मूली की खेती कर लाभ कमाएँ

Webdunia
बुधवार, 7 नवंबर 2007 (18:57 IST)
भोजन की बात हो और सब्जियों व सलाद की बात न हो यह तो हो ही नहीं सकता। सलाद का नाम लेते ही हमें याद आती है मूली। सलाद में एक प्रमुख स्थान रखने वाली मूली स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी, गुणकारी महत्व रखती है। साधारणतः इसे हर जगह आसानी से लगाया जा सकता है।

मूली की भरपूर पैदावार के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली हल्की दुमट मिट्टी उत्तम होती है। मूली की फसल किसान भाई अल्प समय में प्राप्त कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अतः कृषक भाइयों, जिनके घरों में कुओं, ट्यूबवेलों तथा खाली पड़ी खेती की जमीन उपलब्ध है तथा आवश्यकतानुसार भूमि में नमी बनाए रखने के लिए पानी की व्यवस्था है, वे अपने यहाँ मूली की खेती कर कम समय में लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

हर मौसम में उगा सकते हैं
आज के समय में यह कहना कि मूली सिर्फ इसी मौसम में लगाई जाती है या लगाई जाना चाहिए, उचित नहीं होगा, क्योंकि मूली हमें हर मौसम व समय में उपलब्ध हो जाती है। अतः कृषक भाई चाहें तो निर्धारित समय अंतराल के साथ ही कभी भी मूली की खेती कर सकते हैं। सामान्यतः मैदानी क्षेत्रों के लिए बुवाई के लिए सितंबर से फरवरी तक का समय उत्तम होता है। 5-6 जुताई कर खेत को तैयार किया जाए। मूली की एक हैक्टेयर खेती के लिए 5-10 किग्रा बीज पर्याप्त होता है। मूली की बुवाई खेत की मेढ़ों पर की जाती है। यहाँ मेढ़ों के बीच की दूरी 45 सेमी तथा ऊँचाई 22-25 सेमी रखी जाती है। किसान भाई यह अवश्य ध्यान रखें कि मूली के बीजों का बीजोपचार अवश्य हो। इसके लिए थीरम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपयोग कर सकते हैं।

उन्नत किस्म का चयन करें
अन्य फसलों व सब्जियों की ही तरह मूली की भरपूर पैदावार के लिए आवश्यक होता है कि कृषक भाई उन्नत जाति का चयन करें। मूली की उन्नत किस्मों में प्रमुख हैं- पूसा हिमानी, पूसा चेतवी, पूसा रेशमी, हिसार मूली नं. 1, पंजाब सफेद, रैपिड रेड, व्हाइट टिप आदि। पूसा चेतवी जहाँ मध्यम आकार की सफेद चिकनी मुलायम जड़ वाली है, वहीं यह अत्यधिक तापमान वाले समय के लिए भी अधिक उपयुक्त पाई गई है। इसी तरह पूसा रेशमी भी अधिक उपयुक्त है तथा अगेती किस्म के रूप में विशष महत्वपूर्ण है। इसी तरह अन्य किस्में भी अपना विशेष महत्व रखती हैं तथा हर जगह, हर समय लगाई जा सकती हैं।

गोबर की खाद उपयुक्त
कृषक भाइयों को सलाह दी जाएगी कि वे अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अवश्य करवा लें। परीक्षण उपरांत ही वे अपने खेत में दी जाने वाली उर्वरकों व खाद की मात्रा निर्धारित करें। मूली की पैदावार के लिए गोबर-कचरे की कम्पोस्ट खाद का भरपूर उपयोग करें। साथ ही साधारणतः इसमें 75 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश देना चाहिए। गोबर व गोबर कचरे से बनी कम्पोस्ट खाद खेत की तैयारी के समय ही डाल देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा अंतिम जुताई में दे देना चाहिए तो लाभकारी होता है। मूली की बुवाई के पश्चात यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि मेढ़ों पर खरपतवारों की बढ़त न हो। खरपतवार के लिए समय-समय पर निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। साथ ही मेढ़ों पर मिट्टी भी चढ़ाते रहना चाहिए।

नमी का ध्यान रखें
मूली की जड़ों की अच्छी बढ़त के लिए आवश्यक है कि हम नमी का पर्याप्त ध्यान रखें। इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई की व्यवस्था करना चाहिए। मूली की फसल खुदाई के लिए 25 से 70 दिन में तैयार हो जाती है। विभिन्न किस्मों के पकने का समय प्रायः अलग-अलग होता है। अतः कृषक भाई खुदाई का अवश्य ध्यान रखें, क्योंकि खुदाई में थोड़ा भी विलंब जड़ों को खराब कर देता है, जो खाने योग्य नहीं रह पातीं। अतः कृषक भाई स्वास्थ्य के लिए लाभकारी सब्जियों में अपना विशेष महत्व रखने वाली सलाद का एक प्रमुख अंग मूली की खेती कर विपुल लाभ कमाएँ तथा अपनी आमदनी बढ़ाएँ। (नईदुनिया)

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