आत्महत्या नहीं, ‍जीवन विस्तार कीजिए

-रवीन्द्र गुप्ता

Webdunia
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आजकल आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। जरा-सी कहीं कोई परेशानी आई नहीं कि लोग मौत को गले लगा लेते हैं।

परीक्षा में असफल होना, प्यार में धोखा खा जाना, नौकरी का नहीं मिलना, पति-पत्नी में आंतरिक कलह, किसानों की फसल का खराब हो जाना, लाइलाज बीमारी से परेशान हो जाना तथा मनचाही बात के पूरा नहीं हो पाने की स्थि‍ति में लोग अपनी इहलीला समाप्त कर लेते हैं। यह स्थिति काफी चिंताजनक है। भारत उन देशों में शामिल हो गया है, जहां चीन के बाद सर्वाधिक आत्महत्याएं होती हैं।

आत्महत्या के संकेत
आत्महत्या का निर्णय अक्सर एक पल में नहीं लिया जाता है। कई दिन व कई घंटे पहले इसके कुछ संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं, जैसे कि व्यक्ति का डिप्रेशन में होकर मिलनसार न होना, लापरवाहीपूर्वक कार्य, हावभाव, स्वभाव व व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देना, जमकर नशीले पदार्थ का सेवन किया जाना, बात-बात में झल्ला जाना, जरूरत से ज्यादा बोलना या बिलकुल भी न बोलना, एकाकीपन, एकांत स्‍थान में बार-बार जाना, समय-बेसमय खाना या न खाना, जरूरत से कम या ज्यादा खाना आदि ऐसे संकेत हैं, जो व्यक्ति के अति-तनाव में होने का संकेत देते हैं।

धैर्यपूर्वक बात सुनें
यदि कोई हताशा की स्थिति में हो तो हमें उसे अवसाद से बाहर निकालने की कोशिश करनी चाहिए। शांतचि‍त्‍त से उसकी बात सुनी जाए। कई बार अवसादग्रस्त व्यक्ति अपना भय व चिंता व्यक्त करने के लिए सुरक्षित स्थान व 'भरोसे का व्यक्ति' चाहते हैं। अगर उन्हें भरोसा हो जाए कि मेरी बात बिलकुल 'गोपनीय' रहेगी तो वे अपने दिल की सारी बातें सामने वाले को नि:संकोच कह सकते हैं।

यहां यह ध्यान रखा जाए कि उसे समझाने के दौरान उपदेश नहीं दिया जाए तथा नकारात्मक बात नहीं कही जाए, जैसे कि 'तुम अगर वैसा नहीं करते तो तुम्हें ये दिन नहीं देखने पड़ते।' इसके बजाए यह कहा जाए कि 'वो तो तुमसे अनजाने में गलती हो गई थी, इससे तुम्हें थोड़ी-सी तकलीफ उठानी पड़ रही है, वैसे यह चिंता वाली बात तो बिलकुल भी नहीं है। अरे भाई, गलती किससे नहीं होती? डोंट वर ी!'

मनोचिकित्सक की राय लें
अगर आप अपनी बात किसी को बताने में हिचक रहे हैं या आपको कोई ऐसा 'भरोसेमंद' व्यक्ति नहीं मिल पा रहा हो तो आप अपनी बात मनो‍‍चिकित्सक को नि:संकोच बता सकते हैं। मनोचि‍कित्सक का अर्थ होता है- मन:+चिकित्सक यानी मन का डॉक्ट र।

सभी मनोचिकित्सक मरीज की निजी से निजी, यहां तक कि अत्यंत ही गोपनीय बातों को एकदम गुप्त रखते हैं। अत: मनो‍चिकित्सक पर विश्वास कर अपने मन की सारी बातें बताई जा सकती हैं। याद रखें- मनो‍चिकित्सक के पास दुनिया की तमाम समस्याओं का हल होता है अत: इस मामले में उनकी राय लेना काफी समझदारी ह ोगी।

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यह भी सच है
यह भी सच है कि आत्महत्या समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता है। 99.99 प्रतिशत मामलों की बारीकी से जांच की जाए तो पता चलता है कि उसका समाधान बहुत ही सरल था किंतु भावावेश में आकर लोग अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं।

पिछले दिनो ं अखबार में पढ़ ा थ ा। एक छात्रा ने जब अखबार में अपना रिजल्ट देखा तो उसे अपना रोल नंबर कहीं नजर नहीं आया। उसे लगा कि मैं फेल हो गई हूं। वह छात्रा इतने अवसाद में घिर गई कि उसने आत्महत्या कर ली, जबकि बाद में पता चला कि वह पहले नंबर से पास थी।

य ह उदाहरण इस बात का संकेत करता है कि लोगों को भविष्य का कुछ भी पता नहीं होता है और वे अनुमान से जरा से तनाव में आकर आत्महत्या कर लेते हैं।

अकेले न रहे ं
अगर कोई व्यक्ति अवसाद से घिरा हो तथा उसे तरह-‍तरह की परेश‍ानियां सता रही हों तो उसे चाह‍िए कि वह अकेला न रहे। उसे घर-परिवार के बीच में रहकर हंसना-बोलना चाहिए। मनोरंजक साधनों का इस्तेमाल करना चाहिए। मित्रों के साथ थोड़ा दूर घूमने निकल जाना चाहिए। क्रिकेट, कैरम, शतरंज तथा लूडो आदि गेम खेलकर मन बहलाना चाहिए। या फिर बच्चों के साथ बच्चा बनकर उनके साथ खेलना चाहिए।

इस प्रकार के कुछ उपाय अगर व्यक्ति उपाय में लाए तो वह अवसाद के बाहर आ सकता है। याद रखें- मानव जीवन ईश्वर की दी हुई अनमोल भेंट है। इसे आप अपने हाथों से कैसे नष्ट कर सकते हैं? इसे नष्ट करने का अधिकार तो (जीवन यात्रा पूरी होने के बाद) केवल ईश्वर को ही है। आत्महत्या (जीवघात) कर आप ईश्वरीय संरचना में भी हस्तक्षेप करते हैं। अत: ऐसा कदा‍पि नहीं करें।

जब भी ऐसा खयाल मन में आता हो तो दृढ़तापूर्वक उस विचार को झटक देना चाहिए और अपने मनोबल को मजबूत कर समस्या को चकनाचूर कर देने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमें 'समस्या' को 'मिटाना' है 'स्वयं' को' नहीं।

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