शुक्र

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शुक्र वृष और तुला राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 20 वर्ष की होती है। इनके अधिदेवता इंद्राणी तथा प्रत्यधिदेवता इंद्र हैं। शुक्राचार्य दानवों के पुरोहित हैं। ये योग के आचार्य हैं। अपने शिष्य दानवों पर इनकी कृपा सर्वदा बरसती रहती है। नवग्रह मंडल में शुक्र का प्रतीक पूर्व में श्वेत पंचकोण है।

शुक्र ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करके उनसे मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की थी। उसके बल से ये युद्ध में मरे हुए दानवों को जीवित कर देते थे। इन्हें शिवजी का यह भी वरदान प्राप्त था कि इन्हें कोई नहीं मार सकेगा। शुक्राचार्य इसलोक और परलोक की सारी संपत्तियों के स्वामी हैं।

शुक्र ग्रह का स्वरू प
* दैत्यों के गुरु शुक्र का वर्ण श्वेत है।
* इनके सिर पर सुंदर मुकुट तथा गले में माला है।
* शुक्र ग्रह श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हैं।
* इनके चार हाथों में दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र तथा वरदमुद्रा सुशोभित रहती है।
* शुक्र का वाहन रथ है, जिसमें आठ घोड़े जुते रहते हैं। रथ पर ध्वजाएँ फहराती रहती हैं।
* इनका आयुध दंड है।

शुक्र ग्रह की विशेषत ा
* शुक्र ग्रह संपत्ति ही नहीं औषधियों, मंत्रों तथा रसों के भी स्वामी हैं।
* इनकी सामर्थ्य अद्भुत है।
* शुक्र ने अपनी समस्त संपत्ति अपने शिष्य असुरों को दे दी और स्वयं तपस्वी-जीवन ही स्वीकार किया।
* ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोकों के प्राण का परित्राण करने लगे।
* कभी वृष्टि, कभी अवृष्टि, कभी भय, कभी अभय उत्पन्न कर ये प्राणियों के योग-क्षेम का कार्य पूरा करते हैं।
* ब्रह्मा की सभा में शुक्र ग्रह के रूप में भी उपस्थित होते हैं।
* शुक्र अनुकूल ग्रह हैं तथा वर्षा रोकने वाले ग्रहों को शांत कर देते हैं।

शुक्र ग्रह शांति उपा य
* शुक्र ग्रह की शांति के लिए गोपूजा करनी चाहिए।
* हीरा धारण करना चाहिए।
* चाँदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चंदन, हीरा, सफेद अश्व, दही, चीनी, गौ तथा भूमि ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

शुक्र उपासना मंत् र
शुक्र की उपासना के लिए निम्न मंत्रों में से किसी एक अथवा सभी मंत्रों का नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। कुल जप-संख्या 16000 तथा जप का समय सूर्योदयकाल है। विशेष अवस्था में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।

वैदिक मंत्र-
ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्‌ क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान गुं शुक्रमन्धस इंद्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥

पौराणिक मंत्र-
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्‌।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारम्‌ भार्गवं प्रणमाम्यहम्‌ ॥

बीज मंत्र-
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।

सामान्य मंत्र-
ॐ शुं शुक्राय नमः।

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