।
एकतरफा तलाक से महिलाओं को नुकसान:
बेनजीर हिना का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत एकतरफा तरीके से जितनी भी महिलाओं को तलाक दिया जा रहा है, उस पर बैन लगाया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे तलाक-ए-हसन मिला है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपनी पत्नियों के खिलाफ मुस्लिम मर्द और शौहर इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं।
कुरआन में नहीं है तलाक-ए-हसन का जिक्र:
मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि कुरआन में तलाक का जिक्र है लेकिन तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-बाइन या बिद्दत का उल्लेख कहीं भी नहीं है। सूरह निसा में तलाक का जिक्र किया गया है और उसमें बताया गया है कि अगर तलाक होगा तो कैसे होगा, जिसको कुछ लोगों द्वारा तलाक-ए-हसन का नाम दिया गया है।
क्या है तलाक-ए-हसन?
तलाक-ए-हसन में पति द्वारा तीन महीने की समय अवधि में पत्नी को तलाक दिया जाता है। पहले महीने में पहला तलाक पति देता है। इसके बाद घर से पत्नी को नहीं निकाला जाता और जो पत्नि है वो अगले दो महीने तक एक्सटेंशन पर रहेगी।
तलाक-ए-हसन में कैसे दिया जाता है तलाक?
पहला तलाक देने के बाद पत्नी अगले दो महीनों तक पति के साथ ही रहेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों के बीच किसी सुलह पर पहुंच पाने की संभावना हो। अगर इन 2 महीने में सुलह नहीं हो पाई तो फिर से पति अगले महीने में दूसरा तलाक देगा।
इसके बाद भी अगर दूसरे महीने में सुलह नहीं हो पाई तो वह अंतिम और तीसरे महीने में तीसरा तलाक देगा। इसके बाद इस तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया में भी कोई वकील बनेगा जो यह अप्रूव करेगा कि इतने दिनों में कोई सुलह हुई थी या नहीं, तीन महीने तक पत्नी पति के साथ रही थी और चूंकि दोनों के बीच कोई सुलह नहीं हो पाई तो अब आपसी सहमति से दोनों एक-दूसरे से अलग हो रहे हैं। इसके बाद ये निकाह खत्म हो जाता है।
हलाला, बहुविवाह और तलाक-ए-हसन के खिलाफ उनकी लड़ाई ने समीना और बेनज़ीर को सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया है और उन्हें वित्तीय संकट में डाल दिया है। हालांकि यह जरूर हुआ है कि तीन तलाक पर कानून बनने से धीरे धीरे मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार होगा।