लंच टाइम की दोस्ती

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ढेर सारी फाइलों और टारगेट का दबाव हो या फिर अभी-अभी पड़ी बॉस की झाड़... घर में सास-बहू की शिकवे-शिकायत हों या फिर अपने किसी बीमार के लिए दिल में पल रही चिंता...। कार्यालय में लंच टाइम की दोस्ती सब पर मरहम का काम करती है।

यहां लंच टाइम में आपस के सुख-दुख भी बंट जाते हैं और कई बार तो ऐसे ही कोई मिसेस वर्मा अपनी सहयोगी की बिटिया के लिए वर ढूंढ देती हैं या फिर पिछले महीने से फोन के कनेक्शन के लिए भटक रहे जोगिन्दर साहब के सहयोगी (जिनके परिचित उसी विभाग में हैं) मिनटों में 'कनेक्शन' करवा देते हैं।

कंचों के अंदर गुंथी हुई रंग-बिरंगी दुनिया से लेकर फेसबुक तक और टिफिन से लेकर एक्जाम के 'आईएमपी' क्वेशचन्स के बंटवारे तक... दोस्ती न किसी नियम में बंधती है, न ही कायदे में।

वो दोस्ती ही क्या, जहां सरहदें रुकावट बन जाएं या भाषा और मजहब आड़े आ जाएं। इसीलिए तो दोस्ती का न कोई और पर्यायवाची है, न होगा, जो है वो बस शब्दों में ही सीमित है और दोस्ती की दुनिया तो शब्दों से कहीं बड़ी, फैली और अंतहीन है। इस दुनिया के ढेर सारे रंगों में से कुछ की आज सैर करते हैं।

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