तंबाखू और शराब के नशे के चलते व्यक्ति अति भोजन, तनाव, कुंठा, अवसाद, निराशा और नकारात्मक विचार से ग्रस्त हो जाता है। जिस तंबाखू, शराब आदि की लत लग जाती है उसी तरह चिंतित रहने, तनाव में रहने, अवसाद या डिप्रेशन में रहने और नकारात्मक विचार करते रहने की लत भी लग जाती है। क्रोध करने और संदेह करने की भी आदत होती है। ऐसी कई मानसिक आदतें हैं जिनसे छुटकारा मात्र योग से ही माया जा सकता है।
जरूरी नहीं कि आप बुरी आदतों के शिकार बन गए हों और आप उन्हें छोड़ना चाहते हों। अच्छी आदतें भी नुकसान पहुंचाने वाली सिद्ध हो सकती है या कहें कि किसी भी प्रकार की आदत या लत का होना ही नुकसानदायक है। मन और भावनाओं पर विजय प्राप्त करने में योग के अतिरिक्त इस संसार में दूसरी किसी तकनीक से मदद नहीं मिल सकती। अपनी खोई हुई आत्मशक्ति को पुन: प्राप्त करने में योग एक रामबाण औषधि का कार्य करता है।
1. अच्छी आदतों का अभ्यास करें : हमारे मन या चित्त पर किसी भी प्रकार की आदतें चिपक सकती है। आदतें बनती है अभ्यास से। जैसे मंत्र जपने का अभ्यास किया तो धीरे-धीरे मंत्र जपने की आदत पड़ जाएगी। फिर जब आप मंत्र नहीं भी जप रहे होंगे तब भी आपके मन में मंत्र चलता रहता है। तब सिद्ध हुआ की दोहराव से आदतों का जन्म होता है।
यदि शराब पीने का अभ्यास किया है तो शराब एक आदत बन जाएगी और यदि दुखी रहने में आनंद को ढूंढा तो जब दुख नहीं होगा तब भी व्यक्ति स्वयं को दुखी ही महसूस करेगा। सब कुछ आदतों का खेल है और आदतें जन्मती है अभ्यास या दोहराव से। मन तो किसी भी अच्छी और बुरी बातों को पकड़ना जानता है।
2.संकल्प प्रणायाम : सर्वप्रथम संकल्प लें कि आदतें छोड़ना है। फिर प्रणायाम को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। जब भी आपकी तंबाखू खाने, शराब पीने या नकारात्म विचार सोचने की इच्छा या क्रिया शुरू होती है तब आपके श्वासों की गति बदल जाती है। यदि आप इस पर ध्यान देगें तो जल्द ही समझ जाएंगे की प्रणायाम कितना जरूरी है। क्रोध आता है तब श्वासें तेज चलने लगती है और उसी वक्त आप जोर से सिर्फ एक बार भ्रस्त्रिका कर लेते हैं तो क्रोध तुरंत ही तिरोहित हो जाता है।
3. रिवर्स गियर्स : जिस तरह क्रमश: आदतों को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है उसी तरह क्रमश: उन्हें जीवन से अलग किया जा सकता है। मान लो कि आप पहले एक दफे तंबाखू खाते थे और फिर अब चार दफे तो तीन, दो और पुन: उसे एक दफे पर लाकर छोड़ दें। यह बहुत आसान है।
4. योग पवित्रता : आप पवित्रता के बारे में सोचे और सोचे कि क्यों आप अपने शरीर और मन को अपवित्र रखना चाहते हैं। पवित्रता सभी धर्मों का मूल है जिसे योग में शौच कहा जाता है। जब भी नकारात्मक विचार आएं आप तुरंत ही एक अच्छा विचार भी सोचे और इस तरह अच्छे विचार की आदत डालें। यदि आप निरंतर योग आसन और प्रणायाम, करते हैं तो यह बहुत आसान होगा।
5. प्रतिदिन करें योगाभ्यास : आप रोज सुबह और शाम को मात्र सूर्य नमस्कार की ही 12 स्टेप को 12 बार करें। यदि इसे आप अपने जीवन का हिस्सा बना लेंगे तो चमत्कारिक रूप से फायदा होगा, लेकिन यदि आप इसे नियमित नहीं करते हैं तो फिर इसका कोई लाभ नहीं। अभ्यास से ही सबकुछ बदलता है।
अंतत: आदमी आदतों का पुतला है। चित्त पर किसी भी प्रकार की अच्छी और बुरी आदतों का जाल नहीं होगा तो चित्त निर्दोष और निर्मल रहेगा, जिससे शरीर और मन दोनों ही स्वस्थ्य अनुभव करेंगे। तो ध्यान दें अपने खान-पान, अपने व्यवहार और अपने विचार पर। तीनों को ही शुद्ध और बुद्ध बनाने का प्रयास करें। इनके शुद्ध होने से सेहत और खुशी दोनों ही आपको मिलेगी।