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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. श्याम जी कृष्ण वर्मा

Webdunia
पं.बाबूलाल जोशी

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भारतीय स्वतंत्रता का संग्राम यद्यपि 1757 ईसवीं में प्लासी के युद्धकाल से आरंभ हो गया था, अंग्रेजों की व्यापारिक कंपनी और उसके शासन के बोझ तले दबे किसानों व वनवासियों के संघर्षों से भरी गाथा कोई 90 वर्ष तक चलती रह ी । यह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की भूमिका थी।

पिछले 90 वर्ष तक अनवरत अपने रक्तकणों के अर्ध्य से स्वाधीनता संग्राम की जो भूमिका तैयार की गई थी, उसकी परिणति 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष के रूप में दिखाई द ी । उन दिनों गांव-गांव में कमल और रोटी पहुंचाने का संदेश ही यह था कि भारत के मान बिंदु की रक्षा के लिए स्वतंत्रता के इस समर में तैयार रहना है। इस समर में भी लाखों भारतीयों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी, यह संघर्ष समर भी लगातार नहीं चल पाया फिर भी छुटपुट रूप में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष तो चलता ही रहा।

स्वतंत्रता का विजयनाद एक दिन में नहीं मिलता वर्षों-वर्षों लग जाते हैं, इसे प्राप्त करने के लिए, तब भी कई स्वप्न व संकल्प अधूरे रह जाते हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए कठोर तपस्या व अग्नि परीक्षा से पीढ़ियों तक को न्यौछावर होना पड़ता हैं।

1947 में मिली भारतीय स्वतंत्रता के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे, तो इतिहास का तथ्य यह पुष्ट करता हैं कि इस अनवरत 1905 से चलाए गए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पितामह पं.श्याम जी कृष्ण वर्मा थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन में अंग्र ेजों की धरती लंदन में भारत भवन की स्थापना कर भारतीयों के लिए भारत में भारत सरकार की स्थापना का शंखनाद किया था।

महान क्रांतिकारी राष्ट्र रत्न और गुजरात के गौरव पुत्र पं.श्याम जी कृष्ण वर्मा की जीवन यात्रा दिनांक 4 अक्टूबर 1857 को माण्डवी कच्छ गुजरात से आरंभ हु ई । स्वामी दयानंद सरस्वती के सान्निध्य में रहकर मुखर हुए संस्कृत व वेदशास्त्रों के मूर्धन्य विद्वान के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त वर्मा जी 1885 में तत्कालीन रतलाम राज्य के 1889 तक दीवान पद पर आस ीन रह े।


1892 में उदयपुर राजस्थान व उसके बाद जूनागढ़ गुजरात के भी दीवान रहे, लेकिन राज्यों के आंतरिक मतभेद और अंग्रेजों की कुटिलताओं को समझकर उन्होंने ऐसे महत्वपूर्ण पद भी ठुकरा दिए।

उनके मन में तो मां भारती की व्यथा कुछ और करने को प्रेरित कर रही थी। गुलाम भारत और अनेक बड़े-बड़े राज े- रजवाड़े प्रजा पर राज तो कर रहे थे, लेकिन उन्हें अंग्रेजों की पकड़ के चलते वायसराय के पास जाकर नतमस्तक होना पड़ता था, उस समय भारतीय स्वतंत्रता कही दिखाई नहीं दे रही थ ी । अतः 1905 में पं. श्री वर्मा ने 20 भारतीयों को साथ लेकर 3 मंजिला भवन इंग्लैंड के स्टेशन पर खरीदकर भारत भवन की स्थापना की। यह भवन भारत मुक्ति के लिए एक क्रांति मंदिर बन गया।

स्वतंत्र वीर सावरकर, मदनलाल धींगरा, लाला हरदयाल, सरदार केशरसिंह राणा, मादाम कामा आदि की सशक्त श्रृंखला तैयार हुई और इन्ही की प्रेरणा से पं.लोकमान्य तिलक, नेता जी सुभाषचन्द्र बोस स्वतंत्र समर में संघर्षरत रहे हैं।

भारत को स्वतंत्रता चांदी की तश्तरी में भेंट स्वरूप नहीं मिल पाई। सात समंदर पार से अंग्रेजों की धरती से ही भारत मुक्ति की बात करना सामान्य नहीं थी, उनकी देश भक्ति की तीव्रता थी ही, स्वतंत्रता के प्रति आस्था इतनी दृढ़ थी कि पं.श्याम जी कृष्ण वर्मा ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु के बाद अस्थियां स्वतंत्र भारत की धरती पर ले जाई जाए।

भारतीय स्वतंत्रता के 17 वर्ष पहले दिनांक 31 मार्च 1930 को उनकी मृत्यु जिनेवा में हुई, उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद स्वतंत्र भारत के 56 वर्ष बाद 2003 में भारत माता के सपूत की अस्थियां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश की धरती पर लाने की सफलता मिली।

यह चिंता की बात हैं कि अभी भी हम कुछ सीमित भर स्वतंत्रता सैनानियों को ही याद भर रखकर इतिश्री कर रहे हैं, अतीत को भूल रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को भूलना अपने पितृ पुरुषों को भुलने जैसा हैं, यह अपने आप के साथ आघात करने जैसा ही हैं।

विशेष : स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के उनके त्याग और बलिदान की आधारशिला को संजोए रखने के लिए सन्‌ 2004 से देवपुत्र के प्रधान संपादक कृष्णकुमार अष्ठाना द्वारा वीरांजली का डॉ. दिनेश जोशी की अध्यक्षता में शुभारंभ किया गया, तब से प्रति वर्ष स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को स्मरण करते हुए स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों और लोकतंत्र रक्षक का सम्मान वर्मा जी की जयंती 4 अक्टूबर व पुण्यतिथि 31 मार्च को अनवरत रूप से चल रहा है।

रतलाम में पं.श्याम जी कृष्ण वर्मा सृजन पीठ की स्थापना भी की जा चुकी है।

पं.श्याम जी कृष्ण वर्मा की जन्मस्थली माण्डवी गुजरात क्रांति तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है। जहां स्व ाध ीनता संग्राम सैनानियों क‍ी प्रतिमाएं व 21 हजार वृक्षों का क्रांतिवन आकार ले रहा है। रतलाम में ही स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के परिचय गाथा की गैलरी प्रस्तावित है, ताकि भारतीय स्वतंत्रता के आधारभूत मूल तत्वों का स्मरण एवं उनके संबंधित शोध कार्य की ओर आगे बढ़ सके, लेकिन इसके लिए रतलाम जिला प्रशासन एवं मध्यप्रदेश शासन की मुखरता भी अपेक्षित है।

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