बदायूं: पैराशूट प्रत्याशियों को तरजीह

Webdunia
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014 (11:56 IST)
बदायूं। चुनावों में बाहरी उम्मीदवारों के प्रति आमतौर पर नकारात्मक नजरिए के दस्तूर के बीच उत्तरप्रदेश के बदायूं लोकसभा क्षेत्र की जनता पिछले तीन दशकों से ‘पैराशूट प्रत्याशियों’ को ही तरजीह देती रही है।

बदायूं के चुनावी इतिहास के पन्ने पलटने पर पता लगता है कि यहां की जनता ने वर्ष 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में आखिरी बार कांग्रेस प्रत्याशी असरार अहमद के रूप में स्थानीय निवासी को अपना सांसद चुना था। उसके बाद से अब तक गुजरे 30 वर्षों से बाहरी प्रत्याशी ही यहां की अवाम की पहली पसंद बना है।

इस बार के चुनाव में सबसे खास बात यह है कि सपा, बसपा, भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रत्याशी दिल्ली में रहते हैं और अपनी किस्मत आजमाने के लिए बदायूं आए हैं। बदायूं लोकसभा सीट पर वर्ष 1952 से 1980 तक स्थानीय नेताओं का दबदबा रहा।

जनता द्वारा स्थानीय नेताओं को नकारने की शुरुआत वर्ष 1984 में हुई, जब राजीव गांधी ने अपने मित्र और इलाहाबाद के उद्योगपति सलीम इकबाल शेरवानी पर भरोसा जताया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए इस चुनाव में सहानुभूति की लहर के चलते शेरवानी रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए।

वर्ष 1989 में बदायूं की जनता ने एक बार फिर बाहरी प्रत्याशी को अपनाया और जनता दल के नेता एवं मधेपुरा से सांसद शरद यादव यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। वर्ष 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में देश में राम मंदिर की लहर के बीच भाजपा के टिकट पर हिन्दूवादी नेता स्वामी चिन्मयानंद ने चुनाव लड़ा और जीते।

वर्ष 1996 में सलीम शेरवानी ने कांग्रेस से नाता तोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम लिया और फिर शुरू हुआ यादव-मुस्लिम गठजोड़ का नया समीकरण, जिसे भेदना दूसरे दलों के लिए करीब 1 दशक तक नामुमकिन रहा। इसी समीकरण के बल पर शेरवानी वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2004 तक सपा के टिकट पर चुनाव जीतते रहे।

वर्ष 2009 में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने जब मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उस वक्त मैनपुरी से सांसद और यादव के भतीजे धर्मेन्द्र यादव को सलीम शेरवानी का टिकट काटकर बदायूं सीट पर उतारा गया।

धर्मेन्द्र को भी बदायूं की जनता ने सिर आंखों पर बैठाया और बहुत कड़े मुकाबले के बाद भी उन्होंने जीत हासिल की। ऐसा नहीं है कि इस दौरान स्थानीय नेताओं ने चुनाव मैदान में किस्मत नहीं आजमाई लेकिन यहां की जनता का रुझान हमेशा बाहरी उम्मीदवारों की तरफ रहा।

इस बार के लोकसभा चुनाव में भी सपा ने मूल रूप से सैंफई और वर्तमान में दिल्ली के रहने वाले धर्मेन्द्र यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। भाजपा ने भी दिल्ली समेत कई नगरों में अपना व्यवसाय करने वाले पूर्व कस्टम अधिकारी वागीश पाठक को इस सीट से चुनावी मैदान में उतारा है।

बहुजन समाज पार्टी ने दिल्ली के बिल्डर अकमल खान उर्फ चमन को प्रत्याशी बनाया है। चमन खुद को मूल रूप से बदायूं की सहसवान विधानसभा का निवासी बताते हैं लेकिन पिछले लंबे समय से वे दिल्ली और हरियाणा में ही रह रहे हैं।

आम आदमी पार्टी (आप) ने भी दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी की रहने वाली हेमा मेहरा को बदायूं से मैदान में उतारा है। बदायूं के उझानी कस्बे में पैदा हुईं हेमा भी लंबे समय से दिल्ली में रहकर ‘आप’ की गतिविधियों में हिस्सा लेती रही हैं।

कांग्रेस-महान दल के समझौते के तहत बदायूं सीट महान दल के खाते में गई है। महान दल ने इस सीट पर भाजपा से टिकट न मिलने से नाराज स्वामी पगलानंद को अपना प्रत्याशी बनाया है। मूल रूप से बिजनौर के रहने वाले पगलानंद का रुद्रप्रयाग में आश्रम है।

बदायूं लोकसभा सीट पर पिछले 30 साल से चली आ रही बाहरी प्रत्याशी के सांसद बनने की परंपरा इस साल के चुनाव में भी कायम रहने की प्रबल संभवना है, क्योंकि सभी प्रमुख दलों ने इस बार भी बाहरी लोगों को प्रत्याशी बनाया है। (भाषा)

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