अल्लाह तआला

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अल्लाह तआला एक है कोई उसका शरीक नहीं, न जात में, न सिफ़ात में, न अफ़आल में, न अहकाम में, न अस्मा में। तमाम जहानों का बनाने वाला वही है, ज़मीन आसमाँ, अर्श व कुर्सी, लोह व क़लम, चाँद व सूरज, आदमी-जानवर, दरिया, पहाड़, वगैरह दुनिया में जितनी भी चीज़ें हैं, सबका पैदा करने वाला वही है, वही रोज़ी देता है, वही सबको पालता है। अमीरी-गरीबी, इज्ज़त-ज़िल्लत, मारना-जिलाना सब उसके इख्तयार में है। वह जिसे चाहता है, इज्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत देता है। हम सब उसके मोहताज हैं, वो किसी का मोहताज नहीं, वो हमेशा से है और हमेशा रहेगा। वह हर ऐब से पाक है, उसके लिए किसी ऐब का मानना कुफ्र है। वह हर ज़ाहिर छिपी चीज़ को जानता है। हम सब उसके बंदे हैं। वो हमारा मालिक है, वह एक और अकेला है। वही इबादत का हक़दार है। दूसरा कोई इबादत के लायक़ नहीं, हम सब उसकी मख़लूक़ हैं, वो हमारा ख़ालिक है, वो अपने बंदों पर रहमान व रहीम है। वह मुसलमानों को जन्नत और का़फिरों को दोज़ख़ में सज़ा देगा।

अल्लाह तआला एक और अकेला है- न कोई उसका लड़का है- न वो किसी से पैदा हुआ है, न कोई उसके बराबर है। किसी को ख़ुदा का बेटा भाई या रिश्तेदार मानना कुफ्र है।

मसअला- अल्लाह तआला को अल्लाह मियाँ या ऊपर वाला जैसा चाहेगा, वैसा होगा। ऐसे अल्फ़ाज़ अल्लाह तआला के लिए बोलना मना है।

मसअला- हक़ीक़तन रोज़ी पहुँचाने वाला वही है फ़रिश्ते वग़ैरह वसीला और वास्ता हैं।

मसअला- जो शख्स अल्लाह तआला की ज़ात व सिफात के अलावा किसी और चीज़ को क़दीम माने या दुनिया के ख़त्म होने में शक करे, वो का़फिर है।

अक़ीदह- दुनिया की ज़िंदगी में अल्लाह ताला का दीदार सिर्फ हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम के लिए ख़ास है और आख़ेरत में हर मुसलमान को अल्लाह तआला का दीदार होगा। ख़्वाब में दीदार इलाही दिगर अम्बिया ऐ कराम बल्कि औलिया अल्लाह को भी हुआ है। हमारे इमाम आज़म को ख्वाब में सौ बार ज़ियारत हुई। (बाहरा शरीअत हिस्सा 1, स. 50)।


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