युवा सर्वे : इंटरनेट पर सेंसरशिप

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी का मौलिक अधिकार है, लेकिन जब इसका उपयोग हम दूसरों के अधिकारों में अतिक्रमण करने के लिए करते हैं। तब यह अधिकार दूसरों के लिए परेशानी बन जाता है। टि्‌वटर द्वारा आपत्तिजनक कंटेट सेंसर करने की बात ने फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सोशल नेटवर्किंग को एक ओर जहाँ हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नया आयाम देने वाला कह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस अधिकार पर नकेल कसने के लिए सेंसरशिप की बात भी कर रहे हैं। विरोधों में उलझे इस मुद्दे पर गूगल यह कहना कि इंटरनेट पर सेंसरशिप संभव नहीं है। इस मुद्दे को और अधिक तूल दे रहा है। इस बारे में युवाओं के विचार जानने के लिए हमने चर्चा की शहर के 50 युवाओं से-

प्र. क्या सोशल नेटवर्किंग पर सेंसरशिप की जाना चाहिए?
हाँ 30
नहीं 20

प्र. फौजियों की सोशल नेटवर्किंग पर सख्ती करना क्या भारतीय सेना का सही फैसला है?
हाँ 45
नहीं 5

प्र. आपके अनुसार क्या सोशल नेटवर्किंग वैचारिक अभिव्यक्ति का एक बेहतर माध्यम है?
हाँ 44
नहीं 6

प्र. इंटरनेट पर सेंसरशिप करना संभव नहीं है। क्या गूगल के इस कथन से आप सहमत हैं?
हाँ 32
नहीं 18

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