अहिंसा के बारे में बुद्ध के उपदेश

अहिंसा पर बुद्ध के वचन

Webdunia
FILE

भगवान गौतम बुद्ध प्राणी हिंसा के सख्त विरोधी थे। उन्होंने 'उच्चाशयन, महाशयन' का निषेध किया है, यह सोचकर उस समय षड्वर्गीय भिक्षु सिंहचर्म, व्याघ्रचर्म, चीते का चर्म- इन तीन महाचर्मों को धारण करते थे और चारपाई के हिसाब से भी काटकर रखते थे। चारपाई के भीतर भी बिछाते थे और बाहर भी। लोग देखकर हैरान हुए। भगवान से यह बात कही।

भगवान्‌ बोले- 'भिक्षुओं! महाचर्मों को, सिंह, बाघ और चीते के चर्म को नहीं धारण करना चाहिए। जो धारण करे, उसे दुक्कट (दुष्कृत) का दोष होता है।'

बुद्ध भगवान ने अनेक प्रकार से प्राणी हिंसा की निंदा और उसके त्याग की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा है कि कोई भी चर्म नहीं धारण करना चाहिए। जो धारण करे, उसे दुक्कट का दोष होता है।

अहिंसा के बारे में बुद्ध के उपदेश इस प्रकार हैं :-

* जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और 'जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें।

* जहां मन हिंसा से मुड़ता है, वहां दुःख अवश्य ही शांत हो जाता है।

* अपनी प्राण-रक्षा के लिए भी जान-बूझकर किसी प्राणी का वध न करें।

FILE
* मनुष्य यह विचार किया करता है कि मुझे जीने की इच्छा है मरने की नहीं, सुख की इच्छा है दुख की नहीं। यदि मैं अपनी ही तरह सुख की इच्छा करने वाले प्राणी को मार डालूं तो क्या यह बात उसे अच्छी लगेगी? इसलिए मनुष्य को प्राणीघात से स्वयं तो विरत हो ही जाना चाहिए। उसे दूसरों को भी हिंसा से विरत कराने का प्रयत्न करना चाहिए।

* वैरियों के प्रति वैररहित होकर, अहा! हम कैसा आनंदमय जीवन बिता रहे हैं, वैरी मनुष्यों के बीच अवैरी होकर विहार कर रहे हैं!

* पहले तीन ही रोग थे- इच्छा, क्षुधा और बुढ़ापा। पशु हिंसा के बढ़ते-बढ़ते वे अठ्‍ठान्यवे हो गए। ये याजक, ये पुरोहित, निर्दोष पशुओं का वध कराते हैं, धर्म का ध्वंस करते हैं। यज्ञ के नाम पर की गई यह पशु-हिंसा निश्चय ही निंदित और नीच कर्म है। प्राचीन पंडितों ने ऐसे याजकों की निंदा की है।

पहले ब्राह्मण यज्ञ में गाय का हनन नहीं करते थे। जैसे माता, पिता, भ्राता और दूसरे बंधु-बांधव, वैसे ही ये गाएं हमारी परम मित्र हैं। ये अन्न, बल, वर्ण और सुख देने वाली हैं। किन्तु मनुष्य भोगों को देखकर कालांतर में ये ब्राह्मण भी लोभग्रस्त हो गए, उनकी नियत बदल गई।

मंत्रों को रच-रचकर वे इक्ष्वाकु (ओक्काक) राजा के पास पहुंचे और उसके धन-ऐश्वर्य की प्रशंसा करके उसे पशु-यज्ञ करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उससे कहा- जैसे पानी, पृथ्वी, धन और धान्य प्राणियों के उपभोग की वस्तुएं हैं, उसी प्रकार ये गाएं भी मनुष्यों के लिए उपभोग्य हैं, अतः तू यज्ञ कर।

तब उन ब्राह्मणों से प्रेरित होकर रथर्षभ राजा ने लाखों निरपराध गायों का यज्ञ में हनन किया, जो बेचारी न पैर से मारती हैं, न सींग से, जो भेड़ की नाई सीधी और प्यारी हैं, और जो घड़ा-भर दूध देती हैं, उनके सींग पकड़कर राजा ने शस्त्र से उनका वध किया। यह देखकर देव, पितर, इंद्र, असुर और राक्षस चिल्ला उठे- अधर्म हुआ, जो गाय के ऊपर शस्त्र गिरा।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को करें तर्पण, करें स्नान और दान मिलेगी पापों से मुक्ति

जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

सभी देखें

धर्म संसार

property muhurat 2025: वर्ष 2025 में संपत्ति क्रय और विक्रय के शुभ मुहूर्त

ताजमहल या तेजोमहालय, क्या कहते हैं दोनों पक्ष, क्या है इसके शिवमंदिर होने के सबूत?

कुतुब मीनार या ध्रुव स्तंभ, क्या कहते हैं मुस्लिम एवं हिंदू पक्ष और इतिहासकार की नजर में ये क्या है?

Margshirsha Amavasya 2024: मार्गशीर्ष अमावस्या पर आजमाएं ये 5 उपाय, ग्रह दोष से मिलेगा छुटकारा और बढ़ेगी समृद्धि

संभल में जामा मस्जिद या हरिहर मंदिर? जानिए क्या है संपूर्ण इतिहास और सबूत