सलाम, टा-टा, बाय-बाय

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विश्व की सभी सभ्यताओं में शिष्टाचार और विनम्र व्यवहार को बहुत महत्व दिया गया है। हर देश के प्राचीन इतिहास में 'छोटों द्वारा बड़ों को सलाम' करने की परंपरा रही है। प्राचीन राजाओं के दरबारों में 'सलाम पेश' करने के अलग-अलग तरीके थे। एक तरीका था - दूर से ही कमर झुकाकर दाहिने हाथ से बार-बार सलाम करते हुए बादशाह के साने आने का था।

एक तरीका घुटनों के बल चलकर या सामने बैठकर सलाम पेश करने का था। कई दरबारों में खासकर अँगरेजों के यहाँ टोपी, पगड़ी या साफा उतारकर सलाम पेश किया जाता था। गरीब जनता, हिंदुस्तान में हाथों को जोड़कर विनम्र भाव से सलाम करती है। जब समान हस्ती वाले बादशाह या राजा मिलते थे तो वे अपने देश में प्रचलित सलाम या अभिवादन का वह तरीका अपनाते थे जो उनकी गरिमा वाले लोगों के लिए उस देश में संवैधानिक रूप से स्वीकृत होता था।

आजकल एक देश का राज्याध्यक्ष दूसरे राज्याध्यक्ष से मिलने जाता है तो उसके लिए दोनों देश के अधिकार पहले से मिलकर अभिवादन से लेकर विदा तक के शिष्टाचार संबंधी प्रचलित नियमों की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं और फिर राज्याध्यक्ष के दौरे के दौरान दोनों देश उनके अनुसार व्यवहार करते हैं। आज शिष्टाचार सामाजिक-राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गया है।

विश्व की सभी सभ्यताओं में शिष्टाचार का एक अन्य शब्द है - थैंक यू या धन्यवाद। अँगरेजी में थैंक्स शब्द उसी स्रोत से निकला है जिससे जर्मन का शब्द 'डॉके' निकला है और दोनों शब्दों का एक ही स्रोत खोजा जाए तो अंतत: दोनों ही प्रोटोमर्जिक शब्द 'थैंकोजान' से निकलते हैं। वास्तव में 'थैंक' करना 'थिंक' शब्द से जुड़ा है। ऐसा लगता है कि इसका स्रोत भी सरलतम तरीका है। जब भी हम किसी से सेवा, मदद या सहायता लेते हैं तो हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम उसका 'थैंक्स' अदा करें। सभ्यता का यह नियम इतना अच्छा माना गया है कि विश्व का शायद ही ऐसा कोई देश हो जहाँ इसका वहाँ की भाषा में 'पर्यायवाची' शब्द का प्रयोग न होता हो। यह भी उल्लेखनीय है कि 'आभार न मानना' किसी भी सभ्यता में धृष्टता माना जाता है। उर्दू में 'शुक्रिया', 'शुक्र गुजार, कृतज्ञ का विलोम है 'नाशुक्रा' (शुक्रिया अदा न करने वाला)। 'शुक्राने की नमाज' पढ़ने का इस्लाम में बड़ा महत्व माना गया है। खञदा से माँगी दुआ जब पूरी होती है तो शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ी गई विशेष नमाज को 'शुक्राने' की नमाज कहते हैं।

' टा-टा' और 'बाय-बाय' या 'गुड बाय' एक ही क्रिया की अलग-अलग अभिव्यक्तियों वाले शब्द हैं। यह क्रिया ह 'गुड-बाय' या 'अलविदा'। जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह आपस में विदा लेता है तो वे संक्षिप्त में 'गुड नाइट' न कहकर 'गुड बाय' कहते हैं। ऐसा कहकर वे एक-दूसरे के प्रति शुभकामना प्रकट करते हैं कि आपकी रात सुखद बीते या 'गुड डे' दिन सुखद बीते।

' बाय-बाय' का प्रयोग पहली बार 1823 में एक शिशु द्वारा रिकॉर्ड की गई रेडियो वार्ता में किया गया। इसके बाद 'टा-टा-फॉर-नाउ' (अभी के लिए विदा दीजिए) का प्रयोग बीबीसी ने 1941 में अपने एक प्रोग्राम 'इटमा' में किया। इस कार्यक्रम में क्रॉकरी धोने वाली चरित्र मिसेज मौपप द्वारा बोले गए डायलॉग को स्वर दिया था डोरोथी समर्स ने। 'बाय-बाय' को जापानी 'सायोनारा' कहते हैं। दरअसल, यह (हैप्पी जर्नी) यात्रा शुभ हो कहना का एक अंदाज है। इन दो शब्दों में शुभकामना और अभिलाषाओं का भंडार भरा है, इसलिए उस भंडार की अभिव्यक्ति केवल शब्दों से की जाती है।

( लेखक 'पराग' के पूर्व संपादक और प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं।)

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