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साहित्य के लिए अहम रहा वर्ष 2008

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साहित्य के हर क्षेत्र के लिए वर्ष 2008 काफी अहम रहा। इस वर्ष हार्पर क ॉलिंस ने हिन्दी प्रकाशन में कदम रखा और हिन्दी में कहानी लिखने वाली स्विस लड़की स्नोवा बार्नो चर्चा में रही।

क े. क े. बिरला फाउंडेशन का 2007 का वाचस्पति पुरस्कार स्वामी रामभद्राचार्य को महाकाव्य श्रीभार्गवाराघवाचार्य के लिए दिया गया। 2007 का बिहारी पुरस्कार यशवंत व्यास को उनके हिन्दी उपन्यास कामरेड गोडसे के लिए और 2007 का शंकर पुरस्कार आरएस त्रिपाठी को दिया गया।

बांग्ला कवि सुनील गंगोपाध्याय को साहित्य अकादमी का अध्यक्ष और पंजाबी लेखक एस एस नूर को उपाध्यक्ष चुना गया। ज्ञानपीठ का 2005 का मूर्तिदेवी सम्मान रामकृष्ण शर्मा को दिया गया।

मई में साहित्य के क्षेत्र की सबसे अहम घटना अंग्रेजी प्रकाशन समूह हार्पर कालिंस का हिन्दी के क्षेत्र में उतरना रही। इस समूह ने हार्पर हिर्न्दीं नाम से हिन्दी प्रकाशन उद्योग में कदम रखा।

के के बिरला फाउंडेशन का 2006 का सरस्वती सम्मान ओडिया लेखक जे पी दास और 2007 का सरस्वती सम्मान उर्दू लेखक डा. नैयर मसूद को दिया गया।

भारतीय लेखक अरविन्द अडिगा को उनके पहले उपन्यास व्हाइट टाइगर के लिए बुकर पुरस्कार का मिलना इस साल भारतीय साहित्य जगत की एक बड़ी घटना रही। अमिताभ घोष के उपन्यास सी आफ पोपीज को पुरस्कार का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। लेकिन जूरी की नजर में वह दूसरे नंबर पर रहा।

इस साल दो ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा की गयी। 2005 का 41 वाँ ज्ञानपीठ हिन्दी कवि कुँवर नारायण को और 2006 का 42 वाँ ज्ञानपीठ कोंकणी लेखक रवीन्द्र केलकर और संस्कृत लेखक सत्यव्रत शास्त्री को संयुक्त रूप से दिया गया।

समकालीन हिन्दी साहित्य के रचनाकार गोविन्द मिश्रा सहित भारतीय भाषाओं के सात उपन्यासकारों छह कवियों पाँच लघुकथाकारों दो आलोचकों और एक निबंध लेखक को 2008 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।

2008 में पूरे साल जयजयवंती संस्थान कम्प्यूटर और हिन्दी को लेकर मासिक कार्यक्रम आयोजित करता रहा। इसमें हिन्दी में लिखे जा रहे ब्लॉग के पाठ को जोड़कर हिन्दी को तकनीक के लिए सहज भाषा के तौर इस्तेमाल करने को बढ़ावा मिला।

इस साल हिन्दी में विदेशी प्रकाशक तो आये ही साथ ही विदेशों रहने वाले हिन्दीभाषियों ने हिन्दी के विकास में खासा योगदान दिया। इसके अलावा मारीशस में हिन्दी के विकास के लिए हिन्दी सचिवालय की स्थापना की गयी।

प्रसिद्ध कथाकार संपादक राजेन्द्र यादव के अनुसार 2008 में साहित्य के हर क्षेत्र में एक नयी पीढ़ी सामने आई जिसके अंदर काफी संभावनाएँ दिखाई दीं। इस दौरान कुछ अच्छे उपन्यास सामने आए।

साहित्य जगत में इस साल सबसे अधिक हंगामा उस समय हुआ जब स्विस लड़की स्नोवा बार्नो की पहली कहानी मुझे मेरे घर छोड़ आइए हंस के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई। अब तक उसकी चार कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।

राजेन्द्र यादव के अनुसार स्नोवा की लिखी कहानियाँ इस साल हिन्दी में प्रकाशित श्रेष्ठ कहानियों में रहीं।

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