सलमान खान ‘पार्टनर’ के सीक्वल में लव गुरु नहीं बनेंगे, यह जानकर अच्छा लगा। कबीरा ( kabeera_007@rediffmail.com)
ससुराल गेंदा फूल वाले आलेख में मैं लेखक को कुछ जानकारी देना चाहता हूँ। इस गाने के बारे में पूरी जानकारी ऑडियो सीडी के कवर पर दी गई है। ‘रिंगा रिंगा’ गाना सुभाष घई से खरीदा गया है। विनोद सेहवाल ( vinod_sehwal@yahoo.co.in)
आमिर खान अभिनीत ‘गजनी’ बहुत अच्छी लगी। वे महान कलाकार हैं और जानते हैं कि किस तरह की फिल्मों में काम करना चाहिए। टिंकू ( tinkusingh1990@gmail.com) विनू सिंह ( vinnusingh@gmail.com) धर्मेन्द्र ( dharmendra501@yahoo.co.in)
कैटरीना कैफ को नंबर वन अभिनेत्री कहना बंद कीजिए। उन्हें तो अभिनय बिलकुल भी नहीं आता। उनकी तुलना बॉलीवुड की अन्य अभिनेत्रियों से नहीं की जानी चाहिए। हिना ( hina123@hotmail.com)
‘कैटरीना की बराबरी पर प्रियंका’ पढ़ा। किस लिहाज से कैटरीना नंबर वन हैं? क्या अच्छी हीरोइन बनने के लिए सिर्फ शक्ल ही काफी है। अभिनय में कैटरीना ज़ीरो हैं। स्नेहा ( stutitandon@yahoo.com)
‘रियलिटी शोज़ : एक और रियलिटी’ आलेख पढ़ा। मैं लेखक से सहमत हूँ कि रियलिटी शोज़ के माध्यम से प्रतियोगियों को झूठे ख्वाब दिखाए जाते हैं, उसके नतीजे के रूप में पूनम यादव जैसी घटनाएँ होती हैं। अमज़ाद हुसैन अंसारी ( amzadmax@gmail.com)
अभिनेत्रियों के ताजे फोटो और लेटेस्ट गॉसिप दिए जाए। विकास पांडे ( vikaspandey000@rediffmail.com)
मैं श्रीदेवी से मिलना चाहता हूँ। मुझे श्रीदेवी या बोनी कपूर का पता चाहिए। कामताप्रसाद ( kamata.verma@yahoo.in)
‘स्लमडॉग...’ की सलमान रश्दी ने आलोचना की’ पढ़ा। मैं उनसे सहमत हूँ। ये फिल्म कोई खास नहीं है। इसमें हमारे देश की गरीबी को भुनाया गया है। महेन्द्र वाराणसी ( varsani.mahendra@rediffmail.com) प्रवीण गुप्ता ( praveen_2503@yahoo.co.in)
मैं माधवन का प्रशंसक हूँ। मुझे ’13 बी’ बहुत अच्छी लगी। महेन्द्र सिंह यादव - ग्वालियर ( join.mannu83@gmail.com)
‘जोधा अकबर’ बेहतरीन फिल्म है। समीक्षा में इसकी थोड़ी ज्यादा तारीफ की जानी थी। दिनेश ( din.mly@gmail.com)
‘खुदा के लिए’ की समीक्षा पढ़ी। इसको लेकर मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ। हर धर्म में पुराने खयालात के लोग होते हैं। इन पुराने लोगों को समझा चाहिए कि अब युवा वर्ग और बच्चें विज्ञान को पढ़कर कई चीज समझ चुके हैं। कोई धर्म यह साबित नहीं कर पाया है कि मरने के बाद जीवन है या स्वर्ग-नरक का अस्तित्व है। इसलिए धर्म का ढोल बजाने की ज्यादा जरुरत नहीं है। आर.ए. नेलेकर ( r.a.nelekar@gmail.com)
‘हजार चेहरे वाले गुलज़ार’ पढ़ा। गुलज़ारजी को हिंदी साहित्य की गहरी समझ है, जो उनकी शैली में झलकती है। शंभूनाथ ( shambhu_74@yahoo.com)