जूझना है जिन अंतरराष्ट्रीय मुद्‍दों से

Webdunia
अमेरिका के प्रथम नागरिक की शपथ लेने के साथ ही बराक ओबामा के सामने कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से निपटने की चुनौती होगी। जिन चुनौतियों का सामना अमेरिकी राष्ट्रपति को करना होगा वे इस प्रकार होंगे-

विश्व में अमेरिका की भूमिका : बुश प्रशासन से अलग अमेरिकी जनता चाहती है कि विश्व में अमेरिका की भूमिका अब कुछ अलग होनी चाहिए। अब तक बुश प्रशासन ने अमेरिका की विश्व में सुपरपावर के रूप में छवि विकसित की थी। ओबामा को यह छवि बदलने का प्रयत्न करना होगा और वैश्विक समस्याओं को कूटनीतिक तरीके से हल करने का दबाव रहेगा।

इराक में अमेरिकी सेना : ओबामा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही कहा था कि वे इराक से अमेरिकी सेना को वापस बुला लेंगे। इसके लिए बाकायदा उन्होंने समय सीमा भी तय की है। ओबामा के अनुसार वे 16 महीनों के भीतर ध ीरे- धीरे इराक से सेना वापस बुला लेंगे यानी मई 2010 तक वे इस वादे को पूर्ण कर लेंगे। हालाँकि अल कायदा से लड़ने के लिए कुछ सेना इराक में रहेंगी।

अफगानिस्तान से वापसी : ओबामा के लिए अफगानिस्तान काफी बड़ा मुद्दा है। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के चलते यह क्षेत्र और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। ओबामा ने यह भी कहा है कि वे अफगानिस्तान में सेना की दो ब्रिगेड और भेजेंगे। अल कायदा के नेटवर्क को समाप्त करने के लिए भले ही पाकिस्तान अपनी सहमति दे या नहीं, मुंबई की आतंकी घटना और उसमें 6 अमेरिकी नागरिकों के मारे जाने के बाद ओबामा को इस क्षेत्र में ध्यान ज्यादा देना होगा।

आतंक के विरुद्ध लड़ाई : बुश प्रशासन द्वारा 9 /11 की घटना के बाद आरंभ की गई आतंक के विरुद्ध लड़ाई को आगे बढ़ाने का कार्य भी ओबामा को करना पड़ेगा। ओबामा ने इस संबंध में नरम रुख अपनाने के संकेत दिए हैं और अमेरिकी कानून के अनुसार इस मुद्दे पर काम करने की बात कही है। हालाँकि उन्होंने आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए सेना के उपयोग की बात भी कही है।

दरअसल इस मुद्दे को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अलग रुख रखा था। जबकि ११ नवंबर के बाद ओबामा ने जो कानून के जानकारों की टीम बनाई है, वह अलग दिशा में काम कर रही है। वह आतंकवाद के विरुद्ध ऐसे कानून बनाने की तैयारी कर रही है जिसके अंतर्गत कोर्ट मार्शल और अमेरिकी सामान्य कानून का मिलाजुला स्वरूप बनाने की कोशिश कर रही है।

ईरान का अड़ियलपन : ईरान का मुद्दा अमेरिका के लिए काफी महत्वपूर्ण है। ईरान यूरेनियम के भंडार बढ़ाता जा रहा है, अमेरिका के नए प्रशासन के सामने चुनौती की तरह है। अगर ईरान बात नहीं मानता है तो ओबामा ईरान पर ज्यादा प्रतिबंध की बात कर सकते हैं। बात बहुत ज्यादा बढ़ गई तो अमेरिका इसराइल से ईरान पर हमला भी करवा सकता है, परंतु निकट भविष्य में इसकी संभावना कम है, क्योंकि ओबामा ने कहा कि वे पहले ईरान से बिना शर्त बातचीत करेंगे।

निश्चित रूप से पहले आरंभिक बातचीत होगी और बाद में सचिव स्तर की। इस तरह से बातचीत के माहौल को बनाने में 6 से 8 महीने तो लग ही सकते हैं। इस कारण ईरान के मुद्दे पर अगले 6 से 8 महीने में कोई प्रगति होने की संभावना कम है।

फिलिस्तीन मसला : इसराइल व फिलिस्तीन के मुद्दे ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। इसराइल द्वारा गाजा पट्टी पर लगातार हमले और विश्व समुदाय की अनदेखी करने के परिणाम क्या धारण करेंगे, यह अभी से कहा नहीं जा सकता। यह बात निश्चित है कि आगे आने वाले दिनों में यह मुद्दा काफी गंभीर होगा, जिसे सुलझाने के लिए ओबामा को काफी मशक्कत करना होगी।

रूस से कड़वाहट : हाल ही के दिनों में रूस के साथ अमेरिका के संबंधों में थोड़ी कड़वाहट आई है जिसके दो कारण हैं। एक रूस द्वारा जार्जिया के भीतर कार्रवाई करने के कारण अमेरिका नाराज था, जबकि रूस ने इसका अलग कारण बताया। वहीं अमेरिका द्वारा पोलैंड तथा चेक गणराज्य में एंटी मिसाइल प्रणाली लगाई जाना है जो कि रूस को ठीक नहीं लग रही है। इसके बावजूद ओबामा ने प्रचार के दौरान परमाणु शस्त्र मुक्त अमेरिका बनाने की बात कही है।

उत्तर कोरिया के प्रति रुख : वर्तमान में उत्तर कोरिया ने अमेरिका के प्रति सकारात्मक रुख अपनाया हुआ है। अमेरिका द्वारा आतंकवाद समर्थक देशों की सूची में से उत्तर कोरिया का नाम हटाने के बाद से परमाणु कार्यक्रम को रोकने की बात कही गई है, परंतु उत्तर कोरिया का कहना है कि वह उतने परमाणु हथियार जरूर रखेगा जो उसने बना लिए हैं।

चीन से दोस्ती : चीन के साथ अमेरिका को अपने संबंध अच्छे ही बनाकर रखने होंगे। चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और दूसरा वह विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। चीन के साथ ताईवान व तिब्बत के मुद्दे हैं, परंतु चीन ने अभी आंतरिक विकास पर ज्यादा ध्यान दिया हुआ है, इस कारण अमेरिका को वर्तमान में चीन की तरफ से कोई भी समस्या नहीं है।

मंदी से निपटना : ओबामा, अमेरिका के राष्ट्रपति का पद ऐसे समय में ग्रहण कर रहे हैं, जब अमेरिका में ऐसी मंदी आई है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की सबसे बड़ी मंदी है। अमेरिकी बैंक दिवालिया हो रहे हैं और बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में ओबामा को सबसे पहले देश के भीतर ज्यादा ध्यान देना होगा। अमेरिकी अर्थव्यस्था को पुनः पटरी पर लाना उनका पहला उद्देश्य होगा।

ये मुद्दे भी महत्वपूर्ण होंगे
पर्यावरण के मुद्दे पर ओबामा ने यह कहा था कि वर्ष 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 80 प्रतिशत तक कम होना चाहिए। इसे लेकर ओबामा अब क्या करते हैं, यह देखना होगा।

* क्योटो प्रोटोकाल वर्ष २०१२ में समाप्त हो रहा है। इसके बाद क्या होगा अभी निश्चित नहीं है।

* अमेरिका में जब भी कोई नया राष्ट्रपति आता है, वह ऊर्जा को लेकर काफी बातें करता है। तेल की कम खपत को लेकर भी बातें होती हैं। ओबामा ने भी ऐसी ही बातें कही हैं, जिन्हें वास्तविकता में अमल में लाने में काफी दिक्कत है।

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?