अक्स र आपन े देख ा औ र सुन ा होग ा क ि पत्न ी क ो पत ि क े ब ाएं तर फ ह ी बैठन ा चाहिए । पत्न ी क ो पत ि क ा वामां ग ह ी मान ा गय ा ह ै लेकि न क्य ा आ प जानत े है ं क ि ऐस ा क्यो ं ह ै?
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पौराणिक आख्यानों के अनुसार ब्रह्माजी के दाएं स्कंध से पुरुष और वाम स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति हुई है। यही कारण है कि स्त्री को वामांगी कहा जाता है और विवाह के बाद उसे पति के वाम भाग की ओर बैठाए जाने की परंपरा है।
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यहां एक बात और विचारणीय है कि जब पुरुष प्रधान धार्मिक कार्य संपन्न किए जाते हैं तो उस समय पत्नी को दक्षिण (दाएं) भाग की ओर बैठाया जाता है। इसके विपरीत स्त्री प्रधान धार्मिक संस्कारों में पत्नी पति के वाम अंग की ओर ही बैठती है।
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संस्कार गणपति में उल्लेख है कि सिंदूरदान, भोजन, शयन और सेवा में लगी पत्नी को हमेशा पति के वाम भाग की ओर ही रहना चाहिए।
आशीर्वाद और ब्राह्मण के पैर पखारते समय भी पत्नी को पति के बाएं ओर रहना चाहिए।