डायबिटीज आजकल वैश्विक समस्या है। यह दो प्रकार की होती है टाइप 1 और टाइप 2..। डायबिटीज को शुगर और मधुमेह भी कहा जाता है। यदि समय पर इसे कंट्रोल नहीं किया तो यह रोग गंभीर और लाइलाज हो जाता है। डायबिटीज न हो या हो जाए तो कंट्रोल में रखने के लिए नियमित करें 5 योगासन और मात्र 1 प्राणायाम।
1. कुर्मासन योग : वज्रासन में बैठ जाएं। फिर अपनी कोहनियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर हथेलियों को मिलाकर ऊपर की ओर सीधा रखें। इसके बाद श्वास बाहर निकालते हुए सामने झुकिए और ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। इस दौरान दृष्टि सामने रखें और हथेलियों को ठोड़ी या गालों से स्पर्श करके रखें। कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद श्वास लेते हुए वापस आएं। यह आसन और भी कई तरीकों से किया जाता है, लेकिन सबसे सरल तरीका यही है।
दूसरी विधि : सबसे पहले दंडासन की स्थिति में बैठ जाएं। फिर दोनों घुटनों को थोड़ा-सा ऊपर करके कमर के बल झुकते हुए दोनों हाथों को घुटनों के नीचे रखते हुए उन्हें पीछे की ओर कर दें। इस स्थिति में हाथों की बांहे घुटनों को स्पर्श करती हुई और हथेलियां पीछे की ओर भूमि पर टिकी हुई रहेगी। इसके पश्चात्य धीरे-धीरे ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। यह स्थिति कुर्मासन की है। सुविधा अनुसार कुछ देर तक रहने के बाद वापस लौट आएं।
2. उष्ट्रासन : वज्रासन की स्थिति में बैठ जाते हैं, उसके बाद घुटनों के ऊपर खड़े होकर एड़ी-पंजे मिले हुए तथा पैरों के अँगूठे की आकृति अंदर की ओर रखते हैं। अब दोनों हाथों को सामने से ऊपर की ओर ले जाते हैं। दोनों हाथ को कान से मिलाकर रखते हैं। ऐसी स्थिति में दोनों हाथों के मध्य सिर रहता है। उसके बाद सिर से जंघाओं का भाग पीछे की ओर उलटते हुए हाथ के पंजों से एड़ियों को पकड़ें या पगथलियों पर हथेलियाँ रखें। उसके बाद गर्दन को ढीला छोड़ते हुए कमर को ऊपर की ओर ले जाएँ तथा सिर पीछे की ओर लटका रहे, अर्थात झुका रहेगा। वापस आते समय दोनों हाथों को घुमाते हुए वापस आ जाते हैं तथा वज्रासन खोल देते हैं।
3. ताड़ासन : यह आसन खड़े रहकर किया जाता है। एड़ी-पंजों को समानान्तर क्रम में थोड़ा दूर रखें। हाथों को सीधा कमर से सटाकर रखें। फिर धीरे-धीरे हाथों को कंधों के समानान्तर लाएँ। फिर जब हाथों को सिर के ऊपर ले जाएँ। पैर की एड़ी भी जमीन से ऊपर उठाकर सावधानी से पंजों के बल खड़े हो जाएँ। फिर फिंगर लॉक लगाकर हाथों के पंजों को ऊपर की ओर मोड़ दें और ध्यान रखें कि हथेलियाँ आसमान की ओर रहें। गर्दन सीधी रखें। वापस आने के लिए हाथों को जब पुन: कंधे की सीध में समानान्तर क्रम में लाएँ तब एड़ियों को भी उस क्रम में भूमि पर टिका दें। फिर दोनों हाथों को नीचे लाते हुए कमर से सटाकर पुन: पहले जैसी स्थिति में आ जाएँ। अर्थात विश्राम।
4. हलासन : पहले पीठ के बल भूमि पर लेट जाएँ। एड़ी-पंजे मिला लें। हाथों की हथेलियों को भूमि पर रखकर कोहनियों को कमर से सटाए रखें। अब श्वास को सुविधानुसार बाहर निकाल दें। फिर दोनों पैरों को एक-दूसरे से सटाते हुए पहले 60 फिर 90 डिग्री के कोण तक एक साथ धीरे-धीरे भूमि से ऊपर उठाते जाएँ। घुटना सीधा रखते हुए पैर पूरे ऊपर 90 डिग्री के कोण में आकाश की ओर उठाएँ। फिर हथेलियों को भूमि पर दबाते हुए हथेलियों के सहारे पैरों को पीछे सिर की ओर झुकाते हुए पंजों को भूमि पर रख दें। अब दोनों हाथों के पंजों की संधि कर सिर से लगाए। फिर सिर को हथेलियों से थोड़-सा दबाएँ, जिससे आपके पैर और पीछे की ओर जाएँ। इसे अपनी सुविधानुसार जितने समय तक रख सकते हैं रखें, फिर धीरे-धीरे इस स्थिति की अवधि को दो से पाँच मिनट तक बढ़ाएँ।
5. वक्रासन : दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाते हैं। दोनों हाथ बगल में रखते हैं। कमर सीधी और निगाह सामने रखें। दाएँ पैर को घुटने से मोड़कर लाते हैं और ठीक बाएँ पैर के घुटने की सीध में रखते हैं, उसके बाद दाएँ हाथ को पीछे ले जाते हैं, जिसे मेरुदंड के समांतर रखते हैं। कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद अब बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर यह आसन करें। इसके बाद बाएँ हाथ को दाहिने पैर के घुटने के ऊपर से क्रॉस करके जमीन के ऊपर रखते हैं। इसके बाद गर्दन को धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा पीछे की ओर देखने की कोशिश करते हैं।
कपालभाति प्राणायाम : सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठकर सांसों को बाहर छोड़ने की क्रिया करें। सांसों को बाहर छोड़ने या फेंकते समय पेट को अंदर की ओर धक्का देना है। ध्यान रखें कि श्वास लेना नहीं है क्योंकि उक्त क्रिया में श्वास स्वत: ही अंदर चली जाती है।