जानिए दशावतारों में शामिल असाधारण पुरुष भगवान परशुराम के पौराणिक किस्से

Webdunia
Parshuram Jyanati 2020
 
कुछ प्रसिद्ध रामायण वक्ताओं के मुख से कई बार यह सुनाई देता है कि परशुराम क्रोधी थे, जनकपुर में धनुष भंजन के बाद जब वह यज्ञ शाला में पहुंचे तो वे बड़े क्रुद्ध हुए। लक्ष्मण ने उन्हें खूब छकाया, जब भगवान श्री राम ने उनके धनुष में तीर का संधान किया तो राम के सम्मुख नतमस्तक होकर चले गए आदि-आदि। 
 
परशुराम दशावतारों में हैं। क्या उन्हें इतना भी आभास नहीं होगा कि यह धनुष किसने तोड़ा? क्या वह साधारण पुरुष हैं? 
 
श्री राम द्वारा धनुष तोड़ने के बाद समस्त राजाओं की दुरभिसंधि हुई कि श्री राम ने धनुष तो तोड़ लिया है, लेकिन इन्हें सीता स्वयंवर से रोकना होगा। वे अतः अपनी-अपनी सेनाओं की टुकड़ियों के साथ धनुष यज्ञ में आए समस्त राजा एकजुट होकर श्री राम से युद्ध के लिए कमर कस कर तैयार हो गए। 
 
धनुष यज्ञ गृह युद्ध में बदलने वाला था, ऐसी विकट स्थिति में वहां अपना फरसा लहराते हुए परशुराम जी प्रकट हो गए। वे राजा जनक से पूछते हैं कि तुरंत बताओ कि यह शिव धनुष किसने तोड़ा है, अन्यथा जितने राजा यहां बैठे हैं.... मैं क्रमशः उन्हें अपने परशु की भेंट चढ़ाता हूं। 
 
तब श्री राम विनम्र भाव से कहते हैं- हे नाथ शंकर के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। परशुराम-राम संवाद के बीच में ही लक्ष्मण उत्तेजित हो उठे, विकट लीला प्रारंभ हो गई। संवाद चलते रहे लीला आगे बढ़ती रही परशुराम जी ने श्री राम से कहा अच्छा मेरे विष्णु धनुष में तीर चढ़ाओ... तीर चढ़ गया, परशुराम जी ने प्रणाम किया और कहा मेरा कार्य अब पूरा हुआ, आगे का कार्य करने के लिए श्री राम आप आ गए हैं। गृह युद्ध टल गया। 
 
सारे राजाओं ने श्री राम को अपना सम्राट मान लिया, भेंट पूजा की एवं अपनी-अपनी राजधानी लौट गए। श्री राम के केंद्रीय शासन नियमों से धर्मयुक्त राज्य करने लगे। देश में शांति छाने लगी अब श्री राम निश्चिंत थे क्योंकि उन्हें तो देश की सीमाओं के पार से संचालित आतंक के खिलाफ लड़ना था, इसीलिए अयोध्या आते ही वन को चले गए। 
 
पंचवटी में लीला रची गई, लंका कूच हुआ। रावण का कुशासन समाप्त हुआ, राम राज्य की स्थापना हुई। अतः राम राज्य की स्थापना की भूमिका तैयार करने वाले भगवान परशुराम ही थे।
 
भगवान परशुराम के किस्से- 
 
भगवान परशुराम राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी उनके होने की चर्चा होती है। ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक वे धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे। पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी और अंतत: वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे। जानिए परशुराम के किस्से - 
 
- जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए।
 
- जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में श्री राम का अभिनंदन किया। 
 
- कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया। 
 
- उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। इस तरह परशुराम के अनेक किस्से हैं।
 
- असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था।
 
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