जेल से मॉल तक

- अनुभा रोहतगी (दिल्ली)

Webdunia
बुधवार, 7 दिसंबर 2011 (18:11 IST)
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैदियों के सुधार और पुनर्वास के लिए कई कदम उठाए गए हैं। उन्हें तरह-तरह के काम सिखाए जा रहें हैं जिससे वे सजा खत्म होने के बाद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके।

जेल के विभिन्न कारखानों में इन कैदियों के जरिए बनाए गए सामान ‘टीजेज’ के नाम से भी बेचे जाते हैं। सामान में मसाले, नमकीन, हाथ से बने कागज के उत्पाद, कपड़े, हथकरघा, बेकरी और लकड़ी के उत्पाद शामिल हैं।

अब तक टीजेज उत्पाद तिहाड़ जेल के अलावा दिल्ली के विभिन्न न्यायालय परिसर, केंद्रीय भंडार, खादी भंडार, गांधी स्मृति, कुछ सरकारी और शिक्षण संस्थानों और प्रदर्शनियों में बेचे जाते थे। लेकिन अब इनको मिला है एक नया पता।

नया पता : दक्षिणी दिल्ली का एक उच्चवर्गीय इलाका है साकेत जहां कई वर्ग मील में फैला है सेलेक्ट सिटी वॉक शॉपिंग मॉल। इस मॉल में कई देशी-विदेशी ब्रैंड्स के महंगे-से-महंगा सामान बिकता है।

इन बड़े-बड़े नामों के बीच हाल ही में एक छोटी सी शुरुआत की है टीजेज ब्रैंड ने।

इतने बड़े मॉल में एक स्थायी काउंटर खोलने की वजह तिहाड़ के जनसंपर्क अधिकारी सुनील कुमार ने कुछ इस तरह बताई, 'इस साल दिवाली पर हमने टीजेज उत्पादों की सेलेक्ट सिटी वॉक मॉल में प्रदर्शनी लगाई थी जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया था। उस प्रतिक्रिया से प्रभावित होकर हमने सोचा कि क्यों न यहां पर अपने सामान का एक स्थायी आउटलेट खोला जाए। हमने जब मॉल के अधिकारियों से इस बारी में बात की, तो उन्होंने खुशी-खुशी हमारा प्रस्ताव मान लिया।'

सुनील कुमार के मुताबिक इस चुनाव की एक और वजह भी थी। वे कहते हैं, 'एक और भी बात थी। यह पढ़े-लिखे लोगों का इलाका है जिस वजह से लोगों का जेल सुधारों के प्रति बहुत सकारात्मक रवैया रहता है। इसीलिए हमने वहां से शुरुआत की।'

शुरुआत किसी बड़े चमचमाते हुए शोरूम से नहीं बल्कि मॉल की एक कार पार्किंग से हुई है। यहां पर लगभग 15 x15 फुट की जगह में कुछ मेजो पर सजे हैं बिस्कुट, नमकीन, कमीज़े, दरियां, सरसों का तेल, फाईल कवर। इस काउंटर को रवि कुमार संभाल रहे हैं।

जगह भले ही छोटी है, लेकिन रवि कुमार की आवाज में छलकता उत्साह बताता है कि हौसले बुलंद हैं, 'यहां पर हमें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। जो भी आता है, वो कुछ-न-कुछ खरीद कर ही जाता है। छुट्टी वाले दिन पांच हजार रुपए तक बिक्री हो रही है और बाकी सप्ताह डेढ़ से दो हजार तक। अभी तो हम यहां पार्किंग में हैं, इसलिए ज्यादा लोगों को हमारे बारे में नहीं पता। लेकिन अगर हमें ऊपर (मुख्य मॉल) में जगह मिल जाए, तो हमारी बिक्री बहुत बढ़िया जाएगी।'

बदलता नजरिया : जिस मॉल में बिकने वाले कई उत्पादों की कीमत ही हजारों में हों, वहां एक दिन में ज्यादा-से-ज्यादा पांच हजार रुपए कमाई की बात सुनने में शायद कुछ अजीब लगे। लेकिन सुनील कुमार कहते हैं कि मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि लोगों का नजरिया बदलना है।

उन्होंने कहा, 'हम कभी भी इस काम को मुनाफे या नुकसान के नजरिए से नहीं देखते। असली मकसद आम जनता को जानकारी देना है कि तिहाड़ में कैदी हैं जो इस तरह का काम करते हैं जिससे लोगों का इनके प्रति सकारात्मक रवैया रहे। ताकि जब ये कैदी जेल से छूट कर जाएं तो लोग इनसे नफरत न करें बल्कि इनकी मदद के लिए आगे बढ़ें।'

टीजेज के काउंटर पर सामान देख रहीं स्वाति का कैदियों के सुधार के लिए उठाए गए इस कदम के बारे में कहना था, 'ये एक अच्छा विचार है कि कैदियों को काम सीखने और उसे इस्तेमाल करने का मौका मिल रहा है। इस तरह से जेल से छूटने के बाद भी उनके पास रोजगार का एक जरिया हो जाता है।'

दिल्ली के अशोक विहार इलाके में एक प्ले स्कूल चला रहे राजीव गुप्ता ने जब तिहाड़ में बने सामान के सेलेक्ट सिटीवॉक में काउंटर खुलने की बात अखबार में पढ़ी, तो उनके मन में भी अपने स्कूल में टीजेज के उत्पाद रखने का विचार आया।

राजीव गुप्ता का कहना था, 'ये विज्ञापन पढ़ने के बाद मेरे मन में विचार आया कि जब सरकार और तिहाड़ के अधिकारी कैदियों को सही राह पर लाने की इस तरह की कोशिशें कर रहे हैं, तो क्या हम जैसे, पढ़े-लिखे समाज में रहने वाले लोग उसमें अपना योगदान नहीं दे सकते।'

तीस-वर्षीय ललित लगभग आठ साल से जेल में हैं और जेल की नमकीन बनाने वाली फैक्टरी में काम करते हैं।

जो काम ललित ने यहां पर सीखा है वो जेल से छूटने के बाद उसे ही व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहते हैं। ललित कहते हैं, 'हम यहां से कुछ अच्छा काम सीख कर जाएंगे, तो अपने मां-बाप और बाकी परिवार की मदद कर पाएंगे और अच्छी जिंदगी जी सकेंगे।'

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