महबूब खान : समय से आगे के फिल्मकार

(महबूब खान की पुण्यतिथि 28 मई पर विशेष)

भाषा
‘मदर इंडिया’ जैसी कालजयी फिल्म के निर्माता महबूब खान हिन्दी फिल्मों के आरंभिक दौर के उन चुनिंदा फिल्मकारों में से एक थे, जिनकी नजर हमेशा अपने समय से आगे रही और उन्होंने मनोरंजन से कोई समझौता किए बिना सामाजिक सरोकारों को इस सशक्त ढंग से पेश किया कि उनकी कई फिल्में आज भी प्रासंगिक लगती हैं।

महबूब कहने को तो पढ़े-लिखे व्यक्ति नहीं थे, लेकिन जीवन की पाठशाला में उन्होंने ऐसे नायाब सबक सीखे कि उनकी फिल्में सदाबहार मनोरंजन का पर्याय बन गईं। हमेशा कुछ नया करने की जिद ने उन्हें फिल्म निर्माण से जुड़े हर पक्ष पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि उनकी मदर इंडिया, अंदाज, अनमोल घड़ी, अनोखी अदा, आन, अमर जैसी फिल्मों में एक कसावट नजर आती है।

‘अंदाज’ फिल्म प्रेम त्रिकोण के लोकप्रिय बंबइया फार्मूले पर बनी होने के बावजूद एक ताजगी की बहार लेकर आती है। उस दौर में उन्होंने दिलीप कुमार से जो निगेटिव शेड वाले चरित्र का अभिनय करवाया है वह आज भी अभिनेताओं को प्रेरणा प्रदान करता है। महबूब की सर्वाधिक चर्चित फिल्म ‘मदर इंडिया’ तो कई मामलों मे विलक्षण थी।

बिलिमोरिया गुजरात में 1907 में पैदा हुए महबूब खान का असली नाम रमजान खान था। सिनेमा के रुपहले परदे से सम्मोहित महबूब ने कम उम्र में ही मुंबई (तब बंबई) की राह ले ली। अपने समय के अधिकतर फिल्मकारों की तरह महबूब ने भी विभिन्न स्टूडियो में संघर्ष कर फिल्म निर्माण की कला को समझा।

महबूब ने ‘औरत’ के बाद ‘रोटी’ फिल्म बनाई, जो वर्गभेद के साथ ही पूँजीवाद और धन की लालसा के नकारात्मक प्रभाव पर केंद्रित थी। काल्पनिक पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म में सामाजिक असमानता, पैसों पर आधारित सामाजिक मूल्यों को खूबसूरती से चित्रित किया गया था। फिल्म के अंत में प्यास के कारण नायक की मौत हो जाती है। हालाँकि मौत के समय उसके पास काफी मात्रा में सोना एवं धन होता है। इस फिल्म के माध्यम से महबूब खान का सामाजिक झुकाव स्पष्ट दिखता है।

‘रोटी’ के बाद महबूब खान ने महबूब प्रोडक्शंस की स्थापना की। वह किसी साम्यवादी दल के सदस्य नहीं थे, लेकिन उनकी कृतियों में साम्यवादी विचारधारा के प्रति झुकाव स्पष्ट दिखता है। उनकी फिल्मों में अत्यधिक नाटकीयता भी नहीं दिखती।

महबूब प्रोडक्शंस की स्थापना के बाद उन्होंने कई चर्चित फिल्में बनाईं। इनमें अनमोल घड़ी, अनोखी अदा, अंदाज, आन, अमर, मदर इंडिया, सन ऑफ इंडिया आदि शामिल हैं। अनमोल घड़ी में एक साथ सुरेंद्र, नूरजहाँ, सुरैया जैसे कलाकार थे वहीं अंदाज जमाने से आगे की फिल्म थी। प्रेम त्रिकोण पर आधारित यह फिल्म स्त्री-पुरुष के संबंधों को लेकर सवाल खड़ा करती है। ‘आन’ उनकी पहली रंगीन फिल्म थी, जबकि ‘अमर’ में नायक की भूमिका एंटी हीरो की थी।

‘सन ऑफ इंडिया’ उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई। इसके बाद वे अगली फिल्म की तैयारी कर रहे थे कि मात्र 57 साल की उम्र में 28 मई 1964 को उनका निधन हो गया।

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