शरद पूर्णिमा का 'ब्लू मून'

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शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते है। अँगरेजी भाषा के मुहावरे में ब्लू मून का प्रयोग 1946 से चलन में आया। लेकिन बरतानवी खेतिहर किसान डेढ़ सौ वर्षों से अपने पंचांग में इस घटना को महत्व देते आ रहे हैं।

बताओ नीला चाँद देखा है कभी? देखा नहीं है फिर भी उसका जिक्र तो सुना ही होगा- 'हबी ैह च मनेी र्र्सह? जैसा इस जुमले का अर्थ है वैसा ही इस चाँद का- दुर्लभ या कभी-कभार आने वाला। एक ही महीने में दूसरी बार जब पूरा चाँद उदय होता है तो उसे ब्लू मून कहते हैं। दो पूर्णिमाओं के बीच का अंतर 29.5 दिन होता है और एक महीने की औसत लंबाई 30.5 दिन। इसलिए किसी महीने में भूले-बिसरे ही चाँद दूसरी बार आता है। फिर भी ढाई-पौने तीन वर्षों में एक बार आ ही जाता है।

इस दिन माताएँ घर में ज्यादा दूध लेंगी, दिनभर उसे ओटाएँगी, केसर-मेवा डालेंगी और रात को छत पर ले जाकर चंद्रमा को उसका प्रसाद चढ़ाएँगी। फिर पतीला चंद्रप्रकाश में रखेंगी ताकि चंद्रकिरणों से बरसता अमृत उसमें समा जाए। घर के पालतू कुत्ते-बिल्लियाँ तो इसकी महक से दिन भर बेचैन रहेंगे और जिन बच्चों को दूध पसंद नहीं है वे इस वर्णन से भी नाक-भौं सिकोड़ेंगे लेकिन यह तो वे भी देखेंगे कि शाम का चंद्रमा ओटाए दूध की तरह हल्का पीलापन लिए था। शरद पूर्णिमा की रात छत पर केसरिया दूध की चुस्कियाँ लेते हुए घर के लोगों को ब्लू मून के बारे में बताना और इसे देखने का ध्यान रखना।

एक शताब्दी में कोई 41 बार। पिछली बार ब्लू मून 7 जुलाई 2004 को दिखा था। ब्लू मून देखने के बाद इस पर गौर करने वाले कम ही मिलते हैं और देखने के बाद इस पर लिखने वाले मुश्किल से एकाध। ब्लू मून पर यह जानकारी लिखने वाले डेविड हार्पर गणित और खगोलशास्त्र में पीएच.डी. हैं। वे इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पास अपनी पत्नी और दो बिल्लियों के साथ रहते हैं।

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