पश्चिम के श्वेत भाल पर 'काला टीका'

जयदीप कर्णिक
आखिर बराक हुसैन ओबामा जीत ही गए। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति होंगे। भारतीय राजनीति की तरह ही अमेरिका में भी राजनीतिक समीकरण और सर्वेक्षण गड़बड़ाते रहे हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। शुरुआती नतीजे और रुझान ही इतने स्पष्ट रहे कि रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉन मैक्केन ने अपनी हार मान ली और बराक ओबामा ने पूरे आत्मविश्वास से अपना जयघोष किया।

निश्चित ही यह अमेरिकी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। न केवल अमेरिकी इतिहास बल्कि यह विश्व इतिहास को प्रभावित करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना है। ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति होंगे। वैसे तो अमेरिका में रंगभेद और नागरिक अधिकारों की लड़ाई का इतिहास काफी लंबा है, लेकिन ओबामा की यह जीत निश्चित ही अश्वेतों के पक्ष में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। हालाँकि यह लड़ाई उस रूप में कभी लड़ी नहीं गई। अपने पूरे सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में ओबामा कभी रंगभेद के खिलाफ कट्टर लड़ाके के रूप में सामने नहीं आए हैं, न ही उन्होंने अपने पूरे चुनाव अभियान में खुद को इस रूप में प्रस्तुत किया।

यहाँ तक कि उनके प्रतिद्वंद्वी मैक्केन ने भी कभी इस चुनाव को गोरे और काले के बीच की लड़ाई के रूप में प्रचारित नहीं किया, बल्कि वे इससे प्रयत्नपूर्वक बचते रहे। दरअसल इस पूरे चुनाव पर परिवर्तन की चाह हावी रही। जॉर्ज बुश की दस साल की सत्ता से उपजा विरोध बदलाव की तीव्र इच्छा में परिवर्तित हो गया। रही-सही कसर आर्थिक मंदी की सुनामी ने पूरी कर दी।

ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे अमेरिकियों को जब अचानक अपनी आर्थिक सुरक्षा खतरे में दिखाई दी तो उन्हें ओबामा में उम्मीदों का प्रकाश स्तंभ नजर आने लगा। जितनी मुस्तैदी से ओबामा ने उम्मीद की इस किरण को अपने दामन में समेट लिया, उतना चातुर्य मैक्केन कहीं भी नहीं दिखा पाए। बल्कि जब बुश की नीतियों और आर्थिक मंदी का ठीकरा उनके सिर फोड़ा जाने लगा तो उन्हें यह कहना पड़ा कि 'कृपया ध्यान रखिए कि मैं बुश नहीं हूँ'। इस बयान में छिपी उनकी हताशा और ओबामा की जीत को आसानी से पढ़ा जा सकता है। मतदान केन्द्रों के बाहर लगी लंबी-लंबी कतारें अमेरिकियों की बदलाव के प्रति बेताबी को परिलक्षित कर रही थी।

  आज के दिन मार्टिन लूथर किंग के अश्रुओं में पगा गीत- 'वी शैल ओवरकम सम डे' पूरे राजकीय सम्मान के साथ बजाया जाना चाहिए      
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस जीत को अश्वेतों की जीत न मानकर केवल मुद्दों की जीत मान लिया जाए? दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के सर्वोच्च आसन पर यदि पहले अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ओबामा की ताजपोशी होने जा रही है तो इस तथ्य और उसके ऐतिहासिक महत्व को कम नहीं किया जा सकता।

एक ऐसे देश में जहाँ चमड़ी के रंग के आधार पर बरसों दमन और शोषण का लंबा दौर चला हो, जहाँ एक समय में ऐसे स्थान आरक्षित हों, जहाँ केवल गोरों को ही प्रवेश ‍की इजाजत हो, वहाँ आज के दिन मार्टिन लूथर किंग के अश्रुओं में पगा गीत- 'वी शैल ओवरकम सम डे' पूरे राजकीय सम्मान के साथ बजाया जाना चाहिए। निश्चित ही गोरों के देश में स्याह वर्ण वाले व्यक्ति का यह लोकतिलक 'हम होंगे कामयाब' के जयघोष को और बुलंद करता है।

आज से चालीस साल पहले जिस स्वप्न को पूरा करने की अधूरी ख्वाहिश के साथ मार्टिन लूथर किंग ने दम तोड़ा था, उसके पूरा होने की शुरुआत का जश्न अवश्य मनाया जाना चाहिए। लेकिन ये शुरुआत भर है। सैकड़ों वर्षों के दमन और शोषण के सारे निशान मिटाकर एक नया अमेरिका सँजोने में अभी वक्त लगेगा।

  उम्मीद करें कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाले ओबामा को आसुरी शक्तियों का नाश करने की ताकत हनुमानजी प्रदान करेंगे      
ओबामा का यह लोकतिलक कितना प्रभावी साबित होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि अपने भाषणों को वो कितना हकीकत में बदल पाते हैं। चरमरा रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कितना मजबूती से थामकर फिर से खड़ा करते हैं, इराक और अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी को लेकर क्या कदम उठाते हैं, विश्व आतंकवाद का मुकाबला कितनी मुस्तैदी से कर पाते हैं और भारत की दृष्टि से देखें तो कश्मीर मुद्दे और आउटसोर्सिंग को लेकर उनकी नीतियाँ व्यावहारिकता में कैसी हैं। चुनावी भाषणों में किए वादों और व्यावहारिकता में किए अमल के बीच खींची पतली रस्सी पर ओबामा कितनी कुशलता से चल पाते हैं, इसी पर उनकी पूरी सफलता टिकी है।

इस चुनाव में 72 वर्षीय बूढ़े मैक्केन के मुकाबले 47 वर्षीय ऊर्जावान अश्वेत उम्मीदवार को जिताकर जो संकेत ‍अमेरिका ने दिया है, वो बदलते अमेरिका को जानने के लिए काफी है। लोकतंत्र को मजबूत करने वाले ऐतिहासिक घटनाक्रम के बाद सारे अमेरिकावासियों की, अमेरिका और उसके बाहर बसने वाले तमाम भूर‍ी चमड़ी वाले लोगों की और विश्व राजनीति की निगाहें बराक हुसैन ओबामा पर टिकी हुई हैं।

खबर यह भी है कि ओबामा अपने साथ संकट मोचन हनुमानजी की स्वर्ण प्रतिमा रखते हैं। हम उम्मीद करें कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाले ओबामा को आसुरी शक्तियों का नाश करने की ताकत हनुमानजी प्रदान करेंगे। मुबारक हो ओबामा!!

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