॥ श्रीकृष्ण अष्टक ॥

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चतुर्मुखादि-संस्तुं समस्तसात्वतानुतम्‌।

हलायुधादि-संयुतं नमामि राधिकाधिपम्‌॥1॥

बकादि-दैत्यकालकं स-गोप-गोपिपालकम्‌।

मनोहरासितालकं नमामि राधिकाधिपम्‌॥2॥

सुरेन्द्रगर्वभंजनं विरंचि-मोह-भंजनम्‌।

व्रजांगनानुरंजनं नमामि राधिकाधिपम्‌॥3॥


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मयूरपिच्छमण्डनं गजेन्द्र-दन्त-खण्डनम्‌।

नृशंसकंशदण्डनं नमामि राधिकाधिपम्‌॥4॥

प्रसन्नविप्रदारकं सुदामधामकारकम्‌।

सुरद्रुमापहारकं नमामि राधिकाधिपम्‌॥5॥

धनंजयाजयावहं महाचमूक्षयावहम्‌।

पितामहव्यथापहं नमामि राधिकाधिपम्‌॥6॥


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मुनीन्द्रशापकारणं यदुप्रजापहारणम्‌।

धराभरावतारणं नमामि राधिकाधिपम्‌॥7॥

सुवृक्षमूलशायिनं मृगारिमोक्षदायिनम्‌।

स्वकीयधाममायिनं नमामि राधिकाधिपम्‌॥8॥

इदं समाहितो हितं वराष्टकं सदा मुदा।

जपंजनो जनुर्जरादितो द्रुतं प्रमुच्यते॥9॥

॥ इति श्रीपरमहंसब्रह्मानन्दविरचितं कृष्णाष्टकं सम्पूर्णम्‌ ॥


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