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मधुमेह और योग

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- डॉ. बीके बांद्रे

' मधुमेह रोग आनुवांशिक होकर अनियमित जीवनशैली का परिणाम है। भारत में प्रतिवर्ष रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। मधुमेह (डायबिटीज) आज से 50 वर्ष पूर्व 'राजरोग' कहा जाता था। पुराने जमाने में यह रोग राजा-महाराजाओं को ही होता था। भौतिक उन्नति के साथ संपन्न होने वाले आधुनिक 'राजाओं' को भी यह रोग घेर रहा है। इसके कारण शरीर में शर्करा (शकर) रक्तप्रवाह में बढ़ जाती है। इसका कारण शकर या मिठाई खाने से नहीं, बल्कि अग्नाशय (पेनक्रियाज) का कार्य अनियंत्रित एवं उसका कमजोर होना है।'

यह ग्रंथि पेट के बाएँ तरफ भोजन की थैली के पीछे जुड़ी होती है। इसमें से निकलने वाला स्राव 'इंसुलिन' कहलाता है। इसकी कमी होने से भोजन के द्वारा बनने वाली (ग्लूकोज) शकर सीधे रक्तप्रवाह में मिलने से मधुमेह रोग होता है। 'इंसुलिन' का उचित मात्रा में अग्नाशय से निर्माण न होने से रक्त में शकर (शर्करा) की मात्रा बढ़कर आँखों, हृदय, गुर्दे और शरीर की नस-नाड़ियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

शरीर खोखला होने लगता है। प्रश्न यह उठता है कि अग्नाशय इंसुलिन कम क्यों बनाता है? इसका उत्तर है कि भोजन अधिक मात्रा में करनेसे अग्नाशय पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। भरपेट भोजन करते ही दोपहर और रात्रि में सोने की आदत, शारीरिक परिश्रम का अभाव, व्यायाम या पैदल चलने की अवहेलना, चबा-चबाकर भोजन न करना- इस रोग के प्रमुख कारण हैं।

यह जीवनशैली हमारे पूर्वजों के द्वारा ही हमें विरासत में मिलती है अतः यह रोग भी मिलता है। 35-40 वर्ष की आयु में इस रोग से ग्रसित रोगियों में बार-बार पेशाब आना, थकान महसूस होना, पैरों में दर्द, नींद की कमी, हृदय की धड़कन बढ़ना, मुँह बार-बार सूखना, आँखों से धुँधला दिखना, उच्च रक्तचाप, मोटापा, शरीर क्षीण होना आदि इसके प्रमुख लक्षण होते हैं। उपरोक्त प्रकार के लक्षण परिलक्षित होने पर रोगियों को निम्न योगाभ्यास करना चाहिए। साथ ही अपनी जीवनशैली को बदलना भी चाहिए।
  'मधुमेह रोग आनुवांशिक होकर अनियमित जीवनशैली का परिणाम है। भारत में प्रतिवर्ष रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। मधुमेह (डायबिटीज) आज से 50 वर्ष पूर्व 'राजरोग' कहा जाता था। पुराने जमाने में यह रोग राजा-महाराजाओं को ही होता था।      


अग्निसार क्रिया : खड़े होकर सामने झुकें और घुटनों पर हाथ रखें। श्वास बाहर निकालकर रोकें और खाली पेट को जल्दी-जल्दी आगे-पीछे 25-30 बार चलाएँ। ऐसे 3 से 4 बार यह प्रयोग दोहराएँ।

त्रिकोणासन : पैर चौड़े करें और एक पैर का पंजा घुमाकर दूसरा हाथ उठाकर साइड में झुकें। दोनों तरफ दो-दो बार 10 श्वास होने तक रुकें।

पादहस्तासन : पैर मिलाकर खड़े रहें, दोनों हाथों को ऊपर उठाकर पीछे झुकें और आगे झुककर 10 श्वास-प्रश्वास करें, फिर पीछे झुककर यह आसन समाप्त करें।

वक्रासन : पैर लंबे करके जमीन पर बैठकर एक पैर मोड़कर दूसरे पैर के घुटने के पास पंजा जमाकर खड़ा करें। दूसरा हाथ घुटने के ऊपर से घुमाते हुए लंबे पैर का घुटना पकड़ें और कमर घुमाएँ। 10 श्वास के लिए रुकें और दूसरी तरफ से करें।

शशकासन : वज्रासन में बैठकर सामने हाथों को फैलाकर झुकें और माथा जमीन पर लगाने की चेष्टा करें। 10-20 श्वास-प्रश्वास करें। पुट्ठे न उठाएँ।

धनुरासन : पेट के बल लेटकर टखने पकड़कर गर्दन, सिर, छाती घुटनों और जंघाओं को ऊपर उठाएँ। 10 श्वास-प्रश्वास करें और धीरे-धीरे नीचे उतरें।

उत्तानपादासन : पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों को बिना मोड़े 45 डिग्री पर उठाकर 10-15 श्वास-प्रश्वास करें, इसे दोहराएँ।

उत्तानपादांगुष्ठासन : पीठ के बल लेटकर दोनों पैर, दोनों हाथ, गर्दन, सिर, छाती ऊपर उठाकर अँगूठे छूने का प्रयास करते हुए 10 श्वास-प्रश्वास करें।

पवनमुक्तासन : घुटनों को मोड़कर पकड़ें और पेट की तरफ खींचें। (ठोड़ी) दाढ़ी घुटने से लगाने का प्रयास करें। 10 श्वास-प्रश्वास करें।

शवासन : विश्राम लेकर 5 मिनट शरीर को ढीला छोड़कर 10 लंबी गहरी, 30 साधारण श्वास-प्रश्वास करें। फिर उठ जाएँ।

भस्त्रिका प्राणायाम : कमर, गर्दन सीधी रखकर जल्दी-जल्दी गहरी श्वास लेना, छोड़ना दोनों नथूनों से करें और गहरी श्वास अंदर खींचकर यथाशक्ति रोकें और धीरे-धीरे छोड़ें। 3 आवर्तक इसी प्रकार करें।

कपालभाँति : झटके से श्वास को बाहर फेंकें और साथ में पेट को पीछे चिपकाएँ। जल्दी-जल्दी इसी को 50 से 100 बार करें।

अनुलोम-विलोम : एक नाक से धीरे-धीरे लंबी गहरी श्वास लेकर दूसरी नाक से धीरे-धीरे छोड़ें, फिर उसी नाक से श्वास भरकर पहले नाक से छोड़ें। इस प्रकार 10 बार करें।

इतना योग का अभ्यास मधुमेह के निवारण के लिए पर्याप्त है।

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