वर्ष 2012 : दुनिया का राजनीतिक परिदृश्य

शरद सिंगी
वर्ष 2012 लगभग ढल चुका है। समय है विश्व की वर्ष भर की उन महत्वपूर्ण राजनैतिक हलचलों के पुनरावलोकन एवं विश्लेषण करने का जिनका प्रभाव आगामी वर्षों में विश्व के राजनैतिक परिदृश्य पर पड़ेगा।

सुदूर पूर्व : वर्ष के अंत में सुदूर पूर्व के तीन प्रमुख राष्ट्रों चीन, जापान और दक्षिणी कोरिया में सत्ता परिवर्तन हुआ। दक्षिणी कोरिया के इतिहास में पहली बार एक महिला राष्ट्रपति चुनी गईं, जिनका नाम पार्क ग्यून हाई है। चुनौती है उनके सामने उत्तरी कोरिया के उन्मादी शासकों से दक्षिण कोरिया की रक्षा करने की तथा उत्तरी कोरिया की त्रस्त जनता को मानवीय सहायता पंहुचाने की।

उधर, जापान में तीन वर्षों बाद दक्षिण पंथी वापस सत्ता में आ गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है जापान के साथ सीमा विवादों पर चीन का उग्र रुख जापान में दक्षिणपंथियों की जीत के लिए जिम्मेदार है। चीन के उग्र रुख की वजह से जापान की जनता ने भी अपने उग्र दल को सत्ता पर आसीन कर दिया है।

दूसरी ओर चीन में क्सी जिनपिंग अगले दस सालों के लिए सत्ता के शीर्ष पर पहुंच चुके हैं। सेनकाकू द्वीपो को लेकर चीन और जापान में मचा घमासान और उग्र होने की संभावना है। दक्षिण चीन सागर में कई देशों के साथ समुद्री सीमा विवाद, भारत के साथ थल सीमा विवाद, धीमी होती अर्थव्यवस्था और आन्तरिक क्षेत्रीय क्लेश जैसी कई समस्याएं क्सी जिनपिंग के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। इन तीन देशों में हुए सत्ता परिवर्तन, निश्चित ही सुदूरपूर्व में नए राजनैतिक समीकरणों का निर्माण करेगी।

मध्यपूर्व : मिस्र में तानाशाह हुस्नी मुबारक के विरुद्ध हुई सफल जनक्रांति के बाद, वर्ष के मध्य में पहली बार चुनाव हुए जिसमें मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता मुर्सी विजयी हुए। उन्होंने नया संविधान रचकर वापस मत संग्रह करवाया और जीते। विपक्ष और विश्व में कई देशों को नए संविधान के कुछ मसौदों पर आपत्तियां हैं और ये आपत्तियां आगे चलकर किस आंदोलन का रूप लेंगी, यह तो भविष्य बताएगा।

वर्ष के प्रारंभ में मध्य पूर्व के एक अन्य देश यमन में भी सत्ता परिवर्तन हुआ जब देश के तत्कालीन तानाशाह अब्दुल्ला सालेह को जन आंदोलन के दबाव में अमेरिका में शरण लेनी पड़ी। वे सत्ता अपने उपराष्ट्रपति पर छोड़कर अमेरिका इलाज के बहाने चले गए।

उधर सीरिया के तानाशाह शासक बशार के खिलाफ सन 2011 में शुरू हुआ रक्त रंजित जन संघर्ष अब भी जारी है। दुनिया, जनता और विपक्षी क्रन्तिकारी दलों के भारी दबाव के बावजूद बशार कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं। नवंबर में कतर में हुए एक सम्मलेन में सीरिया के लगभग सभी विपक्षी और क्रांतिकारी दलों ने एक गठबंधन बनाने की घोषणा की जिसे हाथों हाथ कई देशों की मान्यता भी मिली। यह क्रांति राष्ट्रपति बशार के अपदस्थ होने तक जारी रहने की सम्भावना है।

यूरोप : वर्ष के प्रारंभ में फ़्रांस में चुनाव हुए। राष्ट्रपति सरकोजी की हार हुई। आर्थिक मंदी से निपटने की सरकोजी की नीतियों को फ्रांस की जनता ने नकार दिया। वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी फ्रांस्वा ओलांद ने फ्रांस की जनता से सरकारी मितव्ययिता की नीति को छोड़कर धन खर्च करके आर्थिक मंदी से फ्रांस को उबारने का वादा किया।

वहीं, कर्ज़ में गले तक डूबे यूरोप के एक अन्य देश ग्रीस में भी वर्ष के मध्य में चुनाव हुए। ग्रीस आज यूरो क्षेत्र की गले की हड्डी बना हुआ है जिसे यूरोपीय समुदाय न तो निगल पा रहा है न ही उगल पा रहा है। अपनी सरकार की बदहाली से त्रस्त जनता ने सत्ता पर बैठे लोगों को सत्ता से बाहर किया, किंतु नई सरकार के पास भी इस समस्या का कोई शीघ्र समाधान नहीं है।

जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों की वित्तीय मदद से ग्रीस किसी तरह समय तो निकाल रहा है, किन्तु कर्ज देने वाले देशों की वित्तीय मितव्यता की कठोर शर्तें आम आदमी को पसंद नहीं। आनेवाला वर्ष उनके लिए और संघर्ष भरा होगा।

अमेरिका : राष्ट्रपति ओबामा अपने दूसरे और अंतिम कार्यकाल के लिए तो चुन लिए गए पर उनकी राहें भी आसन नहीं हैं। एक तो प्रतिनिधि सभा में उनकी पार्टी का बहुमत नहीं होने से वे किसी भी नीतिगत निर्णय के लिए विपक्ष पर आश्रित हैं। यही विवशता उन्हें कोई कड़े कदम न उठाने को मजबूर करती है। आर्थिक मंदी, बन्दूक कानून, अप्रवासी कानून के साथ सुदूर पूर्व और मध्य पूर्व की अशांति उनके लिए चुनौतियों का सबब होंगी।

कुल मिलाकर विश्व बहुत कड़ी चुनौतियों के साथ 2013 में प्रवेश कर रहा है। कामना तो हम यही करेंगे की विश्व इन चुनौतियों को सहजता से पार ले। आमीन।

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