सबसे बड़ा दिन, सबसे छोटी रात

परछाई होगी शून्य, साया भी छोड़ देगा साथ

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सूर्य का उत्तरायन से दक्षिणायन की ओर गम न
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21 जून 2011, मंगलवार को परछाई भी आपका साथ छोड़ेगी। दरअसल ऐसा सूर्य की कर्क रेखा में स्थिति होने के चलते होगा। ठीक 12 बजकर 28 मिनट पर आपको अपनी परछाई नहीं दिखाई दी होगी।

परिभ्रमण पथ के दौरान 21 जून को ठीक 12.28 बजे सूर्य कर्क रेखा पर एकदम लंबवत हो गया। इस दिन भारत सहित उत्तरी गोलार्द्घ में स्थित सभी देशों में सबसे बड़ा दिन तथा रात सबसे छोटी होगी। उज्जैन में सूर्योदय प्रातः 5.42 बजे तथा सूर्यास्त सायं 7.16 मिनट पर होगा, जिससे दिन 13 घंटे 34 मिनट तथा रात 10 घंटे 24 मिनट की होगी।

इस खगोलीय घटना के अंतर्गत 21 जून के बाद से सूर्य दक्षिण की ओर गति करना प्रारंभ कर देगा, जिसे दक्षिणायन का प्रारंभ कहा जाता है। दिन क्रमशः छोटे होते जाएंगे और 23 सितंबर को रात-दिन बराबर होंगे।

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जीवाजीराव वेधशाला के अधीक्षक राजेंद्र प्रसाद गुप्त के अनुसार मंगलवार को इस खगोलीय घटना को शंकु यंत्र के माध्यम से देखा जा सका। इस दिन शंकु की परछाई कर्क रेखा पर गमन करने तथा 12.28 बजे शंकु की परछाई शून्य होती दिखाई दी। मौसम खुला होने से इसे वेधशाला में देखा जा सका।

उन्होंने बताया कि लीप ईयर वर्ष 2012 में होगा और उस दौरान यह घटना 22 जून को होगी। इस वर्ष फरवरी माह 28 दिन की था, इसलिए 21 जून को यह खगोलीय घटना घटी।

पंचांग में संक्रांति के तौर पर दर्ज इस दिन पृथ्वी का अक्षीय झुकाव सूर्य की ओर अधिकतम होने पर दिन की अवधि बढ़ जाती है।
सौरमंडल और खगोल संबंधी विषयों पर काम कर रही संस्था स्पेस के अध्यक्ष सीबी देवगन ने बताया कि कर्क संक्रांति के समय पर सूरज की ओर पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 डिग्री और 26 मिनट तक झुकी रहती है, जोकि इसके झुकाव की अधिकतम सीमा है।

डोंगला वेधशाला पर कल छाया शून्य
भारतीय संस्कृति के अनुसार काल गणना की शून्य रेखा भी उज्जैन व डोंगला से गुजरती है। अतः डोंगला में कर्क रेखा (पूर्व से पश्चिम) व शून्य रेखा (उत्तर से दक्षिण) का कटाव बिंदू होने से विश्व में डोंगला वेधशाला कालगणना हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

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डोंगला वेधशाला के खगोल विज्ञानी घनश्याम रतनानी के अनुसार 22 जून को 23 अंश 26 कला उत्तरी अक्षांश पर सूर्य कर्क रेखा में प्रवेश के साथ दोपहर 12.28 पर डोंगला वेधशाला पर छाया शून्य प्रत्यक्ष देखी जा सकेगी।

चूंकि सौर वर्षमान के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 6 घंटे संक्रांति आगे बढ़ जाती है और चौथे वर्ष लीप ईयर में समाहित होकर फरवरी माह 29 दिन का होता है। अतः इस वर्ष कर्क संक्रांति की शून्य छाया 22 जून को देखी जा सकेगी।

22 जून को डोंगला वेधशाला पर विभिन्न स्थानों से खगोल वैज्ञानिक अध्ययन हेतु पहुंचेंगे। आचार्य वराहमिहिर न्यास एवं मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद भोपाल के संयुक्त प्रयासों से यहां कार्यशाला होगी। कावेरी शोध संस्थान के अध्यक्ष, इतिहासज्ञ एवं प्रसिद्घ पुरातत्वेत्ता डॉ. श्यामसुंदर निगम की अध्यक्षता में कार्यक्रम होगा। करीब 200 वैज्ञानिकों तथा शोधार्थियों के आने की संभावना है।

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