यहाँ के शाही किला एवं आहुखाना रोशनी में नहाएगा। जिला प्रशासन ने पुरातात्विक महत्व के ऐतिहासिक स्मारकों पर विद्युत सज्जा के लिए पाँच लाख 63 हजार 84 रुपए की धनराशि स्वीकृत की है। शताब्दियों बाद यह प्राचीन स्मारक रोशन होने जा रहे है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गणतंत्र दिवस तक इन स्मारकों पर स्थाई विद्युत सज्जा किया जाना प्रस्तावित है।
कलेक्टर आशुतोष अवस्थी ने बताया कि जिले में इतिहास का प्रतीक शाही किला एवं आहूखाना के सौंदर्य को बढ़ाने एवं पर्यटकों को रिझाने के लिए प्राचीन स्मारकों पर विद्युत सज्जा की जाएगी। नगर निगम इन ऐतिहासिक इमारतों पर विद्युत सज्जा करेगा।
बुरहानपुर में सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के तट पर स्थित सात मंजिला शाही किले का निर्माण फारुकी काल में हुआ है। फारुकी बादशाह मीर आदिल शाह फारुकी द्वारा निर्मित यह किला बाद में मुगलों के आधिपत्य में आ गया। मुगल बादशाह शाही किले में आकर रहने लगे। सात जून 1631 की रात्रि में हिन्दुस्तान की मलिका बेगम मुमताज
महल ने भी शाही किले में अंतिम साँस ली थी। दक्षिण पर विजय के बाद
मुगल बादशाह शाहजहाँ ने यहाँ पर बड़ा जश्न कर बुरहानपुर को 'दारूस सरूर' की उपाधि से अलंकृत किया था। मुगल बादशाह जहाँगीर के पुत्र दक्षिण के सूबेदार हजादा खुसरो की मृत्यु भी यहीं पर हुई थी। मुगल बादशाह औरंगजेब जब किले में ठहरे थे तो किले के बारूदखाने में आग लगने से किले को बड़ा नुकसान हुआ था।
बुरहानपुर से लगे आहूखाना का भी इतिहास में बड़ा महत्व है। फारूकी और मुगलों का शिकारगाह रहे आहूखाना में हिन्दुस्तान की मलिका बेगम मुमताज के शव को 6 माह तक सुरक्षित रखा गया था। दक्षिण के सूबेदार रहे अब्दुल रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी के पेड लाकर लगाए थे। मुगलबादशाह औरंगजेब और हीरा जैनाबादी का प्रेमप्रसंग भी आहूखाना से जुड़ा है। गौरतलब है कि पिछले दो-तीन सालों से शहर को देश के पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए प्रशासन विभिन्ना कदम उठा रहा है।