नेहरू-एडविना : दुर्लभ प्रेम कथा

‍- दिलशाद जाफरी

Webdunia
डॉ. निर्मला जैन द्वारा अनूदित तथा श्री नरेंद्र श्रीवास्तव के आवरण से सजी राजकमल पेपरबैक्स की दुर्लभ पुस्तक है- 'एडविना और नेहरू'। कैथरीन क्लेमां की कलम से प्रस्फुटित दो महान हस्तियों, दो शत्रु देशों के प्रेमियों तथा द्विपक्षीय राजनी‍ति के शिकार मनों की यह दुर्लभ प्रेमकथा संघर्षों की जमीन पर पैदा होती है।

विभाजन की त्रासदी में पुष्पित-पल्लवित हो शहरों की अव्यवस्था और खलबली में आकार पा युवा होती है। पलती-बढ़ती है और टूटन-थकन और आवेग से पीड़ित हो घुटकर मर नहीं जाती बल्कि अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए निरंतर कराहती भी रहती है।

और सब खुदाई जज़्बों की तरह नाज़िल होता प्रेम प्रथम दृष्टि में ही नेहरू और एडविना के दिलों को धड़का देता है। यह और बात है कि एडविना उनके चेहरे के हार्दिक भावों को पढ़ने से बचती है और नेहरू संगमरमर की तराशी मूर्ति को फ़ुर्सत फ़लसफ़ा समझकर नकारते रहते हैं।

प्रेम का राज‍नीतिकरण कर उसे भी भुनाने में सिद्धहस्त डिकी उर्फ़ लॉर्ड माउंटबेटन जब क्षत-विक्षत हिंदुस्तानी नक्शे की स्वीकृति पाने के लिए अपनी पत्नी के प्रेम का फायदा उठाते हुए उसे एहसास दिलाता है कि 'नेहरू उसे प्रेम करते हैं'। पचासों पुरुषों के प्रणय-स्वप्न की आस रही यह युवती प्रौढ़ावस्था की विवेकी उम्र में भी षोडसी सुकुमारी सी लजा उठती है।

नेहरू और एडविना दोनों इंसान थे, दोनों नेतृत्व का गुण रखने वाले रोमांटिक प्राणी थे, और दोनों अपने-अपने ढंग से भारत को समर्पित थे। पर नेहरू का समर्पण देश, धर्म, जा‍ति़, संस्कार, समाज, मानवता के लिए था।

एडविना, उसका समर्पण सिर्फ नेहरू के लिए था। एक पुरुष के पवित्र प्रेम ने दूर देश की नारी को एक अंजान देश से कैसा बांध दिया था। सच अबोध नारी की निर्मल आत्मा बेघरबार ही तो हो गई थी।

प्रसादजी के प्रेम संसार में संगीतमयी जीवन की गहरी चलती धारा हो सकती है, किंतु संघर्षों की छटपटाहट को क्षणिक विश्राम देने वाला बिछौना ही नजर आती है। ऐसा बिछौना जिस पर कभी एक अरसे से नींद को तरसे नेहरू की आत्मा आराम करती नज़र आती है। तो कभी सच्चे प्रेम की चाह में मुल्कों की भटकन तय कर थकती हुई एडविना अलसाई सी सुकुन पाती दिखाई पड़ती है।

बापू के जीवन में बा थी, जो उनके संघर्षमयी मरुभूमि जीवन के लिए शीतल फुहारों सी मौजूद थीं, किंतु नेहरू और एडविना के जीवन में हर बार एक संघर्ष, एक त्रासदी, एक अवरोध। ...और फिर भी ज़िंदगी अपनी पटरी पर दौड़ने लगती, सिवा नेहरू और एडविना के।

यह वह प्रेम था जिसने सदियों के अतीत के प्रणय दलदल के कीचड़ से एडविना को निकालकर उजला कर दिया था। सदियों के थके नेहरू को संघर्ष करने की शक्ति दी थी। प्रेम का यही रूप इस पुस्तक को औपन्यासिक शिल्प की गढ़न से कहीं दूर ले जा पाठकों के मर्म में स्थान दिला देता है।

जहां कराहती सी कोकिला कूक उठती है 'भारत आज़ाद होगा, जीत हमारे खाते में दर्ज होगी, हमारी याद में भाषण दिए जाएंगे, हमारी तस्वीरों के नीचे हार होंगे ...पर इतिहास की किताबों में हमारी प्रेम कहानियाँ कहीं दर्ज नहीं होंगी ...हमारी आवेग भरी रातों में से कुछ नहीं बनेगा।' स्त्री, पुरुष के जीवन की और पुरुष, स्त्री के जीवन की शाश्वत आवश्यकता है।

कहना न होगा कि सभी ऐतिहासिक प्रेम कथाओं से कहीं ज़्यादा पूर्ण और रोचक जान पड़ती है यह प्रेमकथा। इस पुस्तक का मूल्य भी मुनासिब ही है।

पुस्तक : एडविना और नेहरू
लेखक : कैथरीन क्लैमां
अनुवाद : निर्मला जैन
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 150 /-

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