संगठन नहीं, प्रतिभा का जलवा

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यह खुशखबर है कि अब खेलों में भी भारत रत्न दिया जा सकेगा। यह बहस लंबे समय से चल रही है कि इसे क्रिकेट के भगवान सचिन तेंडुलकर को दिया जाए या हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद को दिया जाए। बहस होना चाहिए, जरूरी है, लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ये दोनों प्रतिभाएँ अपने व्यक्तिगत कौशल से शिखर पर पहुँची थीं।

इनमें अपने खेल के प्रति इतनी गहन एकाग्रता और पूर्ण समर्पण रहा है कि ये दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी के लिए भी आदर्श हो सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हम खिलाड़ी सिर्फ प्रतिभा के बल पर ही पैदा करते रहेंगे या एक ऐसी माकूल व्यवस्था बनाए, जहाँ बच्चे सही प्रशिक्षण लेकर बेहतरीन खिलाड़ी बन सकें। हमारे देश में प्रतिभाएँ शीर्ष पर हैं, लेकिन तमाम खेल संगठन पतन की ओर। बहस इस मुद्दे पर होना चाहिए।
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