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2009 : कला की दुनिया पर खास निगाह

2010 में है इन्द्रधनुषी अपेक्षाएँ

रवींद्र व्यास
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यह भारती य चित्रकला जगत के लिए इस मायने में एक बड़ी खबर है कि हिंदुस्तान के दो दिग्गज चित्रकारों की दिसंबर में लंदन में पेंटिंग्स एक्जीबिशन आयोजित हुई। ये दो दिग्गज हैं 94 साल के मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन और 85 साल के सैयद हैदर रजा। इसमें कोई दो मत नहीं कि जिन कलाकारों ने बरसों पहले प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप की स्थापना की थी उसकी यात्रा इन दो चित्रकारों के रूप में आज भी जारी है।

यह बात पूरी ताकत से कही जानी चाहिए कि भारतीय समकालीन कला परिदृश्य में इन दो ऊर्जावान और स्वप्निल चित्रकारों की मौजूदगी युवा कलाकारों के लिए बहुत मायने रखती है। यह बात किसी कोई बात कहने की रियायत के तहत नहीं कही जा रही है बल्कि इसमें वह सच्चा और खरा सच है कि इन दोनों की सतत रचनात्मकता के कारण ही आज समकालीन भारतीय चित्रकला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न केवल पहचान बल्कि प्रतिष्ठा हासिल हुई है।

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इन्हीं के समकक्ष दिग्गज चित्रकार तैयब मेहता का निधन भारतीय चित्रकला के लिए एक बड़ी क्षति थी। चुपचाप रचनारत रहने वाले इस कलाकार ने बेहतरीन चित्रकृतियाँ ही नहीं रचीं बल्कि अपनी कला-दृष्टि से कला में मौलिक आकारों का सृजन किया। सेलिब्रेशन से लेकर महिषसुर जैसी कृतियाँ रचीं जो अंतरराष्ट्रीय कला बाजार में करोड़ों में बिकीं। उनकी चित्र श्रृंखला फालिंग फिगर विख्यात रही है। इन्हीं के समकक्ष दिग्गज चित्रकार रामकुमार की कला यात्रा जारी है और कृष्ण खन्ना जैसे दिग्गज चित्रकार का ललित कला अकादमी में रेट्रोस्पेटिक्टव आयोजित हुआ।

लेकिन इन कलाकारों के अलावा जिन युवा कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की उनमें अतुल डोडिया और सुबोध गुप्ता के नाम निर्विवाद लिए जा सकते हैं। अतुल डोडिया लगातार प्रयोगर्धर्मिता के जरिये नए-नए रूपाकार गढ़ते रहे हैं। उनकी एक पेंटिंग किचन तो एक करोड़ रुपए में बिकी थी। इसी तरह से सुबोध गुप्ता ने इंस्टालेशन के जरिये विश्वस्तर पर सराहना हासिल की। इंग्लैंड और इटली में उनके विशाल इंस्टालेशन को ख्यात समीक्षकों से लेकर कला प्रेमियों ने खासा सराहा था। अमूर्त चित्रकला में प्रभाकर कोलते ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप कला यात्रा जारी रखी है तो अंबादास जैसे चित्रकारों ने अमूर्त शैली को गरिमा और आभा दी है। युवा अमूर्त चित्रकारों में मनीष पुष्कले और अखिलेश ने लगातार अपनी ऊर्जावान मौजूदगी का अहसास कराया है।

महिला चित्रकारों में अंजलि इला मेनन ने अपनी खूबसूरत आकृतिमूलक चित्रकृतियों में अपनी अभिनव योजना और संवेदनशीलता से कला को नए आयाम दिए। फिगरेटिव आर्टिस्ट ज्योति बर्मन भी अपनी कला सतत जारी रखे हुए हैं। अपर्णा कौर ने ठेठ भारतीयता से रस और रूप लेकर अपनी चित्रकला को उड़ान दी है। उनके चित्रों ने स्त्री संसार के अनोखे और अनूठे बिम्ब देखे जा सकते हैं। सुजाता बजाज ने अपनी अमूर्त चित्रकृतियों में चटख रंगों का पूरी निर्भीकता से इस्तेमाल किया है और कहीं-कहीं संस्कृति-श्लोकों का इस्तेमाल भी।

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निश्चित ही विश्वस्तर पर आर्थिक मंदी के कारण कला बाजार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा और चित्रकृतियों की कीमतों में कमी आई लेकिन इसके बावजूद यह बात सहज ही कही जा सकती है कि भारतीय कला के वरिष्ठ और युवा चित्रकारों ने कला ऊर्जा और उत्साह में कोई कमी नहीं आई। ये तमाम कलाकार न केवल दूसरों के लिए प्रेरणा बने हैं बल्कि अपनी राहों के अन्वेषी बनते हुए लगातार चित्रकृतिया ँ रच रहे हैं। निश्चित ही यह नया साल समकालीन भारतीय चित्रकला के ज्यादा चमकदार रूप और रंग और प्रयोग देखने को मिलेंगे।

विगत दिनों ही भारत के नामी फोटोग्राफर रघु राय की विशिष्ट फोटो प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। इस प्रदर्शनी में वयोवृद्ध संगीतकारों से लेकर नवोदित संगीतकारों तक के दुर्लभ और आकर्षक छायाचित्र को संजोया गया था।

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