Dharma Sangrah

84 महादेव : श्री गुहेश्वर महादेव(2)

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तत्रास्ते सर्वदा पुण्या सप्तकालपोद्भवा गुहा।
पिशाचेश्वरदेवस्य उत्तरेण व्यवस्थिता ।।
उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक गुहेश्वर महादेव का मंदिर रामघाट पर पिशाच मुक्तेश्वर के पास सुरंग के भीतर स्थित है । गुहेश्वर महादेव का पौराणिक आधार ऋषि मंकणक, उनके अभिमान और फिर उनकी तपस्या से जुड़ा हुआ है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक महायोगी थे जिनका नाम मंकणक था। वे वेद-वेदांग में पारंगत थे। वे सिद्धि की कामना में हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। एक बार वे देवदारु वन में तपस्या कर रहे थे उसी दौरान उनके हाथ में कुश का कांटा लग गया किन्तु रक्त के स्थान पर शाक रस बहने लगा। यह देख ऋषि मंकणक अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अभिमान हुआ कि यह उनकी सिद्धि का फल है। वे गर्व करके नृत्य करने लगे। इससे सारे जगत में हाहाकार मच गया जिसके फलस्वरूप नदियां उल्टी बहने लगी तथा ग्रहों की गति उलट गई। यह देख सभी देवी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे ऋषि को रोकने का आग्रह किया।
 
 
देवताओं को सुनने के बाद शिवजी ऋषि के पास पहुंचे और उन्हें नृत्य करने से मना किया। ऋषि ने अभिमान के साथ अपनी सिद्धि के बारे में भगवान शिवजी को बताया । इस पर शिवजी ने अपनी अंगुली के अग्र भाग से भस्म निकाली और कहा कि देखो मुझे इस सिद्धि पर अभिमान नहीं है और मैं नाच भी नहीं रहा हूं। भगवान शिव की बात सुनने के बाद ऋषि काफी लज्जित हुए और उन्होंने क्षमा मांगी, साथ ही उन्होंने तप की वृद्धि का उपाय पूछा। तब शिवजी ने आशीर्वाद देकर कहा कि महाकाल वन जाओ, वहां सप्तकुल में उत्पन्न लिंग मिलेगा, उसके दर्शन करो, उसके दर्शन मात्र से तुम्हारा तप बढ़ जाएगा। ऋषि महाकाल वन गए जहां उन्हें वह लिंग एक गुफा के पास मिला। ऋषि ने लिंग की पूजा-अर्चना की जिसके बाद ऋषि को सूर्य के समान तेज प्राप्त हुआ साथ ही उन्होंने कई दुर्लभ सिद्धियों को भी प्राप्त कर लिया। बाद में वही लिंग गुहेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
ऐसा माना जाता है कि इनके दर्शन एवं अर्चन से अहंकार नष्ट होता है एवं सिद्धियों का सदुपयोग करने की समर्थता आती है। श्रावण मास के अलावा अष्टमी और चौदस के दिन दर्शन का विशेष महत्व माना गया है।

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