उनकी याद हमें आती है

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- गोपालदा स '' नीर ज''

ND
मधुपुर के घनश्याम अगर कुछ पूछे हाल दु:खी गोकुल क ा
उनसे कहना पथिक कि अब तक उनकी याद हमें आती है ।

बालापन की प्रीति भुलाक र
वे तो हुए महल के वास ी,
जपते उनका नाम यहाँ ह म
यौवन में बनकर संन्यास ी
सावन बिना मल्हार बीतत ा, फागुन बिना फाग कट जात ा,
जो भी रितु आती है बृज में वह बस आँसू ही लाती है ।
मधुपुर के घनश्याम...

बिना दिए की दीवट जैस ा
सूना लगे डगर का मेल ा,
सुलगे जैसे गीली लकड़ ी
सुलगे प्राण साँझ की बेल ा,
धूप न भाए छाँह न भा ए, हँसी-खुशी कुछ नहीं सुहा ए,
अर्थी जैसे गुज़रे पथ से ऐसे आयु कटी जाती है ।
मधुपुर के घनश्याम...

पछुआ बन लौटी पुरवा ई,
टिहू-टिहू कर उठी टिटहर ी,
पर न सिराई तनिक हमार े,
जीवन की जलती दोपहर ी,
घर बैठूँ तो चैन न आ ए, बाहर जाऊँ भीड़ सता ए,
इतना रोग बढ़ा है ऊधो ! कोई दवा न लग पाती है ।
मधुपुर के घनश्याम...

लुट जाए बारात कि जैसे...
लुटी-लुटी है हर अभिलाष ा,
थका-थका त न, बुझा-बुझा म न,
मरुथल बीच पथिक ज्यों प्यास ा,
दिन कटता दुर्गम पहाड़-सा जनम कैद-सी रात गुज़रत ी,
जीवन वहाँ रुका है आते जहाँ ख़ुशी हर शरमाती है ।
मधुपुर के घनश्याम...

क़लम तोड़ते बचपन बीत ा,
पाती लिखते गई जवान ी,
लेकिन पूरी हुई न अब त क,
दो आखर की प्रेम-कहान ी,
और न बिसराओ-तरसा ओ, जो भी हो उत्तर भिजवा ओ,
स्याही की हर बूँद कि अब शोणित की बूँद बनी जाती है ।
मधुपुर के घनश्याम...

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