मैं हूँ सभी की पसंद : प्याज

Webdunia
मंगलवार, 18 दिसंबर 2007 (14:17 IST)
- मणिशंकर उपाध्याय

प्याज एक पौष्टिक आहार होने के साथ इसमें मौजूद रसायन एलाइल प्रोपाइल डाई सल्फाइड के कारण अनेक औषधीय गुण भी हैं। यह गंधयुक्त रसायन पेट के हानिकारक कीड़ों को नष्ट कर देता है। यह क्षय रोग, हृदय रोग, वमन (उल्टी), वात, अरुचि, रक्त-पित्त में लाभदायक है। लू लगने पर इसका उपयोग लाभदायक होता है। भुना हुआ प्याज आंतरिक शीतलता प्रदान करता है। इसमें गंधक होने के कारण यह रक्तशोधक है तथा त्वचा रोगों को ठीक करता है।

वैसे तो विश्व भर में मेरे चाहने वाले हैं। परंतु भारत के हर प्रांत में मुझे मेरे स्वाद, सुगंध और गुणों के कारण समाप रूप से पसंद किया जाता है। हिन्दी भाषी प्रांतों में मुझे प्याज या काँदा, उड़ीसा में उल्ली, मलयालम में एरुल्ली, कन्नड़ मे निरुल्ली, तमिल में वेनाग्यम व एर्नाग्यम नाम से पहचाना जाता है। मेरे संस्कृत नाम पलांडे से यह बात स्पष्ट है कि भारत में मुझे काफी पहले से उगाया जाता रहा है।

मैं एक सर्वप्रिय सार्वजनिक सब्जी के रूप में सभी धर्म, सभी भाषा, सभी प्रांत, अमीर, गरीब, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा एवं वृद्ध (सभी आयु वर्गों) के द्वारा समान रूप से पसंद किया जाता हूँ। मेरा उपयोग कच्चे कंद की तरह सलाद के लिए, पकाकर सब्जियों को स्वादिष्ट व सुगंधित करने के लिए किया जाता है। सब्जी के अलावा भजिए में विशेष रूप से मेरा उपयोग किया जाता है।

गरीबों की झोपड़ी से आलीशान बंगलों तक व सड़कछाप ढाबों से पाँच सितारा होटल तक में मेरी उपस्थिति अनिवार्य समझी जाती है। एक बार की बात है कि कुछ प्राकृतिक कारणों से पूरे देश में मेरी उपज कम हुई, मेरा भाव भी 60 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो गया। बस गुस्साए लोगों ने अगले साल ही कई प्रांतों की सरकारों को चुनाव में बदलकर रख दिया।

मूल रूप से सर्दी का मौसम मुझे पसंद है। परंतु एक ही मौसम में उगाए जाने के कारण सीमित उत्पादन और बढ़ती हुई माँग को देखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा ऐसी किस्में तैयार कर ली गई हैं, जो विभिन्न मौसमों में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।

मेरी उन्नत किस्मों के बीजों को बोने के पहले जैविक फफूँदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी (प्रोटेक्ट) के साथ मिलाकर बोएँ। एक किलोग्राम बीज के लिए पाँच ग्राम दवा पर्याप्त है।

खेत की तैयारी ऐसी करें कि मेरे कंदों को बढ़ने में कोई दिक्कत न आए। खेत को कम से कम 15-20 सेमी गहरा जोतें। मिट्टी में कंकड़, चूने के पत्थर आदि न हों। भुरभुरी, एलूवियल, दोमट मिट्टी जिसका पीएच 6.5 से 7.2 के बीच हो, मेरी बढ़वार व उपज के लिए अच्छी होती है।

पौध पोषण के लिए प्रति हैक्टेयर 20 टन जैविक खाद खेत में मिलाएँ। इसके अलावा 100 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा स्फुर, 80 किग्रा पोटाश व 40 किग्रा गंधक प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है।

प्रमुख उन्नत किस्में पूसा व्हाइट राउंड, पूसा व्हाइट फ्लेट, कल्याणपुर रेड राउंड, पूसा माधवी, अर्का बिंदु, अर्का निकेतन, पूसा रतनार एस-53, अर्का सिलेक्शन, पंजाब-45, रेड अर्का सिलेक्शन, अर्का कल्याण आदि।

पहले नर्सरी में रोपे तैयार कर लें। करीब एक से डेढ़ माह के होने पर रोपे मुख्य खेत में लगाएँ। रोपे लगाने का उपयुक्त समय दिसंबर के पहले से तीसरे सप्ताह तक माना गया है। रोपे कतार से कतार में 15 सेमी व रोपे से रोपे के बीच 5-10 सेमी पर लगाएँ। खेत में निंदाई-गुड़ाई व मिट्टी चढ़ाने का काम रोपे लगाने के 30-35 दिन व 60-65 दिन बाद करें।

पौध पोषण के लिए नत्रजन दो-तीन बराबर किस्तों में व अन्य पोषक तत्व रोपाई के पहले कतारों में डालें। सिंचाई, मौसम व मिट्टी के अनुसार सात से पंद्रह दिन के अंतर पर करें। कभी-कभी सही किस्म का बीज न मिलने, मौसम की स्थितियों में अचानक बदलाव आने से पौधों में फूल आना शुरू हो जाते हैं, इसे बोल्टिंग कहते हैं।

अच्छे व बड़े कंद प्राप्त करने के लिए इन्हें काट देना चाहिए। फसल लगभग साढ़े तीन माह में पककर तैयार हो जाती है। इस समय इसे खोदकर पत्तियाँ काटकर अलग कर ली जाती हैं। कंदों को 3-4 दिन तक छाया में सुखाने के बाद बोरियों में भरकर भंडारण के लिए या बाजार में भेजा जाता है। प्याज की उपज 200 से 250 क्विं. प्रति हैक्टेयर तक मिल जाती है।

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