प्रमुख पुजनीय 8 नाग देवता

नागपंचमी पर विशेष

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प्राचीन काल से ही भारत में नाग पूजा की परंपरा रही है। माना जाता है कि 3000 ईसा पूर्व आर्य काल में भारत में नागवंशियों के कबीले रहा करते थे, जो सर्प की पूजा करते थे। उनके देवता सर्प थे। यही कारण रहा कि प्रमुख नाग वंशों के नाम पर ही जमीन पर रेंगने वाले नागों के नाम है।

पुराणों अनुसार कश्मीर में कश्यप ऋषि का राज था। कश्यप ऋषि की पत्नि कद्रू से उन्हें आठ पुत्र मिले जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 1. अनंत (शेष), 2. वासुकी, 3. तक्षक, 4. कर्कोटक, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. शंख और 8. कुलि क। कश्मीर का अनंतनाग इलाका अनंतनाग समुदायों का गढ़ था उसी तरह कश्मीर के बहुत सारे अन्य इलाके भी दूसरे पुत्रों के अधीन थे।

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कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय।

अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है।

भारत में उपरोक्त आठों के कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।

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