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21 जून योग दिवस पर 21 आधुनिक योगियों का परिचय, जिन्होंने किया दुनियाभर में योग का प्रचार

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अनिरुद्ध जोशी

भारतीय योग की परंपरा भगवान शंकर से लेकर ऋषि भारद्वाज मुनि, वशिष्ठ मुनि और पराशर मुनि तक प्रचलित रही। फिर योगेश्वर श्रीकृष्ण से लेकर गौतम बुद्ध और पतंजलि, आदि शंकराचार्य, गुरु मत्स्येंद्रनाथ और गुरु गोरखनाथ तक अनवरत चलती रही। इसके बाद मध्यकाल में भी कई सिद्ध योगी हुए हैं। जैसे गोगादेव जाहर वीर, बाबा रामापीर रामदेव, समर्थ रामदास गुरु आदि। आओ जानते हैं आधुनिक काल के उन महान योगियों के बारे में जिन्होंने योग को फिर से संपूर्ण देश और दुनिया में प्रतिष्ठित किया।
 
 
1.महावतार बाबा-
महावतार बाबा का जन्म कब हुआ और वे कहां रहते हैं और क्या वे 5,000 वर्षों से जिंदा हैं? बाबा का यह रहस्य बरकरार है। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आदिशंकराचार्य को क्रिया योग की शिक्षा दी थी और बाद में उन्होंने संत कबीर को भी दीक्षा दी थी। इसके बाद प्रसिद्ध संत लाहिड़ी महाशय को उनका शिष्य बताया जाता है। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सुपरस्टार रजनीकांत द्वारा लिखित 2002 की तमिल फिल्म 'बाबा' बाबाजी पर आधारित थी। लाहिड़ी महाशय के शिष्य स्वामी युत्तेश्वर गिरि थे और उनके शिष्य परमहंस योगानंद ने अपनी किताब 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी' (योगी की आत्मकथा, 1946) में महावतार बाबा का जिक्र किया है। कहते हैं कि 1861 और 1935 के बीच महावतार बाबा ने कई संतों से भेंट की थी। लाहिड़ी महाशय और उनके शिष्य इस बारे में कहते आए हैं।
 
 
2.लाहिड़ी महाशय-
परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी युत्तेश्वर गिरी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के घुरणी गांव में हुआ था। योग में पारंगत पिता गौरमोहन लाहिड़ी जमींदार थे। मां मुक्तेश्वरी शिवभक्त थीं। काशी में उनकी शिक्षा हुई। विवाह के बाद नौकरी की। 23 साल की उम्र में इन्होंने सेना की इंजीनियरिंग शाखा के पब्लिक वर्क्स विभाग में गाजीपुर में क्लर्क की नौकरी कर ली। 23 नबंबर 1868 को इनका तबादला हेड क्लर्क के पद पर रानीखेत (अल्मोड़ा) के लिए हो गया। श्यामाचरण लाहिड़ी ने 1864 में काशी के गरूड़ेश्वर में मकान खरीद लिया फिर यही स्थान क्रिया योगियों की तीर्थस्थली बन गई। योगानंद को ‍पश्‍चिम में योग के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने ही चुना। कहते हैं कि शिर्डी सांईं बाबा के गुरु भी लाहिड़ी बाबा थे। लाहिड़ी बाबा से संबंधित पुस्तक 'पुराण पुरुष योगीराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी' में इसका उल्लेख मिलता है। इस पुस्तक को लाहिड़ीजी के सुपौत्र सत्यचरण लाहिड़ी ने अपने दादाजी की हस्तलिखित डायरियों के आधार पर डॉ. अशोक कुमार चट्टोपाध्याय से बांग्ला भाषा में लिखवाया था। बांग्ला से मूल अनुवाद छविनाथ मिश्र ने किया था।
 
 
3.परमहंस योगानंद (5 जनवरी 1893-7 मार्च 1952)-
परमहंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में हुआ। योगानंद के पिता भगवती चरण घोष बंगाल नागपुर रेलवे में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थे। उनके माता-पिता महान क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। परमहंस योगानंद 1920 में बोस्टन पहुंचे थे। उन्होंने लॉस एंजेलेस में ‘सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप’ की स्थापना की। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ (एक योगी की आत्मकथा) लिखी। उनकी इस उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति हिंदी में 'योगी कथामृत' के नाम से उपलब्ध है। इस कृति की लाखों प्रतियां बिकीं और इसने सबसे ज्यदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा का रिकॉर्ड कायम किया है। 7 मार्च 1952 को उनका लॉस एंजिल्स निधन हो गया।
 
 
4. महर्षि अरविंद-
5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। 21 वर्ष की उम्र के बाद वे स्वदेश लौटे तो आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी विचारधारा के कारण जेल भेज दिए गए। वहां उन्हें कृष्णानुभूति हुई जिसने उनके जीवन को बदल डाला और वे 'अतिमान' होने की बात करने लगे। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी। 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में उनका जन्म हुआ और 5 दिसंबर 1950 को पांडिचेरी में देह त्याग दी।
 
 
5.महर्षि महेश योगी (12 जनवरी 1918- 5 फरवरी 2008)-
भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी के आश्रम अनेक देशों में हैं। मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बड़ी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरु थे। महर्षि महेश योगी ने 1955 में योग के सिद्धांतों पर आधारित 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) के जरिये दुनियाभर में अपने लाखों अनुयायी बनाए। महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ। नीदरलैंड्स स्थित उनके घर में 91 वर्ष की आयु में 6 फरवरी 2008 को उनका निधन हो गया। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था।  

 
6.योगी शीलनाथ बाबा-
शीलनाथ बाबा का समाधि स्थल ऋषिकेश में है, लेकिन उन्होंने उनके जीवन का महत्वपूर्ण समय मध्यप्रदेश के देवास शहर में बिताया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में उनके कई धूना स्थान है। देवास में श्रीगुरु योगेंद्र शीलनाथ बाबा का अखंड धूना और ज्योत आज भी जलता रहता है। देवास के मल्हार क्षेत्र में बाबा की धूनी एक तपोभूमि है, जहां बाबा के धूने के अलावा उनके अधिकतर शिष्यों के समाधि स्थल भी हैं। शीलनाथ बाबा जयपुर के क्षत्रिय घराने से थे। 1839 में दीक्षा प्राप्ति के बाद बाबा ने उत्तराखंड के जंगलों में कठिन तप किया। इसके बाद उन्होंने देश-देशांतरों के निर्जन स्थानों पर भ्रमण किया। 1900 में वे उज्जैन क्षेत्र में पधारे, जहां उन्होंने भर्तृहरी की गुफा में ध्यान रमाया। उज्जैन के बाद कुछ दिन इंदौर में रहे तथा पुन: उज्जैन में आ गए। उज्जैन से ही उनकी प्रसिद्धि पूरे मालव राज्य में फैल गई थी। देवास में बाबा 1901 से 1921 तक रहे। तत्पश्चात अंतरप्रेरणा से ऋषिकेश में जाकर वहां चैत्र कृष्ण 14 गुरुवार संवत 1977 और सन् 1921 ई. के दिन 5.55 के समय ब्रह्मलीन हो उन्होंने समाधि ले ली। कहते हैं कि यहीं पर उनके गुरु की भी समाधि थी।
 
 
7.दादाजी धूनी वाले-
दादाजी धूनी वाले का समाधि स्थल मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में स्थित है। दादाजी का नाम स्वामी केशवानंदजी महाराज था और वे परिव्राजक योगी थे अर्थात भ्रमणशील थे। देश-विदेश में दादाजी के असंख्य भक्त हैं। दादाजी के नाम पर भारत और विदेशों में 27 धाम मौजूद हैं। सन् 1930 में दादाजी ने खंडवा शहर में समाधि ली। यह समाधि रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर है। उल्लेखनीय है कि योग में पारंगत व्यक्ति ही समाधि लेने की क्षमता रखता है।
 
 
8.गजानन महाराज-
गजानन महाराज की समाधि महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगांव में स्थित है। शेगांव के गजानन महाराज नाथ संप्रदाय के बहुत ही पहुंचे हुए दिगंबर योग थे। गजानन महाराज का जन्म कब हुआ, उनके माता-पिता कौन थे, इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। पहली बार गजानन महाराज को शेगांव में 23 फरवरी 1878 में बनकट लाला और दामोदर नमक दो व्यक्तियों ने देखा। एक श्वेत वर्ण सुंदर बालक झूठी पत्तल में से चावल खाते हुए 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण कर रहा था। 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण करने के कारण ही उनका नाम 'गजानन' पड़ा। मान्यता के अनुसार 8 सितंबर 1910 को प्रात: 8 बजे उन्होंने शेगांव में समाधि ले ली। माना जाता है कि बाळा भाऊ की मृत्यु के उपरांत नंदुरगांव के नारायण के स्वप्न में महाराज ने दर्शन दिए और मठ की सेवा करने का आदेश दिया।
 
 
9.तिरुमलाई श्रीकृष्णामाचार्य (18 नवंबर 1888-28 फ रवरी 1989)-
आधुनिक समय में हठ योग के महान व्याख्याता रहे श्रीकृष्णामाचार्य का देहांत 1989 में 101 वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने अपने आखिरी दिनों तक हठ योग की विनियोग प्रणाली का अभ्यास किया और उसकी शिक्षा दी। उन्होंने बाकी लोगों के साथ प्रसिद्ध जिद्दू कृष्णमूर्ति को भी योग सिखाया है। श्रीकृष्णामाचार्य के एक और मशहूर विद्यार्थी हुए बी.के.एस.अयंगर (14 दिसंबर 1918-20 अगस्त 2014) जो खुद भी एक गुरु थे। उनके पुत्र टी.के.वी. देसीकाचर अपने संत पिता की शिक्षाओं को जारी रखे हुए हैं।
 
 
10.राघवेंद्र स्वामी (1890-1996)-
बंगलौर से लगभग 250 किलोमीटर दूर कर्नाटक के एक छोटे से गांव, चित्रदुर्ग जिले के मलादीहल्ली के राघवेंद्र स्वामी जो ‘मलादीहल्ली स्वामीजी’ के नाम से मशहूर थे, ने मलादीहल्ली में अनथ सेवाश्रम ट्रस्ट की स्थापना की। उन्होंने मलादीहल्ली में अपना आधार रखते हुए दुनिया भर के 45 लाख से अधिक लोगों को योग सिखाया। उन्होंने योग की शिक्षा पलनी स्वामी से प्राप्त की थी। राघवेंद्र स्वामी सद्गुरु जग्गी वासुदेव के योग शिक्षक थे।

 
11.स्वामी कुवलयानंद (30 अगस्त, 1883-18 अप्रैल, 1966)-
स्वामी कुवलयानंद एक शिक्षाविद थे जिन्हें मुख्य रूप से योग के वैज्ञानिक आधारों के मार्गदर्शक शोध के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1920 में वैज्ञानिक अनुसंधान शुरू किया और 1924 में खासतौर पर योग के अध्ययन को समर्पित अपना पहला वैज्ञानिक जर्नल, योग मीमांसा प्रकाशित किया। स्वामी एक शोधकर्ता भी थे उन्होंने ज्यादातर शोध कैवल्यधाम हेल्थ एंड योगा रिसर्च सेंटर में किए, जिसकी स्थापना उन्होंने 1924 में की थी।

 
12.आनंदमूर्ति-
आधुनिक लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, सामाजिक विचारक और आध्यात्मिक नेता प्रभात रंजन सरकार ऊर्फ आंनदमूर्ति का 'आनंद मार्ग' दुनिया के 130 देशों में फैला हुआ है। उनकी किताबें दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है। परमाणु विज्ञान पर उनके चिंतन के कारण उन्हें माइक्रोवाइटा मनीषी भी कहा जाता है। आनंदमूर्ति का जन्म 1921 और मृत्यु 1990 में हुई थी। मुंगेर जिले के जमालपुर में एशिया का सबसे पुराना रेल कारखाना है। वे रेलवे के एक कर्मचारी थे। यह जमालपुरा आनंद मार्गियों के लिए मक्का के समान है। यहीं पर सन् 1955 में आनंद मार्ग की स्थापना हुई थी।

 
तंत्र और योग पर आधारित इस संगठन का उद्‍येश्य है आत्मोद्धार, मानवता की सेवा और सबकी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति। आनंदमार्ग के दुनिया भर में चिंतन केंद्र हैं जहां तंत्र, योग और ध्यान सिखाया जाता है। इस एकेश्वरवादी संगठन का मूल मंत्र है ' बाबा नाम केवलम'।

 
13. रमन महर्षि (30/12/1879-14/4/1950)-
महर्षि रमन के माता पिता ने उनका नाम वेंकटरामन अय्यर रखा था। 1902 में 'शिव प्रकासम पिल्लै' नामक व्यक्ति रमण के पास 14 प्रश्न स्लेट पर लिखकर लाये। इन्हीं 14 प्रश्नों के उत्तर रमण की पहली शिक्षाएं हैं। इनमें आत्म निरीक्षण की विधि है, जो कि तमिल में नान यार और अंग्रेज़ी में हू ऍम आई के नाम से प्रकाशित की गयी। फिर 80 के दशक में उनके मरणोपरांत उनकी नोटबुक्स सोलह खंडों में प्रकाशित हुई जो गंभीर योग के लिए एक रहस्यमी खजाना है।
 
 
14.स्वामी शिवानंद-
स्वामी शिवानंद (8 सितंबर 1887-14 जुलाई 1963):
स्वामी शिवानंद दार्शनिक होने के साथ ही योगाचार्य भी थे। उन्होंने योग, गीता और वेदांत पर 200 से अधिक किताबें लिखीं। स्वामी विष्णुदेवानंद उनके मशहूर शिष्य थे जिन्होंने ‘कंप्लीट इलस्ट्रेटेड बुक ऑफ योग’ नामक किताब लिखी। उनके दूसरे शिष्यों स्वामी सच्चिदानंद, स्वामी शिवानंद राधा, स्वामी सत्यानंद और स्वामी चिदानंद ने उनके प्रयासों को जारी रखा। स्वामी सत्यानंद ने 1964 में बिहार स्कूल ऑफ योग की स्थापना की। शिवानंद पहले मलेशिया में एक डॉक्टर थे बाद में उन्होंने भारत, यूरोप और अमेरिका में योग केंद्र खोले।
 
 
15.के. पट्टाभी जोईस-
के. पट्टाभी जोईस ने आष्टांग विन्यास योग के नाम से योग को प्रचारित और प्रसारित किया था। उनके शिष्यों में मैडोना, स्टिंग और ग्वेनेथ पैल्ट्रो समेत कई हॉलीवुड अभिनेताओं के नाम लिए जाते हैं।

 
16.बीकेएस अयंगर-
तिरुमलाई कृष्णमचार्य के शिष्य बीकेएस अयंगर ही वे योग गुरु थे जो योग को भारत से निकालकर पूरी दुनिया में ले गए। इन्होंने पतंजलि के योग सूत्रों को पुनः परिभाषित किया और दुनिया को 'अयंगर योग' का तोहफा दिया। वे 95 साल की उम्र में योग करते थे।

 
17.बिक्रम चौधरी-
बिक्रम चौधरी ने लोगों को आधुनिक तरीके से योग सिखाया। उन्होंने अपने ही नाम से एक योग पद्धति को चलाया, जिसे वे 'बिक्रम योगा' कहते हैं। कहते हैं कि योग से पहले वे जिम जाया करते थे लेकिन बाद में उन्होंने योग सिखा और फिर पश्‍चिमी दुनिया को योग सिखाया।

 
18..श्रीश्री रविशंकर-
दुनियाभर में 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' के माध्यम से प्रख्यात हुए श्रीश्री रविशंकर का जन्म 1956 में एक तमिल अय्यर परिवार में हुआ। 1981 में श्रीश्री फाउंडेशन के तहत उन्होंने 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' नामक शिक्षा की शुरुआत की। आज फाउंडेशन लगभग 140 देश में सक्रिय है। इस फाऊंडेशन ने दुनियाभर के लाखों लोगों को जीवन जीने की कला सीखाई है। योग के सातवें अंग ध्यान की सुदर्शन क्रिया और आत्म विकास के इस शैक्षणिक कार्यक्रम से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने कुंठा, हिंसा और अपनी बुरी आदतें छोड़ दी है।

 
19.बाबा रामदेव-
बाबा रामदेव ऊर्फ रामकृष्ण यादव का जन्म 1965 को हरियाणा में हुआ। नौ अप्रैल 1995 को रामनवमी के दिन संन्यास लेने के बाद वे आचार्य रामदेव से स्वामी रामदेव बन गए। प्रारंभ में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। बाद में योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए पतंजलि योग पीठ की स्थापना की। छह अगस्त 2006 को इसका उद्‍घाटन किया गया। योग और आयुर्वेद का यह दुनिया का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है। बाबा रामदेव के कारण योग को पूरी दुनिया में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। बाबा ने दुनियाभर की यात्रा कर वहां योग शिविर लगाएं हैं। देश के कई स्थानों पर योग शिविर का उन्होंने सफलतम आयोजन कर लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया है।
 
 
20.जग्गी वासुदेव-
कर्नाटक के रहने वाले जग्गी वासुदेव ने इशा फांउंडेशन की शुरुआत की है जिसके माध्यम से वे पूरी दुनिया को योग सिखाते हैं। कुछ दिन पहले भगवान शिव की जिस आदमकद मूर्ति का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उद्घाटन किया था उसका निर्माण जग्गी वासुदेव की ओर से ही करवाया गया। जग्गी वासुदेव को उनके शिष्य सद्गुरु कहते हैं। सद्गुरु के कारण विश्‍व में भारत का सम्मान बढ़ा है। उन्होंने लगभग 8 भाषाओं में 100 से अधिक पुस्तकों की रचना की है।

 
21.योग गुरु भारत भूषण-
यूपी के सहारनपुर निवासी योग गुरु भारत भूषण को योग का प्रचार प्रसार देश के साथ ही विश्‍व में करने के ‌लिए जाना जाता है। योगी भारत भूषण ने शुरुआत बॉडी बिल्डिंग से की थी लेकिन जल्द ही इनका रुख योग की ओर मुड़ गया। योग के क्षेत्र में भारत भूषण की उपलब्धियों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हें देश के पहले ऐसे योग गुरु के रूप में जाना जाता है जिन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया।
 
महायोगी ओशो, बाबा नीम करोली और शिरडी के सांई बाबा के चरणों में नमन। इसी तरह के और भी लोग छूट गए हैं उनके भी चरणों में नमन।

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