अधिक लाभदायक है आलू उगाना

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- मणिशंकर उपाध्याय

आलू एक ऐसी फसल है, जो प्रति इकाई क्षेत्र में प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा की अधिक मात्रा को रासायनिक ऊर्जा (कार्बोहाइड्रेट्स) में परिवर्तित करती है। पौष्टिक दृष्टि से भी आलू में ट्रिप्टोफेन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन जैसे शरीर के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। इनके अलावा आलू में लौह तत्व, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि खनिज और थायोमिन, नियासिन, राइबोफ्लेविन और विटामिन 'सी' आदि विटामिन भी होते हैं।

आलू के पौधों की बढ़वार के लिए ठंडा मौसम चाहिए इसलिए इसे रबी मौसम में उगाया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ शीतकाल में पाला पड़ने की आशंका रहती है, वहाँ इसे मार्च-अप्रैल में बोया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में वर्षा के बाद तापमान कम होने के अनुसार इसकी बोवनी सितंबर के दूसरे सप्ताह से नवंबर के दूसरे सप्ताह तक की जाती है।

बीज शैया : आलू एक कंद वाली फसल है। इसलिए खेत की तैयारी उस गहराई तक करना आवश्यक है, जिस गहराई पर कंदों का निर्माण व विकास होता है। पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले (मोल्ड बोर्ड) हल से करें। इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाकर खेत के ढेले तोड़ें। इसके पश्चात खेत को समतल करने के लिए आड़ी व खड़ी दिशा से पठार चलाएँ।

पौध पोषण : खेत की तैयारी के समय ही 100 से 150 क्विंटल गोबर खाद या कम्पोस्ट प्रति एकड़ मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएँ।
बुवाई : आलू की बोवनी दो तरह से की जाती है, समतल जमीन पर या मेढ़ बनाकर मेढ़ के मध्य में। समतल बोवनी हल्की से मध्यम सुनिथार बलुही दुमट, दुमट या कछारी मिट्टी में की जाती है। चिकनी, चिकनी दुमट या भारी मिट्टियों तथा रबी में वर्षा की संभावना वाले क्षेत्रों में बोवनी मेढ़ पर की जाती है।

सिंचाई : सिंचाई की संख्या मिट्टी की किस्म और मौसम पर निर्भर करती है। सामान्यतः हल्की मिट्टी में सिंचाई 10-12 दिन के अंतर पर और भारी मिट्टियों में 15 से 20 दिन के अंतर पर की जाती है। आलू में सिंचाई हल्की की जाना चाहिए।

प्रमुख किस्में
आलू की प्रमुख उन्नत किस्में कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी ज्योति, कुफरी बहार, कुफरी देवा, कुफरी लवकर आदि हैं। इनमें से कुफरी ज्योति के आलू भारी व चिकनी मिट्टी में या उचित जल प्रबंधन के अभाव में फट सकते हैं। कुफरी लवकर की उपज जल्दी मिल जाती है, किंतु उत्पादन कुछ कम होता है। दो फसलों के बीच फसल क्रम में उगाने के लिए अच्छी किस्म है। इसके बाजार में बिकने योग्य कंद 65 से 75 दिन में मिल जाते हैं।

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